कोरोना से निपटने में योगी सरकार बुरी तरह से नाकाम रही है। अब उसने अपनी नाकामी को छिपाने के लिये अस्पतालों पर डंडा चलाने का फ़ैसला किया है। उसने अपने एक ताज़ा फ़ैसले में ऐलान किया है कि जो अस्पताल अपने यहाँ ऑक्सीजन की कमी की शिकायत कर नोटिस चस्पा कर रहे हैं या इस बारे में मीडिया से बात कर रहे हैं, उनके ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जायेगी।
साथ ही उन अस्पतालों को भी नहीं बख्शा जायेगा जो ऑक्सीजन की कमी की वजह से रोगियों की भर्ती नहीं कर रहे हैं या फिर अपने अस्पताल में ऑक्सीजन नहीं होने का नोटिस चिपका रहे हैं। इसके अलावा इस बात की भी जाँच होगी कि कहीं ऐसे अस्पताल इस तरह की बात कर पैनिक तो नहीं फैला रहे हैं।
कोलकाता से निकलने वाले अख़बार, 'द टेलीग्राफ', ने इस बारे में एक खबर छापी है। अख़बार के मुताबिक़, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अफ़सरों के साथ एक मीटिंग में इस बाबत आदेश दिये हैं।
मामला क्या है?
रविवार को हुयी इस मीटिंग में मुख्यमंत्री ने वरिष्ठ अधिकारियों, डिविज़नल कमिश्नर्स और पुलिस महानिरीक्षकों को साफ निर्देश दिये हैं कि ऐसे अस्पतालों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई हो जो ऑक्सीजन की कमी के कारण मरीज़ों को अस्पताल से डिस्चार्ज कर रहे हैं और इस बारें में मीडिया को जानकारी दे रहे हैं।
सत्य हिंदी आपको लगातार ये जानकारी दे रहा है कि यूपी में कोरोना से हालत बहुत ख़राब है। चारों तरफ़ हाहाकार मचा है। लोगों को अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहा है। ऑक्सीजन की क़मी से मरीज़ों की जान जा रही है। श्मशान घाट पर लाशों के ढेर लगे हैं।
सरकार अपनी ग़लती मानने को तैयार नहीं हैं कि उसने समय रहते स्वास्थ्य तंत्र को पुख़्ता नहीं किया। अब यह भी शिकायत मिल रही है कि राज्य में कोरोना के टेस्ट भी ठीक से नहीं हो रहे हैं। मरने वालों की संख्या भी सरकारी आँकड़ों में कम बताये जा रही है।
योगी ख़ुद हुए थे शिकार
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद भी कोरोना के शिकार हो गये थे। इनका दावा है कि राज्य में न तो ऑक्सीजन की कमी है और न ही अस्पतालों में बेड का टोटा है। अब जब कोरोना ने महासंकट का रूप धारण कर लिया है तब सरकार ने सौ ज़्यादा बेड वालों अस्पतालों में आक्सीजन प्लांट लगाने के आदेश दिये हैं ।
पिछले दिनों कई अस्पतालों ने ऑक्सीजन की कमी होने या ख़त्म होने के बारे में नोटिस चिपकाया था। ग़ाज़ियाबाद के कई अस्पतालों की तसवीरें सोशल मीडिया में वायरल भी हुयी थी। अब ऐसा करना अपराध माना जायेगा। योगी सरकार के इस आदेश से अस्पतालों में खासी नाराज़गी है।
कई अस्पताल मालिकों और डाक्टरों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा है कि सरकार अपनी नाकामी को छिपाने के लिये ये काम कर रही है और अस्पतालों को बलि का बकरा बनाने की कोशिश कर रही हैं।
क्या कहना है अस्पतालों का?
इन लोगों का कहना है कि अगर अस्पतालों में आक्सीजन नहीं है तो फिर कैसे वो मरीज़ों का इलाज कर सकते हैं या नये मरीज़ भर्ती कर सकते है। हम मरीज़ों के परिवार वालों को धोखा नहीं दे सकते हैं । ये उनकी ज़िंदगी का सवाल है। अगर आक्सीजन नहीं है तो तिमारदारों को समय रहते बताना पड़ेगा कि वो कहीं और मरीज़ को ले जाये ।
अख़बार के मुताबिक़ एक अस्पताल पदाधिकारी ने कहा, “मैं मुख्यमंत्री महादय को अस्पतालों का दौरा करने का न्योता देता हूँ कि वो खुद आकर मुआयना करें और देखें क्या हाल है और कैसे उन्होंने अस्पतालों को अपने हाल पर छोड़ दिया है।” उन्होने फिर कहा, “मुख्यमंत्री को इस बात की चिंता नहीं है कि कैसे श्मशान घाट और क़ब्रिस्तान कम पड़ गये हैं। उनकी चिंता इतनी है कि अस्पताल उनकी कमियों को सार्वजनिक न करें और सच छुपाये।”
फ़िरोज़ाबाद के एक डॉक्टर ने अख़बार को बताया कि उन्हें 100 आक्सीजन सिलिंडर की ज़रूरत होती है तो प्रशासन की ओर से सिर्फ़ 10 सिलिंडर मिलते हैं। ऐसे में मरीज़ों का इलाज वे कैसे करे।
तुग़लकी फ़रमान क्यों?
अख़बार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि शनिवार को आगरा के 10 अस्पतालों ने क़रीब एक हज़ार मरीज़ों को ऑक्सीजन की कमी की वजह से डिस्चार्ज कर दिया। अख़बार ने यह बात इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के स्थानीय अध्यक्ष डॉक्टर
ओ. पी. यादव के हवाले से कहीं है।
सवाल यह उठता है कि योगी सरकार इस तरह के तुग़लक़ी फ़रमान क्यों जारी कर रही है? क्या वह अपनी नाकामी को छिपाना चाहती है? क्या उसे नहीं पता है कि उसके ऐसे बेतुके आदेश से लोगों की जान को ख़तरा होगा?
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