प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की कमान खुद संभाल ली है। उनके अब तक 6 दौरे हो चुके हैं और 4 अगले दस दिनों में होने वाले हैं। इस समय उन्हें यूपी के लिए कमांडर-इन-चीफ कहना उपयुक्त होगा।
करीब दो महीने बाद पांच राज्यों यूपी, उत्तराखंड,
पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन प्रधानमंत्री का
सारा फोकस यूपी पर है। मोदी के दौरे ने उस तथ्य को फिर से उजागर कर दिया
है कि केंद्र में सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही तय होता है।
मोदी
आचार संहिता लागू होने से पहले वादों, योजनाओं के शिलान्यास की बारिश यूपी
में कर देना चाहते हैं। चुनाव आयोग जनवरी में किसी समय चुनाव आचार संहिता
लागू कर देगा और तारीखों का ऐलान कर देगा।
आयोग
की टीम इन पांचों राज्यों में तैयारी की समीक्षा के लिए निकल चुकी है। आज
उसकी टीम पंजाब में थी। आयोग की टीम का यूपी दौरा सबसे अंत में है। इसीलिए
मोदी इस मौके को गंवाना नहीं चाहते।
पूर्वी उत्तर प्रदेश पर नजर
इस
क्षेत्र के 28 जिले मिलकर पूर्वी उत्तर प्रदेश बनाते हैं। इसमें करीब 165
विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के 128 विधायक
पूर्वी उत्तर प्रदेश से चुने गए थे। लेकिन 2014 में जो मोदी लहर थी, उसके
मुकाबले 2019 के लोकसभा चुनाव में उसका असर कम रहा और पार्टी कई विधानसभा
क्षेत्रों में हार गई।
हालांकि यह नुकसान
बड़ा नहीं था। लेकिन नुकसान तो नुकसान है। 2019 के लोकसभा चुनाव के आंकड़े
बताते हैं कि पार्टी सिर्फ 274 सीटों पर ही निर्णायक भूमिका में रही, जबकि
2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 315 सीटों पर जीती थी।
मोदी इस तथ्य से वाकिफ हैं कि पूर्वी उत्तर प्रदेश पर थोड़ी सी मेहनत से बेहतर नतीजे आ सकते हैं।
इसलिए उन्होंने एक जिम्मेदार अग्रज की भूमिका निभाते हुए वो रण में उतर पड़े हैं। अक्टूबर में अपने लोकसभा क्षेत्र वाराणसी से उन्होंने इसकी शुरुआत की थी।इसके बाद वो सुल्तानपुर के कूड़ेभार में पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का उद्घाटन करने पहुंचे। कुशीनगर में अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे का उद्घाटन किया। इसके बाद वे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृहनगर गोरखपुर में खाद कारखाने और एम्स का लोकार्पण करने पहुंचे।
इसी सोमवार को वो फिर से वाराणसी पहुंचे और वहां अपने संबोधन में
औरंगजेब की याद दिलाई। मोदी के इस संबंध से बेचारे जिन्ना को राहत मिली
होगी, जिनकी गूंज काफी दिनों से सुनाई दे रही थी।
अब होगा दौरा-ए-खास
मोदी
की पूर्वी उत्तर प्रदेश की यात्रा 18 दिसम्बर से फिर शुरू हो रही है। उनका
कार्यक्रम 28 दिसम्बर तक चलेगा। इस दौरान वो 18 दिसम्बर को शाहजहांपुर में
गंगा एक्सप्रेसवे का शिलान्यास और रैली, 21 दिसम्बर को प्रयागराज में
रैली, 23 दिसम्बर को फिर से काशी में और 28 दिसम्बर को कानपुर में मेट्रो
का उद्घाटन करेंगे।
जाहिर है कि इन तमाम जगहों की कवरेज सीधे टीवी चैनलों
पर होगी और मोदी घोषणाओं की बारिश में कोई कमी नहीं छोड़ेंगे।
दरअसल,
पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन की वजह से भाजपा की स्थिति राजनीतिक
विश्लेषक अच्छी नहीं मान रहे हैं। अभी कल यानी 16 दिसम्बर को ही जिस तरह
सिसौली में राकेश टिकैत का स्वागत हुआ और उसमें भीड़ उमड़ी, वो जनता के मूड
को बता रही है।
हालांकि पिछले कई चुनावों में भाजपा जाट मतदाताओं को अपने
पाले में लाने में सफल रही है। लेकिन राकेश टिकैत ने फिलहाल बाजी पलट दी
है।
टिकैत जाटों की बालियान खाप से आते हैं। इस समय जाटों की सारी
खाप टिकैत परिवार के साथ जुड़ चुकी है। इसका नजारा 5 सितम्बर को ऐतिहासिक
मुजफ्फरनगर किसान महापंचायत में दिखा था। इस महापंचायत में हिन्दू-मुस्लिम
एकता के नारे भी लगे थे। पश्चिमी यूपी में जयंत चौधरी की पार्टी रालोद भी
बेहतर स्थिति में नजर आ रही है। उसका सपा से समझौता हो चुका है।
इस
तरह पश्चिमी यूपी में भाजपा के लिए फिलहाल विपरीत परिस्थितियां बनी हुई
हैं। इसीलिए मोदी पूर्वी उत्तर प्रदेश में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते। मोदी
ही नहीं यूपी की गलियों में गृह मंत्री अमित शाह से लेकर राष्ट्रीय
अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी घूम रहे हैं।अमित
शाह आज लखनऊ में निषाद समाज की रैली को संबोधित करने वाले हैं। लेकिन मोदी
की बात अलग है। उनके भाषण की बात अलग है। आरएसएस-भाजपा मोदी को कैश करने
से चूकना नहीं चाहते।
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