नरसंहार 1981 में। सजा 2025 में। यूपी के दिहुली नरसंहार मामले का यही हस्र हुआ है। चार दशक पहले 24 दलितों को एक झटके में मौत के घाट उतार दिया गया था। अब 44 साल बाद तीन दोषियों को सजा हुई है। इस केस का हाल ऐसा है कि सुनवाई के दौरान ही 13 आरोपियों की मृत्यु हो गई। एक और अजीबोग़रीब बात तो यह है कि एक आरोपी 44 साल से फरार है। अब जो तीन दोषियों को सजा हुई है वो ऊपरी अदालत जाने की तैयारी में हैं। यानी अभी और भी इस केस में लंबा समय लग सकता है।
दिहुली नरसंहार: 24 दलितों की हत्या पर 44 साल बाद न्याय या सिर्फ़ एक फ़ैसला?
- उत्तर प्रदेश
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- सत्य ब्यूरो
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- 19 Mar, 2025
1981 में यूपी के दिहुली में 24 दलितों का नरसंहार हुआ, लेकिन 44 साल बाद 2025 में तीन दोषियों को सजा सुनाई गई। सुनवाई के दौरान 13 आरोपी मर चुके, एक अभी भी फरार है। क्या यह न्याय है या सिर्फ एक औपचारिकता?

दरअसल, यह मामला उत्तर प्रदेश के दिहुली गांव में 1981 में हुए 24 दलितों के नरसंहार का है। इस मामले में 44 साल बाद मैनपुरी की एक अदालत ने तीन दोषियों- राम सेवक, कप्तान सिंह और रामपाल को फांसी की सजा सुनाई। इस जघन्य अपराध को 'रेयर ऑफ़ द रेयरेस्ट' क़रार देते हुए अदालत ने अपना फ़ैसला सुनाया। लेकिन इस लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद सवाल उठता है कि क्या यह वाक़ई में न्याय है? और अगर है तो इतनी देरी क्यों? क्या यह सच नहीं कि 'न्याय में देरी, न्याय से वंचित होने के समान है'?
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