मुरादाबाद पुलिस ने मंगलवार को कहा कि उसने 26 लोगों के खिलाफ मामले को अब निपटा दिया है। क्योंकि जिन पर आरोप लगे, उस बारे में कोई सबूत नहीं मिले। कुछ दक्षिणपंथी उग्र समूहों ने छजलैट के गांव में घर में नमाज पढ़े जाने पर आपत्ति जताते हुए एफआईआर कराई थी।
एसएसपी हेमंत कुटियाल ने मीडिया को बताया कि जांच में आरोप साबित नहीं होने के कारण मामला रद्द किया जा रहा है। दरअसल, मीडिया में यह मामला सोमवार से उछल रहा था और लोग नमाज के खिलाफ एफआईआर होने पर प्रतिक्रिया दे रहे थे। इस बारे में एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने सीधे पीएम मोदी से सवाल कर दिया था कि क्या घर में नमाज पढ़ने पर पाबंदी है।
एफआईआर में नामजद लोगों में से एक ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि शिकायत 3 जून को दर्ज की गई थी। पहली एफआईआर 24 अगस्त को छजलैट क्षेत्र के दुल्हेपुर गांव निवासी चंद्रपाल सिंह की शिकायत पर दर्ज की गई थी। जो मुरादाबाद जिले के अंतर्गत आता है।
छजलैट पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता की धारा 505 (सार्वजनिक शरारत के लिए बयान) के तहत 16 पहचाने गए और 10 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।
द वायर ने एफआईआर की एक कॉपी देखी है जिसमें कहा गया है कि "नमाज की सार्वजनिक पेशकश" पर विवाद से पहले गांव में तनाव पैदा हुआ था, जिसके बाद पुलिस की मौजूदगी में एक समझौता किया गया था कि नमाज अदा नहीं की जाएगी।
हालांकि, शिकायतकर्ता ने कहा था कि समझौते के बावजूद कई घरों में नमाज अदा की जा रही है। नमाज "घृणा, शत्रुता और अमानवीयता" का माहौल पैदा कर रही थी।
हालांकि मीडिया रिपोर्टों में कहा गया था कि लोग अपने घरों के अंदर प्रार्थना कर रहे थे। दैनिक भास्कर के मुताबिक, उन्होंने एक मौलवी को भी बुलाया था।
यहां यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि गांव में एक मस्जिद भी नहीं है। एनडीटीवी की रिपोर्ट में कहा गया था कि कुछ लोगों ने घरों के अंदर नमाज के लिए जमा होने पर आपत्ति जताई।
मुरादाबाद के एसपी (ग्रामीण), संदीप कुमार ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया था, कि 24 अगस्त को बिना किसी सूचना के दो स्थानीय ग्रामीणों के घर पर काफी लोग इकट्ठा हुए और नमाज पढ़ी। कुछ लोगों की आपत्तियों के बाद उन्हें पूर्व में घर पर इस तरह की प्रथा को प्रोत्साहित नहीं करने के लिए आगाह किया गया था।
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