आख़िरी दो चरणों में उत्तर प्रदेश में होने जा रहे चुनाव भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राजनीति के लिए बहुत अहम हैं। औद्योगिक रूप से पिछड़े हुए इस इलाक़े के लोग खेती किसानी बर्बाद होने के बाद इस इलाक़े के लोग नौकरियों पर निर्भर हो गए हैं। साथ ही पिछले 3-4 दशक में इन इलाक़ों के कुटीर उद्योगों ने दम तोड़ दिया है, जिसकी वजह से लोग नौकरी की तलाश में बड़े शहरों में जाते हैं।
झूठा साबित हुआ ‘अच्छे दिन’ का सपना, रोज़ी-रोज़गार का संकट
- उत्तर प्रदेश
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- 7 May, 2019

आख़िरी दो चरणों में उत्तर प्रदेश के जिन क्षेत्रों में चुनाव होने जा रहे हैं वे औद्योगिक रूप से पिछड़े हुए हैं। गोरखपुर में अब हथकरघा, खादी, शहद उत्पादन, चमड़े का कारोबार कहीं नज़र नहीं आता है। क्या ये चुनावी मुद्दे बनेंगे?
गोरखपुर शहर का उदाहरण लें तो यह ज़िला चर्म उद्योग, शहद पालन और हथकरघा का बड़ा केंद्र माना जाता था। ग्रामीण इलाक़ों में आज भी तमाम घरों में गाँधी चरखे रखे हुए मिल जाते हैं। अब उनका इस्तेमाल नहीं होता है। क़रीब 4 दशक पहले घर की महिलाएँ सूत कातकर गाँधी आश्रम खादी भंडारों को देती थीं और उन्हें वहाँ से सूत कातने के लिए रुई और पहनने के लिए पर्याप्त कपड़ा मिल जाता था। इसी दौर में गोरखनाथ फ्लाईओवर से लेकर सूरजकुंड स्टेशन तक सड़क किनारे जानवरों की खाल सूखते हुए मिलती थी और उसी से सटे चमड़ा क़ारोबारियों का मकान होता था, जहाँ चमड़े के जूते और चप्पल बनाए जाते थे। इनकी आपूर्ति पूरे पूर्वांचल में होती थी और ब्रांडेड जूते चप्पलों का असर कम था।