यूपी के चौथे चरण में जिन 13 सीटों पर 13 मई को मतदान होगा, उनमें शाहजहाँपुर, खीरी, धरौहरा, सीतापुर, हरदोई, मिश्रिख, उन्नाव, फर्रुखाबाद, इटावा, कन्नौज, कानपुर, अकबरपुर, बहराइच (रिजर्व) हैं। इनमें से कन्नौज और उन्नाव हॉट सीट है। कन्नौज में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उन्नाव में भाजपा के फायर ब्रांड नेता साक्षी महाराज चुनाव लड़ रहे हैं। खीरी में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी की प्रतिष्ठा दांव पर है। यहां पर फिलहाल 6 प्रमुख सीटों की जानकारी दी जा रही है। सात सीटों की जानकारी बाद में दी जाएगी।
यूपी में सभी 80 सीटों का मतदान 7 चरणों में रखा गया है। पिछले तीन चरणों के मतदान से भाजपा खुश नजर नहीं आ रही है। यादव बेल्ट की अधिकांश सीटों पर भाजपा को काफी मशक्कत करना पड़ी है। संभल की मुस्लिम बहुल सीट पर रामपुर जैसे हालात बनाए गए और समुदाय विशेष को वोट डालने से रोकने की कोशिश का आरोप लगा है। इस संबंध में चुनाव आयोग के पास भी शिकायत पहुंची है। लेकिन उसने किसी भी शिकायत का संज्ञान नहीं लिया, जबकि सोशल मीडिया पर तमाम वीडियो सच को बता रहे हैं। बहरहाल, बात चौथे चरण की हो रही है।
शाहजहांपुर लोकसभा क्षेत्र
शाहजहाँपुर में भाजपा ने अपने सांसद अरुण कुमार सागर को फिर से मैदान में उतारा है। सपा ने अपना प्रत्याशी बदल दिया है। पहले राजेश कश्यप को टिकट दिया गया लेकिन बाद में ज्योत्सना गोंड को टिकट दिया गया। बसपा ने दाउदराम वर्मा को मैदान में उतारा है। 2019 के चुनाव में अरुण कुमार सागर जीते थे। उन्हें 6,88,990 वोट मिले, जबकि बसपा के अमर चंद्र जौहर को 4,20,572 वोट मिले। अरुण कुमार सागर ने 268,418 वोटों से जीत हासिल की। 2019 में सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। पीएम मोदी से लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ तक यहां रैलियां कर चुके हैं लेकिन किसी भी राजनीतिक दल के पक्ष में हवा बहती नहीं दिख रही है। भाजपा प्रत्याशी संसाधनों से मजबूत हैं।
हॉट सीटः कन्नौज लोकसभा
यूपी में इंडिया गठबंधन की स्थिति को मजबूत करने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अंतिम समय में फैसला किया कि वो इस सीट से चुनाव लड़ेंगे। हालांकि पहले तेज प्रताप यादव के नाम पर विचार हुआ था। अखिलेश का मुकाबला अब भाजपा के सुब्रत पाठक से है। जिन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को 12,000 से अधिक वोटों से हराया था। डिंपल इस बार मैनपुरी से मैदान में हैं। अखिलेश कन्नौज सीट से सन् 2000 में जीत दर्ज कर चुके हैं। फिर 2004 और 2009 में भी यहां से जीत चुके हैं। 2014 के आम चुनाव में डिंपल यादव ने यह सीट जीती थी। इस तरह देखा जाए तो घूम फिरकर यह सीट सपा के पास आती रही है। 2019 में जरूर वो यहां से हारी थी।
कन्नौज में पूजा करते अखिलेश और उस मंदिर को गंगा जल से धोते भाजपा कार्यकर्ता।
सपा प्रमुख ने अपना चुनाव प्रचार शुरू करने से पहले सोमवार को कन्नौज के प्रसिद्ध बाबा गौरी शंकर मंदिर में पूजा की। लेकिन अखिलेश के जाने के बाद भाजपा ने पूरे मंदिर को गंगा जल से धोया। भाजपा ने इस बात की आड़ ली कि अखिलेश के साथ गैर सनातनी मंदिर में गए थे। लेकिन इस घटना से कन्नौज के ओबीसी और मुस्लिम मतदाताओं में काफी नाराजगी है। गांवों में लोग भाजपा के इस कृत्य की निन्दा कर रहे हैं। सपा ने अपने कार्यकर्ताओं के जरिए इसे कन्नौज में मुद्दा बना दिया है। कन्नौज में करीब 18 लाख मतदाता है। जिनमें 2.5 लाख यादव, 2.5 लाख मुस्लिम और इतने ही दलित मतदाता हैं। इनके अलावा राजपूत 10 फीसदी और ब्राह्मण 15 फीसदी मतदाता हैं। इस तरह से जातीय समीकरण सपा के पक्ष में है। यही वजह है कि सपा यहां से सिर्फ 2019 का ही चुनाव हारी है, लेकिन 2014 की मोदी लहर में चुनाव जीत चुकी है। इससे पहले के चुनाव भी सपा लगातार जीती है।
हॉट सीटः उन्नाव लोकसभा सीट
साक्षी महाराज की वजह से यह सीट हॉट है। भाजपा ने उन्हें इस सीट पर फिर से टिकट दिया है। साक्षी महाराज अपने विवादास्पद बयानों के लिए मशहूर हैं। सपा ने अन्नू टंडन और बसपा ने अशोक कुमार पांडे को उतारा है। साक्षी महाराज ने 2019 के आम चुनाव में 56.87 प्रतिशत वोट शेयर के साथ यह सीट जीती थी। सपा उम्मीदवार अरुण शंकर शुक्ला को 24.46 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 3,02,551 वोट मिले थे। साक्षी महाराज ने अरुण शुक्ला पर 4,00,956 वोटों के भारी अंतर से जीत हासिल की थी। उस समय सपा और बसपा का समझौता था। लेकिन इस बार सपा और कांग्रेस का समझौता है। बसपा ने सोशल इंजीनियरिंग करते हुए ब्राह्मण प्रत्याशी को उतारा है। लेकिन उससे इलाके में कोई असर पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है।
उन्नाव से भाजपा प्रत्याशी साक्षी महाराज
उन्नाव में करीब 30.5 फीसदी दलित वोट और 11.7 फीसदी मुस्लिम वोट हैं। लेकिन इन सब पर भारी पड़ते हैं लोधी और पासी मतदाता, जो 7 लाख से ज्यादा हैं। लोधी और पासी काफी समय से भाजपा का वोटर रहा है। लेकिन इस बार ये बात सामने निकल कर आ रही है कि ओबीसी की अति पिछड़ी जातियां अब खुद को सपा से जोड़ रही हैं। साक्षी के पक्ष में बस एक ही बात जाती है कि वो खुद को राष्ट्रीय स्तर का हिन्दू नेता बताकर प्रचार कर रहे हैं। कुल मिलाकर इस बार भाजपा प्रत्याशी साक्षी महाराज यहां कड़े मुकाबले में फंसे हुए हैं। अगर दलित वोट भाजपा को नहीं मिला तो साक्षी मुश्किल में आ सकते हैं।
कानपुर लोकसभा सीट
यहां भाजपा के रमेश अवस्थी, कांग्रेस के आलोक मिश्रा और बसपा के कुलदीप भदौरिया के बीच मुकाबला है। भाजपा के सत्यदेव पचौरी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से जीत हासिल की थी। उन्हें 4,68,937 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के श्रीप्रकाश जयसवाल को 3,13,003 वोट मिले। सत्यदेव पचौरी ने 1,55,934 वोटों के उल्लेखनीय अंतर से शानदार जीत हासिल की। कानपुर में लोकल मुद्दे हावी हैं। कानपुर में कांग्रेस प्रत्याशी की हालत अच्छी नहीं कही जा सकती। पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल के परिवार ने भाजपा का दामन थाम लिया है। इससे कांग्रेस प्रत्याशी को प्रचार करने तक में दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
हॉट सीट लखीमपुर खीरी लोकसभा
लखीमपुर खीरी सीट देशभर में चर्चित है। केंद्रीय गृहराज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी को भाजपा ने यहां से तीसरी बार टिकट दिया है। हालांकि भाजपा ने ब्रजभूषण शरण सिंह, रमेश बिधूड़ी, अनंत हेगड़े जैसों विवादित चेहरों का टिकट काट दिया लेकिन जिस मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा उर्फ मोनू पर किसानों को रौंदने और मारने का आरोप है, भाजपा ने उसके पिता को टिकट दिया है। इतना ही नहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार 8 मई को टेनी के लिए खीरी में आकर जनसभा की और वोट मांगे। टेनी के मुकाबले सपा ने उत्कर्ष वर्मा और बसपा ने सिख नेता अंशय कालरा को टिकट दिया है। बसपा के सिख प्रत्याशी का सीधा फायदा भाजपा के टेनी को मिल रहा है। क्योंकि खीरी में सिख मतदाता भारी तादाद में हैं। जाहिर सी बात है कि किसानों को जीप से रौंदे जाने की घटना से सिख नाराज हैं। केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी
खीरी लोकसभा सीट ब्राह्मण और कुर्मी बहुल सीट मानी जाती है। इसलिए सपा ने भी यहां उत्कर्ष वर्मा को इसी वजह से खड़ा किया है। कुर्मी और अन्य ओबीसी जातियां यहां 7 लाख हैं। मुस्लिम 2,65,000, दलित 2.5 लाख, ब्राह्मण 3 लाख और सिख करीब 1 लाख है। कागजों पर अगर इस जातीय समीकरण को देखा जाए तो सपा प्रत्याशी का पलड़ा भारी पड़ना चाहिए लेकिन तमाम वजहों से टेनी का पलड़ा भारी है। इस बार जिस तरह ओबीसी जातियां भाजपा से हटी हैं तो शायद नतीजा कुछ और आए।
फर्रुखाबाद लोकसभा सीट
यह सीट पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की वजह से मशहूर रही है। लेकिन पिछले चुनाव में कांग्रेस की हालत इतनी पतली रही कि यह सीट अब इंडिया गठबंधन के खाते में चली गई है। भाजपा ने अपने सांसद मुकेश राजपूत को फिर से मैदान में उतारा है, जिन्होंने 2019 में बसपा के मनोज अग्रवाल को 2,21,702 वोटों के अंतर से हराया था। इस बार सपा ने डॉ नवल किशोर शाक्य को खड़ा किया है जो इस इलाके में जाने-माने कैंसर डॉक्टर हैं। बसपा ने यहां से क्रांति पांडे को उतारा है। लेकिन इस सीट पर भाजपा और सपा का सीधा मुकाबला है। हाल ही में सपा नेता ने चुनाव प्रचार के दौरान वोट जिहाद की अपील की थी। इस मामले को भाजपा ने तूल देने की कोशिश की। लेकिन मामला जम नहीं पाया कि क्योंकि सपा के ओबीसी प्रत्याशी ने इस बयान को महत्व नहीं दिया। फर्रुखाबाद सीट के जातिगत आंकड़ों पर नजर डालें तो इसके तहत आने वाले सदर, भोजपुर, अमृतपुर, कायमगंज और अलीगंज में लोधी मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। दूसरे स्थान पर शाक्य मतदाता हैं।
इसके बाद मुस्लिम, यादव, क्षत्रिय और ब्राह्मण मतदाताओं का दबदबा है। हालाँकि, पाल, कुर्मी, बाथम, राठौड़ और अनुसूचित जाति के मतदाताओं की भी शाखाएँ हैं। भाजपा ने लगातार तीसरी बार लोधी समाज पर भरोसा जताते हुए निवर्तमान सांसद को फिर से अपना उम्मीदवार बनाया है।
वहीं, इस बार सपा ने भी सही दांव खेला है और संख्या बल के चलते लोकसभा क्षेत्र में दूसरे नंबर पर रहने वाले प्रत्याशी शाक्य को मैदान में उतारा है। लेकिन सपा के बड़ी तादाद में मुस्लिम वोट भी है। अगर फर्रुखाबाद जिले में मुस्लिम ठीक से वोटिंग कर पाए तो सीट सपा के पक्ष में जा सकती है।
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