मायावती सुर्खियों में हैं। इस बार भाई-भाभी को ढाई सौ से ज़्यादा फ्लैट मिलने के मामले में। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि ये फ्लैट क़रीब आधे दाम पर एक कंपनी से मिले। कंपनी और उनके बीच में जब सौदा हुआ था तब मायावती की सरकार थी। तो सवाल है कि यह सब कैसे हुआ? क्या इसमें कुछ गड़बड़ी है और यदि ऐसा है तो वह गड़बड़ी क्या है?
इस पूरे मामले का पता ऑडिट रिपोर्ट से चला है। इसी रिपोर्ट के आधार पर कहा जा रहा है कि रियल एस्टेट फर्म लॉजिक्स इंफ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड द्वारा विकसित नोएडा अपार्टमेंट परिसर में 261 फ्लैट बसपा सुप्रीमो के भाई और उनकी पत्नी को आवंटित किए गए थे। द इंडियन एक्सप्रेस ने ऑडिट रिपोर्ट के हवाले से ख़बर दी है कि ऐसा ग़लत तरीक़े से, 'धोखाधड़ी से और 'कम क़ीमत' पर किया गया। इसकी शुरुआत तब हुई जब यह कंपनी अस्तित्व में आई। 2007 में बसपा ने उत्तर प्रदेश में चुनाव जीता और मायावती मुख्यमंत्री बनीं। इसके तीन साल बाद मई 2010 में लॉजिक्स इन्फ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी गठित हुई। कंपनी के अस्तित्व में आने के दो महीने बाद ही मायावती के भाई-भाभी ने कंपनी के साथ समझौता कर लिया।
लॉजिक्स इन्फ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड अब दिवालिया होने के कगार पर है। इसी को लेकर कंपनी के गठन से लेकर अब तक यानी 12 साल का ऑडिट किया जा रहा है। इसी ऑडिट रिपोर्ट की पड़ताल के आधार पर द इंडियन एक्सप्रेस ने कुछ तथ्य सामने लाए हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई 2010 में लॉजिक्स ने मायावती के भाई आनंद कुमार और उनकी पत्नी विचित्र लता के साथ समझौता किया। इसके अनुसार नोएडा प्रोजेक्ट ब्लॉसम ग्रीन्स में लगभग 2 लाख वर्ग फुट जगह बेचने के लिए 2,300 रुपये प्रति वर्ग फुट और 2,350 रुपये प्रति वर्ग फुट के हिसाब से समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, 2016-17 में जिस वक्त आनंद कुमार को 2,300 रुपये प्रति स्क्वायर फ़ुट के हिसाब से संपत्ति बेची गई, उस वक्त दूसरे खरीदारों को ये 4,350.85 रुपये प्रति स्क्वायर फ़ुट की दर से बेची गई।
सितंबर 2010 से 2022-23 तक लॉजिक्स ने ब्लॉसम ग्रीन्स में कुल 2,538 आवासीय इकाइयों में से 2,329 इकाइयां बेचीं। अब तक कंपनी ने 944 फ्लैटों वाले आठ टावरों में से 848 खरीदारों को कब्जा दे दिया है। हालांकि बाकी 14 टावरों का सिविल स्ट्रक्चर पूरा हो चुका है, लेकिन टावर अभी कब्जे के लिए तैयार नहीं हैं।
आनंद और विचित्र ने अप्रैल 2016 में कथित अग्रिम राशि के रूप में 28.24 करोड़ रुपये और 28.12 करोड़ रुपये कंपनी को चुकाए, जिसके एवज़ में उन्हें 135 और 126 फ्लैट दिए गए।
जानें कैसे खुला मामला
लॉजिक्स इन्फ्राटेक कंपनी की फ़िलहाल हालत ख़राब है। वह दिवालिया होने की कगार पर पहुँच चुकी है। हालत खस्ता है तो वह बकाया भुगतान भी नहीं कर पा रही है। इसी बीच 15 फरवरी, 2020 को लॉजिक्स इंफ्राटेक को निर्माण कंपनी अहलूवालिया कॉन्ट्रैक्ट्स (इंडिया) लिमिटेड से 7.72 करोड़ रुपये के अवैतनिक बकाया की मांग करते हुए पहला नोटिस मिला। कंपनी ने कुछ वजहों का हवाला देते हुए बकाए की रकम देने में आनाकानी की। 2022 में एनसीएलटी ने कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया को गति देने के लिए दिवालियापन की कार्यवाही का आदेश दिया।
मई 2023 की एक ऑडिट रिपोर्ट में कंपनी के अस्तित्व में आने से लेकर उसके दिवालिया होने की कगार तक पहुंचने के 12 सालों का लेखाजोखा सामने आया है। इसमें इस मामले में हुई अनियमिताओं के बारे में भी जानकारी मिलती है।
रिपोर्ट के अनुसार, ऑडिट में और भी गड़बड़ियों का हवाला दिया गया है। लेन-देन के बारे में और सवाल उठाते हुए ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि आनंद कुमार के 28.24 करोड़ रुपये के भुगतान दिखाने वाले वाउचर को निवेश के बजाय 'ग्राहकों से अग्रिम' भुगतान के तहत दिखाया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'हालाँकि बैंक रसीदें और बैंक विवरण हैं जो राशि (27.60 करोड़ रुपये) की प्राप्ति दिखा रहे हैं, लेकिन हमारे विश्लेषण में हमने पाया कि प्राप्त धन संबंधित पार्टियों को स्थानांतरित कर दिया गया था।'
अनियमितताओं के लगभग इसी तरह के आरोप आनंद कुमार की पत्नी विचित्र लता के लिए लगाए गए थे। इसमें कहा गया है कि फ्लैट कम मूल्य के हैं, उसकी 125 इकाइयों में से 24 दूसरों को आवंटित की जा रही हैं, और उसके भुगतान का 28.85 करोड़ रुपये लॉजिक्स द्वारा संबंधित पार्टियों को बिना स्पष्टीकरण के स्थानांतरित किया जा रहा है। इसी वजह से ऑडिट में इसे 'धोखाधड़ी' कहा गया है।
द इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आनंद कुमार और विचित्र लता दोनों को प्रश्नों की एक सूची मेल की गई, और प्रश्नों की एक सूची उनके निवास पर एक सहयोगी को भी सौंपी गई। वह टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे। संपर्क करने पर 2016 के मध्य तक लॉजिक्स इंफ्राटेक के निदेशक पद पर रहे विक्रम नाथ ने कहा कि वह "बाहर" होने के कारण बोल नहीं सकते। रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्हें भेजे गए सवालों की विस्तृत सूची का कोई जवाब नहीं मिला।
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