कांग्रेस ने आजमगढ़ और रामपुर के उपचुनाव में अपने उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारा। लेकिन पार्टी ने ऐसा क्यों किया, यह सवाल उत्तर प्रदेश की सियासत में दिलचस्पी रखने वाले लोग पूछ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के हालिया विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हालत बेहद खराब रही और वह बहुत मुश्किल से ढाई फीसद वोट जुटा सकी। उसे सिर्फ 2 सीटों पर ही जीत मिली और हालात यह हैं कि विधानसभा चुनाव के बाद से ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद खाली है और पार्टी किसी भी नेता को इस पद पर नियुक्त नहीं कर सकी है।
आजमगढ़ और रामपुर सीट पर मुख्य मुकाबला बीजेपी और एसपी के बीच ही माना जा रहा है। बीएसपी ने रामपुर सीट पर उम्मीदवार नहीं उतारा है जबकि आजमगढ़ सीट पर उसने पूर्व विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को उम्मीदवार बनाया है।
पार्टी महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा के पूरी ताकत लगाने के बाद भी कांग्रेस उत्तर प्रदेश में खड़ी नहीं हो सकी। आगे भी ऐसा नहीं लगता कि पार्टी उत्तर प्रदेश में खड़ी हो सकती है।
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हालांकि फिर भी यह उम्मीद की जा रही थी कि कांग्रेस आजमगढ़ और रामपुर का चुनाव जरूर लड़ेगी लेकिन उम्मीदवारों को न उतारकर उसने यह संदेश दिया है कि वह पहले ही हार मान चुकी है।
कब मिलेगा प्रदेश अध्यक्ष?
उत्तर प्रदेश के कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि मई में हुए चिंतन शिविर से पहले ही पार्टी किसी नेता को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर देगी। लेकिन कुछ नहीं हुआ। आचार्य प्रमोद कृष्णम और पीएल पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष पद के दावेदारों में सबसे आगे बताया जा रहा है लेकिन पार्टी न जाने क्यों किसी नेता को इस पद पर नियुक्त नहीं कर रही है।
विधानसभा चुनाव के ढाई महीने बाद प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश पहुंचीं और इससे भी पता चला कि चुनाव नतीजों से वह भी बेहद निराश हैं।
2024 के लोकसभा चुनाव के लिए जो तैयारी कांग्रेस को करनी चाहिए उसमें वह काफी पीछे दिखती है। तमाम बड़े राज्यों से वह लगभग साफ हो चुकी है और गिने-चुने दो राज्यों में अपने दम पर सरकार में है। नेताओं की गुटबाजी और बयानबाजी के कारण पार्टी को खासा नुकसान हो चुका है और उदयपुर में हुए चिंतन शिविर के बाद भी पार्टी के अंदर वह ताजगी नहीं दिखाई देती जिसकी उम्मीद की जा रही थी।
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