यूपी की जेल में कुछ भी हो सकता है.
— Puneet Kumar Singh (@puneetsinghlive) March 30, 2024
जब पुलिस फर्जी मुठभेड़ कर सकती है तो कुछ भी कर सकती है.
मुख्तार अंसारी के मौत की सीबीआई जांच होनी चाहिए: यूपी के पूर्व डीजीपी सुलखान सिंहpic.twitter.com/Pg5mjvh3fE
अब किसी के अंतिम संस्कार में जाने के लिए भी अफ़सरों से परमिशन लेनी पड़ेगी?? ये कैसा लोकतंत्र है !!
— Atul Pradhan (@atulpradhansp) March 30, 2024
सवैधानिक व्यवस्था को ख़त्म करने पर उतारू है कुछ लोग ! pic.twitter.com/RxdpOzbcOO
मुख्तार की मौत को लेकर विवाद जारी है, क्योंकि उनके बेटे उमर अंसारी को संदेह है कि उनके पिता को धीमा जहर देकर मारा गया है। योगी सरकार द्वारा एक विशेष समुदाय के गैंगस्टरों को निशाना बनाए जाने पर कांग्रेस, बसपा और सपा जैसी विपक्षी पार्टियों द्वारा सवाल उठाए जा रहे हैं। हर मौत के पैटर्न में शामिल है- थाने में बंद होने पर, जेल के अंदर झगड़ा होने पर, जेल के अंदर बीमार पड़ने पर, अस्पताल ले जाते समय, अस्पताल में इलाज के दौरान, झूठी मुठभेड़ दिखाकर, झूठी आत्महत्या दिखाकर, हादसे में हताहत दिखाकर। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मांग की है कि ऐसे सभी संदिग्ध मामलों की जांच सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की निगरानी में की जानी चाहिए। बसपा प्रमुख मायावती ने भी मुख्तार के मौत की जांच की मांग की है।
भाजपा से सहानुभूति रखने वालों का मानना है कि मुख्तार अंसारी का अंत 'बाहुबली' संस्कृति में महत्वपूर्ण गिरावट का प्रतीक है, जो दशकों से अविकसित और गरीबी से पीड़ित क्षेत्र पूर्वी यूपी को परिभाषित करती थी। इन सटीक कारणों से, यह युवाओं के लिए बंदूकधारी डॉन या 'बाहुबलियों' के प्रति आकर्षित होने के लिए एक उपजाऊ जमीन थी, जिनकी हुकूमत इन अराजक हिस्सों में चलती थी। लेकिन सवाल ये है कि क्या अतीक और उसके भाई के मारे जाने पर अपराध कम हो गए। क्या धनंजय सिंह के जेल में होने पर अपराध कम हो गए। क्या शहाबुद्दीन का अंत होने से बिहार के सीवान और आसपास अपराध खत्म हो गए।
मुख्तार की राजनीति
मुख्तार खुद अलग-अलग दलों से 6 बार विधायक रहे। मुख्तार के भाई अफजाल पहले बसपा में थे, लेकिन बाद में सपा में चले गए। सपा ने उन्हें गाजीपुर से टिकट भी दिया। सगे भाई होने और एक ही परिवार होने के बावजूद अफजाल अंसारी की राजनीति का तरीका अलग रहा है। अपने भाई की तरह वो कभी विवादों में नहीं रहे। इसलिए मुख्तार की विरासत अफजाल अंसारी नहीं संभाल सकते, यह बहुत पहले से स्पष्ट है। इसी तरह सुभासपा के विधायक अब्बास अंसारी ने भी कभी अपने पिता की कार्यशैली नहीं अपनाई, हालांकि अब्बास अंसारी की राजनीति पिता मुख्तार के साये में पली लेकिन राजनीतिक तौर पर दोनों अलग-अलग तरह से काम करते हैं। लेकिन हकीकत यही है कि ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली पार्टी मुख्य रूप से मुख्तार अंसारी के आर्थिक सहयोग पर पल-बढ़ रही थी।राजभर हाल ही में भाजपा का दामन पकड़कर एनडीए में शामिल हो गए हैं। लेकिन एनडीए और योगी मंत्रिमंडल का हिस्सा बनने के बाद ओम प्रकाश राजभर ने मुख्तारी अंसारी परिवार से दूरी बना ली। शनिवार को राजभर उनके जनाजे में भी शामिल नहीं हुए। इस संबंध में उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है, जिसमें वो कह रहे हैं कि मेरी मां अस्पताल में हैं। मैं उन्हें छोड़कर किस तरह जाऊं। हालांकि मुख्तार को वो गरीबों का मसीहा अभी भी मानते हैं।
पूर्वी यूपी के एक भाजपा नेता ने कहा कि अंसारी की मौत 'गुंडा राज' के अंत का प्रतीक है, जो योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने से पहले मुख्य रूप से मऊ, आज़मगढ़, ग़ाज़ीपुर और कुछ हद तक निकटवर्ती वाराणसी जिलों में फल-फूल रहा था। इसका राजनीतिक असर भी होगा, क्योंकि इससे बीजेपी को ग़ाज़ीपुर लोकसभा सीट पर मतदाताओं के ध्रुवीकरण में मदद मिलने की उम्मीद है, जहां मुख्तार के भाई अफ़ज़ल अंसारी, जो उसी सीट से मौजूदा बीएसपी सांसद हैं, फिर से अपनी किस्मत आज़मा रहे हैं, लेकिन समाजवादी पार्टी के टिकट पर।
भाजपा नेता ने यह भी कहा कि यह घटना सीएम योगी के अपराध मुक्त उत्तर प्रदेश के अभियान को आगे बढ़ाएगी. पिछले साल की शुरुआत में राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार, पुलिस ने कहा था कि उन्होंने योगी सरकार के छह वर्षों में किए गए 10,713 मुठभेड़ों में 5,967 अपराधियों को पकड़ा है।
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