आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को चित्रकूट में आयोजित हिंदू एकता महाकुंभ में कहा है कि संघ लोगों को जोड़ने का काम करेगा। संघ प्रमुख बीते कई सालों में कई बार जोड़ने और एकजुटता वाली बात को कह चुके हैं लेकिन सवाल यह है कि उनकी इन बातों का कोई असर आख़िर हिंदू संगठनों पर क्यों नहीं हो रहा है।
आप पिछले 15 दिन में दक्षिणपंथी संगठनों के कार्यकर्ताओं की हरक़तें देख लीजिए। कर्नाटक से लेकर हरियाणा और मध्य प्रदेश तक, इन संगठनों से जुड़े लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ तोड़ने के काम में लगे हुए हैं।
नमाज़ पर आपत्ति
गुड़गांव में प्रशासन द्वारा चिन्हित की गई ज़मीनों पर नमाज़ पढ़ने में हिंदू संगठनों के लोगों को आपत्ति है। रोहतक में हिंदू संगठन के लोग धर्मांतरण का आरोप लगाकर एक चर्च में घुस गए, जिसे स्थानीय पुलिस ने पूरी तरह ग़लत बताया।
शादी में किया बवाल
इसी तरह मध्य प्रदेश में इन संगठनों को इस बात पर आपत्ति है कि कोई अपनी विधि से विवाह संस्कार क्यों करा रहा है। यहां विवादित संत रामपाल के अनुयायियों द्वारा कराई जा रही एक शादी में विहिप और बजरंग दल के लोग पहुंच गए और जमकर बवाल काटा। इन लोगों ने एक शख़्स को मौत के घाट भी उतार दिया। विदिशा के एक स्कूल में धर्मांतरण का आरोप लगाकर इन्होंने हंगामा किया।
दक्षिणपंथियों ने कर्नाटक में ईसाई समुदाय के लोगों की किताबों को जला दिया और पादरी पर हमला करने की कोशिश की। मोहन भागवत जी, जिन राज्यों में ये हरक़तें हुई हैं, सभी जगहों पर बीजेपी की सरकार है।
जब संघ प्रमुख ये कहते हैं कि मुसलमानों के बिना हिंदुत्व अधूरा है और हम सभी भारतीय हैं, हमारा डीएनए एक है तो फिर ईसाइयों और मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत क्यों फैलाई जा रही है। इन्हें छोड़िए, धर्म से हिंदू संत रामपाल के अनुयायियों पर ये हिंदू संगठनों के लोग आख़िर क्यों टूट पड़े हैं।
संघ को अनुशासित संगठन माना जाता है। संघ प्रमुख किसी बात को लगातार कह रहे हों और हिंदू संगठनों से जुड़े लोग उसे न मानें, ऐसा नहीं हो सकता।
इसका एक मतलब यह भी है कि सिर्फ़ दिखावा हो रहा है। अगर संघ प्रमुख चाहें तो इस तरह की हरक़तें ख़त्म हो सकती हैं। संघ प्रमुख के सबका डीएनए एक है, ऐसा बयान देने के बाद भी क्या उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने लुंगी छाप गुंडे वाला बयान नहीं दिया या दूसरे नेताओं ने मथुरा मस्जिद को लेकर विवादित बयान नहीं दिए।
ऐसा सिर्फ़ इसलिए ही है क्योंकि संघ प्रमुख सिर्फ़ कह रहे हैं, अपने कहे को लागू करवाने की मंशा शायद उनकी नहीं है वरना कोई कैसे संघ परिवार में उनके विपरीत लाइन ले सकता है।
ऐसे में संघ प्रमुख को चाहिए कि वे जोड़ने की बात को न सिर्फ़ कहें बल्कि इसे लागू भी करवाएं, तभी लगेगा कि वाकई संघ लोगों को जोड़ने में भरोसा रखता है।
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