अयोध्या की बाबरी मसजिद के ध्वंस के बाद मथुरा की शाही ईदगाह मसजिद पर नज़र गड़ाने वालों को बुधवार को झटका लगा। मथुरा के सिविल कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें यह माँग की गई थी कि इस मसजिद को हटाया जाए क्योंकि जिस जगह वह बनी है, वह श्री कृष्ण जन्मभूमि है, यानी कृष्ण का जन्म उस जगह हुआ था।
श्री कृष्ण विराजमान
अतिरिक्त ज़िला जज छाया शर्मा ने प्लेसेज ऑफ़ वरशिप (स्पेशल प्रोविजन्स) एक्ट, 1991 के आधार पर याचिका को सिरे से खारिज कर दिया।
याचिका में यह कहा गया था कि भगवान श्री कृष्ण विराजमान की ओर से यह याचिका दायर की जा रही थी। यह याचिका 6 कृष्ण भक्तों की ओर से वकील हरि शंकर जैन और विष्णु जैन ने दायर की।
याचिका में कहा गया है, 'वह वयस्क नहीं हैं। वह एक न्यायिक व्यक्ति हैं। वे सेवायतों और मित्रों के माध्यम से मुक़दमा कर सकते हैं। वे संपत्ति का अधिग्रहण कर सकते हैं, उसे रख सकते हैं। उन्हें अपनी संपत्ति रखने और सेवायतों के ज़रिए खोई हुई संपत्ति हासिल करने का हक है।'
अखाड़ा परिषद की रणनीति
इसके पहले अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने कहा था कि वह मथुरा और काशी के मंदिरों के लिए क़ानूनी लड़ाई शुरू करने जा रही है। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, प्रयागराज में 13 अखाड़ों के प्रमुखों की बैठक हाल फ़िलहाल हुई है, जिसमें यह फ़ैसला लिया गया। इस बाबत एक प्रस्ताव भी पारित किया गया। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा था, 'वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि मंदिर को आज़ाद कराने का प्रस्ताव पास किया गया। मुसलिम आक्रमणकारियों और आतंकवादियों ने मुग़ल काल में मंदिरों को तोड़ कर वहां मसजिद व मक़बरे बना दिए।'
अखाड़ा परिषद बहुत बड़ा संगठन नहीं है, उत्तर प्रदेश के बाहर इसका बड़ा आधार भी नहीं है। ऐसे में इसके इस बयान को कुछ स्थानीय आचार्यों की कोशिश माना जा सकता है जो अपने निजी हित के लिए यह सब कर रहे हैं।
आरएसएस पशोपेश में
काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि मंदिर को अयोध्या के राम मुद्दे की तरह गरम करने और इस पर आन्दोलन चलाने के मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पशोपेश में है। पहले वह इस मुद्दे को तूल देना नहीं चाहता था और तर्क देता था कि 'संघ का काम आन्दोलन चलाना नहीं है'। पर अब उसका कहना है कि 'यदि समाज इस पर पहल करता है तो विचार किया जाएगा।'
संघ के संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था, 'संघ आन्दोलन से नहीं जुड़ता है। हम चरित्र निर्माण के लिए काम करते हैं। अतीत में स्थितियां अलग थीं, इसका नतीजा यह निकला कि संघ अयोध्या आन्दोलन से जुड़ गया। हम एक बार फिर चरित्र निर्माण के काम में जुटेंगे।'
भागवत का संदेश साफ है। उनके कहने का मतलब यह है कि संघ का काम आन्दोलन चलाना नहीं है, अयोध्या का मामला अलग था, पर अब इसमें नहीं पड़ना है, हिन्दुओं को संगठित करना है। यानी उसे काशी और मथुरा के मंदिर आन्दोलनों से न जोड़ा जाए
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की बैठक के बाद संघ के रवैए में बदलाव के संकेत दिखने लगे हैं। अब उसने कहा है, 'यह हमारी पहल नहीं होगी। यदि समाज ऐसा करता है तो हम विचार करेंगे। काशी और मथुरा विषय नहीं हैं और हम समाज को प्रेरित नहीं करेंगे।'
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