जौनपुर की कोर्ट ने सोमवार को शहर की 14वीं शताब्दी की अटाला मस्जिद के सर्वे की मांग करने वाली स्वराज वाहिनी एसोसिएशन की याचिका पर आदेश पारित करने से फिलहाल इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के 12 दिसंबर के अंतरिम आदेश में देशभर की अदालतों को कोई भी प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित करने से रोक दिया गया था। इसमें सर्वे का आदेश भी शामिल है।
जौनपुर कोर्ट ने सोमवार को कहा कि “जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि लंबित मुकदमों में सुनवाई की अगली तारीख तक, कोई भी अदालत कोई प्रभावी अंतरिम आदेश या अंतिम आदेश पारित नहीं करेगी, जिसमें सर्वे का निर्देश देने वाले आदेश भी शामिल हैं। 17सी पर कोई सुनवाई/अमीन रिट के लिए पुलिस सहायता के रूप में 17सी पर आदेश सुप्रीम कोर्ट के अगले निर्देशों तक इस अदालत द्वारा पारित नहीं किया जाएगा। कार्यालय कोई भी अमीन रिट जारी नहीं करेगा। माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कड़ाई से अनुपालन किया जाए।”
सुप्रीम कोर्ट के 12 दिसंबर के आदेश को देश में मुगलकाल की मस्जिदों और दरगाहों के मालिकाना हक का दावा करने वाले कई मुकदमे दायर करने के बारे में चिंताओं को बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप के रूप में देखा जा सकता है। पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के एक फैसले में उनकी टिप्पणी की आड़ में देशभर में धार्मिक स्थलों के सर्वे की माग होने लगी। हर पुरानी मस्जिद के नीचे मंदिर तलाशा जाने लगा। संभल में मस्जिद के सर्वे के दौरान हुई हिंसा में 4 मुस्लिम युवक मारे गये थे। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने मस्जिदों के सर्वे पर अब रोक लगा दी है।
अटाला मस्जिद प्रकरण
स्वराज वाहिनी एसोसिएशन (एसवीए) और संतोष कुमार मिश्रा ने एक मुकदमा दायर कर दावा किया है कि जौनपुर में अटाला मस्जिद दरअसल 'अटाला देवी मंदिर' है और सनातन धर्म के अनुयायियों को वहां पूजा करने का अधिकार है। उन्होंने इसका कब्जा दिलाने के लिए भी प्रार्थना की है। उन्होंने गैर-हिंदुओं को इस मस्जिद में प्रवेश करने से रोकने की भी मांग की है। इसी मामले में याचिकाकर्ता ने सर्वे के लिए भी आवेदन दाखिल किया था।
हाल ही में, वक्फ अटाला मस्जिद ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें इस मामले में मुकदमा चलाने की अनुमति दी गई थी। हाईकोर्ट को बताया गया है कि जौनपुर कोर्ट में हिन्दू पक्ष ने अपने मुकदमे में दावा किया है कि 13वीं शताब्दी के दौरान, भारत में फ़िरोज़ तुगलक के हमले के बाद, उस कथित मंदिर को आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया गया, और उसके स्तंभों पर एक मस्जिद का निर्माण कथित तौर पर किया गया था। वादी का आगे तर्क है कि तुगलक ने हिंदुओं को उस स्थान पर प्रवेश करने से रोका, जो मूल रूप से पारंपरिक शैली में हिंदू कारीगरों द्वारा कथित तौर पर बनाया गया एक हिंदू मंदिर था।
हिन्दू पक्ष का याचिका में यह भी कहना है कि मंदिर को ध्वस्त करके किसी भी मस्जिद का निर्माण नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इस्लाम और कुरान ध्वस्त मंदिर के स्थान पर बनी मस्जिद में नमाज अदा करने की अनुमति नहीं देते हैं, उनका तर्क है कि यह शरिया कानून के खिलाफ है। लेकिन इसके बावजूद जौनपुर में ऐसा किया गया।
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