कभी बीजेपी के ख़िलाफ़ मुखर और विपक्षी एकता की पैरोकार रहीं मायावती पर अब बीजेपी के प्रति नरम रुख अपनाने का आरोप क्यों लग रहा है? क्या सिर्फ़ इसलिए कि वह एनडीए के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार जगदीप धनखड़ का समर्थन कर रही हैं? या फिर कुछ और संकेत मिलते हैं? क्या मायावती को भी किसी केंद्रीय एजेंसी का डर है?