विस्तार है अपार प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम, गंगा बहती हो क्यों!!
गंगा नदी पर गाया गया भारत रत्न भूपेन हजारिका का यह गीत एक नदी की सुन्दरता या उसकी निर्मलता को लेकर नहीं, समाज और उसमें चल रहे संघर्ष की कहानी कहता है और यह प्रार्थना भी करता है, ‘हे गंगा! तुम भीष्म रूपी सुत क्यों नहीं जनती?’ गंगा को सबने अपने-अपने हिसाब से साधने की कोशिश की है। पौराणिक कथा में वर्णित सूर्यवंशी राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ हों या इसके घाटों की कथा सुनाकर अपनी आजीविका चलाने वाले पंडित, गंगा से हर किसी ने अपना हित साधने का प्रयास किया है। आम आदमी इससे मोक्ष को साधना चाहता है तो किसान अपनी सुख-समृद्धि। फ़िल्म निर्माता से लेकर गीतकार और संगीतकार सबने गंगा को अपने-अपने हिसाब से साधा है। और आजकल राजनेता इस गंगा से अपनी राजनीति साध रहें हैं!
पिछले चुनाव में बनारस जाकर नरेन्द्र मोदी का यह कहना कि मुझे गंगा माँ ने बुलाया है! यह बोल कर मोदी ने न सिर्फ़ बनारस लोकसभा सीट जीती बल्कि उत्तर प्रदेश को साध कर दिल्ली में सत्ता की सीढ़ी भी चढ़ी। और इस बार प्रियंका गाँधी गंगा के सहारे कांग्रेस को तारने की कवायद करने जा रही हैं।
क्या प्रियंका गाँधी गंगा की लहरों से उत्तर प्रदेश या देश की राजनीति की गहराई नापना चाहती हैं? या गंगा के माध्यम से ‘गंगापुत्र’ बताकर गत लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में विराट जीत हासिल करने वाले नरेंद्र मोदी के गंगा प्यार की असलियत को उजागर करने वाली हैं।
प्रियंका में इंदिरा गाँधी की छवि?
प्रियंका में उनके समर्थक इंदिरा की छवि देखते हैं और कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार भी नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ प्रियंका की उसी छवि को उकेरने की योजना बनाते दिखते हैं। कांग्रेस अपनी इस योजना से एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश करती दिख रही है। वह जनमानस में मज़बूत प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गाँधी के दौर की याद ताज़ा कराके मोदी के मज़बूत प्रधानमंत्री के दावे को भी ख़ारिज़ करने की कोशिश करेगी। प्रियंका में इंदिरा दिखाने के लिए कांग्रेस पूर्वांचल में प्रियंका के लिए इंदिरा के 1980 के चुनाव प्रचार अभियान की रणनीति का सहारा लेते दिख रही है।
- 1977 में आपातकाल के बाद क़रारी हार मिलने के बाद इंदिरा ने 1978 में चिकमंगलूर से चुनाव जीत कर लोकसभा में वापसी की थी। ‘एक शेरनी, सौ लंगूर; चिकमगलूर, चिकमगलूर’ के नारे के साथ कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल को हरा इंदिरा ने इस जीत के बाद सीधा रुख़ पूर्वांचल की ओर किया था।
इंदिरा ने किया था सड़क मार्ग से दौरा
इंदिरा गाँधी ने आजमगढ़ लोकसभा उप-चुनाव में जमकर प्रचार किया था और 7 मई, 1978, को इस सीट से कांग्रेस की मोहसिना किदवई चुनाव जीती थीं। आजमगढ़ इसके बाद से राजनीति के नक़्शे में उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की राजनीतिक कैपिटल के रूप में कहा जाने लगा। चौधरी चरण सिंह कहा करते थे कि बागपत छोड़ दूँगा लेकिन आजमगढ़ नहीं। साल 2014 में मुलायम सिंह ने आजमगढ़ से चुनाव लड़ा था। 1978 में इंदिरा गाँधी ने सिर्फ़ अपने बूते पर आज़मगढ़ लोकसभा सीट का उप-चुनाव कांग्रेस को जिताया था। यह वह दौर था जब देश का मीडिया इंदिरा गाँधी के राजनीतिक सफ़र के अंत का संपादकीय लिख चुका था। दक्षिण के बाद पूर्वांचल की इस जीत ने इंदिरा गाँधी की सत्ता में वापसी का नया अध्याय लिख दिया। आजमगढ़ के इस चुनाव प्रचार के बाद इंदिरा गाँधी ने सड़क मार्ग से पूरे पूर्वांचल का दौरा किया था। जगह-जगह रुकती थीं, हैंड पम्प से पानी लेकर मुँह धोती थीं और लोगों से बातें करती थीं। जिस उत्तर प्रदेश ने इंदिरा गाँधी को सत्ता से उतार फेंका था, वही उनके साथ खड़ा दिखने लगा।
मोदी से पहले इंदिरा की भी थी बनारस में पैठ
लोगों से उनके जुड़ाव का अंदाज़ा 1980 के आम चुनाव के दौरान बनारस में होने वाली जनसभा से लगाया जा सकता है। कहते हैं दिसंबर महीने में ऐतिहासिक बेनियाबाग के मैदान में रात में होने वाली सभा का मंच तैयार था। इंदिरा को सुनने के लिए इतनी भीड़ उमड़ी कि मैदान छोटा पड़ गया था। हालाँकि मौसम की वजह से देर हो गई और लोग इंतज़ार करते रहे। रात 9 बजे सभा होनी थी, लेकिन आधी रात पार कर सुबह होने को आई। ठंड की मार से बचने के लिए लोगों को जो कुछ मिला उसे आग के हवाले कर दिया लेकिन मैदान नहीं छोड़ा। सुबह पौ फटने तक लोगों ने इंदिरा गाँधी का इंतज़ार किया और भाषण सुन कर ही गए।
- इंदिरा गाँधी बनारस के औरंगाबाद हाउस को अपना दूसरा घर मानती थीं। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में 1959 में वह पहली बार आईं तो फिर यह सिलसिला चलता रहा। खुली जीप में बनारस की सड़कों पर निकलतीं तो लोग उनका स्वागत करने के लिए उमड़ जाते थे। बनारस की यात्रा में इंदिरा माता आनंदमयी से मिलना कभी नहीं भूलीं। उनकी दी हुई रुद्राक्ष की माला हमेशा उनके गले में दिखती थी।
इंदिरा जैसी वापसी पर प्रियंका की नज़र
प्रियंका गाँधी की गंगा यात्रा भी शायद इंदिरा गाँधी की वापसी की कहानी के इर्द-गिर्द ही गढ़ी जा रही है। गंगा के घाट-घाट घूमकर प्रियंका गाँधी कैसा जादू खड़ा कर पाती हैं यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन कांग्रेस को खड़ा होना है तो उसका रास्ता उत्तर प्रदेश से ही ढूँढना होगा।
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