उत्तर प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के भतीजे प्रमोद मौर्य ने समाजवादी पार्टी को बड़ा झटका दिया है। प्रमोद मौर्य ने गुरुवार को सपा से इस्तीफा दे दिया है और इस्तीफे के अपने पत्र में अखिलेश यादव को जातिवादी बताते हुए उन पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। प्रमोद मौर्य प्रतापगढ़ के जिला पंचायत अध्यक्ष रहे हैं और समाजवादी पार्टी में प्रदेश सचिव के पद पर थे।
प्रमोद मौर्य ने आरोप लगाया है कि सपा में काम करते हुए उन्होंने यह महसूस किया कि अखिलेश यादव केवल अपनी अपनी जाति को बड़ा मानते हैं और पार्टी की बैठकों में अक्सर मौर्य, कुशवाहा, शाक्य, सैनी, पटेल व अन्य पिछड़ी जातियों को छोटा दिखाने की कोशिश करते हैं।
उन्होंने कहा है कि सपा में उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में एक भी जिला अध्यक्ष मौर्य, कुशवाहा, शाक्य और सैनी समाज का नहीं है।
प्रमोद मौर्य ने कहा है कि जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव के दौरान भी अखिलेश ने उनका टिकट काटकर यादव समाज के प्रत्याशी को दे दिया और इससे उनकी जातिवादी मानसिकता प्रदर्शित होती है। उन्होंने यह भी लिखा है कि उनके बड़े भाई की मृत्यु पर पार्टी की तरफ से कोई शोक संवेदना तक प्रकट नहीं की गई। जबकि यादव समाज के छोटे से छोटे पदाधिकारी के परिवार में मौत होने पर शोक संवेदना व्यक्त की जाती है।
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बीजेपी ने दिए ज़्यादा टिकट
प्रमोद मौर्य ने यह भी आरोप लगाया है कि अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव में मौर्य, सैनी, शाक्य समाज के कई लोगों का टिकट काट दिया और इस तरह इस समाज के लोगों को कमजोर करने का षड्यंत्र किया। उन्होंने कहा है कि बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में मौर्य, कुशवाहा, शाक्य, सैनी समाज को 27 टिकट दिए जबकि सपा ने केवल 16 टिकट इन समाज के लोगों को दिए।
इसी तरह के कई और गंभीर आरोप लगाकर प्रमोद मौर्य ने अखिलेश यादव को कटघरे में खड़ा कर दिया है। विधानसभा चुनाव के नतीजे आए अभी डेढ़ महीने का भी वक्त नहीं हुआ है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव मुश्किलों से घिर गए हैं।
स्वामी प्रसाद मौर्य 5 साल तक योगी सरकार में मंत्री रहे और विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी छोड़कर सपा में आ गए। उनकी बेटी संघमित्र मौर्य अभी भी बीजेपी की सांसद हैं। ऐसे में सवाल यह है क्या प्रमोद मौर्य की तरह स्वामी प्रसाद मौर्य का भी सपा से मोह भंग हो जाएगा।
अखिलेश की परेशानियों में इजाफा
पहले पूर्व कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर और अपने चाचा शिवपाल यादव के बीजेपी के साथ जाने की खबरों से अखिलेश परेशान हुए, उसके बाद मोहम्मद आजम खान के समर्थकों के इस्तीफों ने उन्हें परेशान किया और अब स्वामी प्रसाद मौर्य के भतीजे के द्वारा जातिवादी बताए जाने और इतने गंभीर आरोप लगाए जाने से निश्चित रूप से अखिलेश यादव की परेशानियों में इजाफा हुआ है।
यही नहीं राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनीतिक सक्रियता से भी तमाम तरह की अटकलें लग रही हैं।
चुनावी हार
अखिलेश यादव बेहद कम उम्र में मुख्यमंत्री बन गए और 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने उत्तर प्रदेश में तमाम छोटे दलों का एक मजबूत गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ने की कोशिश की। चुनाव के दौरान ऐसा लगा कि उनका गठबंधन बीजेपी को हरा देगा लेकिन बीजेपी दो तिहाई सीटें हासिल करने में कामयाब रही।
अखिलेश को तमाम चुनौतियों का सामना करने के साथ ही अपने सहयोगियों को भी सपा से जोड़ कर रखना होगा क्योंकि बीजेपी लगातार शिवपाल यादव के साथ ही पूर्व कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर पर भी डोरे डाल रही है।
मुसलमानों के मसलों पर खामोशी अख्तियार करने के आरोपों ने भी अखिलेश के माथे पर चिंता की लकीरों को गहरा कर दिया है। अखिलेश इन चुनौतियों से कैसे निपटेंगे, यही सवाल लखनऊ में लगातार पूछा जा रहा है।
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