बेंच ने यह सवाल भी किया, 'जब यह बलात्कार जैसा जघन्य अपराध हो और उसकी जाँच चल ही रही हो, जाँच पूरी होने के पहले ही कोई अफ़सर कैसे यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि बलात्कार हुआ ही नहीं है, और वह अफ़सर जो इस जाँच से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ ही नहीं है?'
एडीजी पर उठाए सवाल
याद दिला दें कि इसके पहले उत्तर प्रदेश पुलिस ने कई बार कहा है कि बलात्कार नहीं हुआ है। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक प्रशांत कुमार ने इसकी दो वजहें बताई थीं। उन्होंने कहा था कि फ़ोरेंसिक रिपोर्ट में शुक्राणु या अंडाणु नहीं मिला है। दूसरे, पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट में मृत्यु का कारण गर्दन में आई चोट है।'बलात्कार क़ानून के बारे में पता है?'
हाई कोर्ट की बेंच ने प्रशांत कुमार से कुछ तल्ख़ी से पूछा, 'क्या आपको यह पता है कि 2013 में हुए संशोधन के बाद से बलात्कार की परिभाषा बदल गई है और अब वीर्य का पाया जाना एक कारक हो सकता है, पर बलात्कार साबित करने के लिए वीर्य का पाया जाना अनिवार्य नहीं है।'ज़बरन अंत्येष्टि पर सवाल
इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक़, इसी तरह अदालत ने परिवार वालों की इच्छा के ख़िलाफ़ पीड़िता के ज़बरन अंतिम संस्कार पर सवाल उठाए और पूरे पुलिस प्रसाशन को लताड़ लगाई।बेंच ने कहा, 'भारत ऐसा देश है जो मानवता के धर्म का पालन करता है जहां हर आदमी दूसरों का सम्मान जीवन और मृत्यु के बाद भी करता है। ऐसा लगता है कि स्थानीय प्रशासन ने ज़िला मजिस्ट्रेट के आदेश पर घर वालों की अनुमित लिए बग़ैर ही पीड़िता का अंतिम संस्कार कर दिया।'
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'पीड़िता को कम से कम यह अधिकार तो था कि उसकी अंत्येष्टि उसके परिजनों द्वारा पूरे सम्मान और रीति रिवाज के अनुसार की जाती। अंत्येष्टि एक संस्कार यानी अंतिम संस्कार है और क़ानून व्यवस्था की आड़ में इस पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है।'
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच
मौलिक अधिकार का मुद्दा
अदालत ने इस मामले में जीवन के बुनियादी अधिकार का मुद्दा भी उठाया और कहा कि पुलिस ने इस अधिकार का उल्लंघन किया है। बेंच ने कहा, 'इस तरह, जीवन के अधिकार, सम्मानपूर्वक जीवन जीने और मृत्यु के बाद भी सम्मान और इसके साथ ही सम्मानजनक तरीके से अंतिम संस्कार के अधिकार का उल्लंघन किया गया है। इससे पीड़िता के परिजनों का ही नहीं, बल्कि वहां मौजूद रिश्तेदारों और सभी लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं।'“
'क्या रात के समय परिवार वालों की अनुमति के बग़ैर, उन्हें पीड़िता का मुंह दिखाए बिना ही इस तरह उसका अंतिम संस्कार कर देना संविधान के अनुच्छेद 21 और 25 में दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है? यदि ऐसा है तो इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है, यह तय किया जाना चाहिए और पीड़िता के परिजनों को इसकी भरपाई कैसे की जा सकती है, इस पर विचार होना चाहिए।'
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच
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