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मूर्तियों पर ख़र्चे : क्या मायावती को लौटाने पड़ेंगे 59 सौ करोड़ रुपये?

मायावती को मूर्तियों पर ख़र्च की गई रकम लौटानी पड़ सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने मूर्तियों पर हुए ख़र्च के मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। मामले की सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि पहली नज़र में यह लगता है कि बीएसपी नेता मायावती को मूर्तियों के निर्माण पर किया गया सारा ख़र्च लौटाना पड़ सकता है। कोर्ट इस मामले में 2 अप्रैल को अगली सुनवाई करेगा। 

बता दें कि साल 2007 से 2012 के दौरान उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार के शासन में बसपा संस्थापक कांशीराम और बसपा के चुनाव निशान हाथी की मूर्तियाँ बनवाई गई थीं। लखनऊ, नोएडा और कुछ अन्य जगहों पर इन मूर्तियों का निर्माण करवाया गया था। अदालत इस मामले में दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। बेंच में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना भी शामिल थे। 

इस संबंध में सतर्कता विभाग की ओर से शिकायत की गई थी कि मूर्तियों और स्मारकों के निर्माण में 111 करोड़ का घोटाला हुआ है। रिपोर्ट में मायावती के अलावा उनके क़रीबी रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बाबू कुशवाहा और 12 अन्य विधायकों पर स्मारकों के निर्माण के लिए पत्थर ख़रीदने में अनियमितता का आरोप लगाया था। इसमें कुल 199 लोगों का नाम शामिल किया गया था।

आख़िर कितना धन ख़र्च हुआ 

इस बात पर लगातार बहस होती रही है कि मायावती ने उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहते हुए मूर्तियों पर कितना धन ख़र्च किया। तमाम विपक्षी राजनीतिक दलों के नेता इस बारे में अलग-अलग आँकड़े जारी करते रहे हैं। 

प्राधिकरण की रिपोर्ट का जिक़्र ज़रूरी 

इस बारे में लखनऊ विकास प्राधिकरण की एक रिपोर्ट का जिक़्र करना ज़रूरी है। प्राधिकरण ने कुछ साल पहले दी गई अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि लखनऊ, नोएडा और ग्रेटर नोए़डा में 9 जगहों पर पार्कों, स्मारकों और मूर्तियों के निर्माण में 5,919 करोड़ रुपये ख़र्च हुए थे। सूत्रों के मुताबिक़, इसमें ज़मीन की क़ीमत को शामिल नहीं किया गया था। रिपोर्ट बताती है कि इन पार्कों की मरम्मत के लिए 5,634 लोगों को लगाया गया था। 

हालाँकि, प्राधिकरण ने मायावती के शासन के दौरान मूर्तियों के निर्माण पर कोई शिकायत नहीं की थी और मायावती की सरकार के जाने के बाद ही यह रिपोर्ट दी थी। सूत्रों का कहना है कि जिस कमेटी ने यह रिपोर्ट दी थी वह मायावती सरकार ने ही बनाई थी। 

प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार, लखनऊ के गोमती नगर में बनाए गए भीमराव अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल पर मायावती सरकार ने 1362 करोड़ रुपये ख़र्च किए थे। यह परिवर्तन स्थल 38 हेक्टेयर में बना था और इसकी देखभाल के लिए 893 कर्मचारियों को लगाया गया था। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने इस परिवर्तन स्थल के बाहर बने दो पार्कों के विकास के लिए 750 करोड़ रुपये ख़र्च किए थे। इनमें अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन प्रतीक स्थल, अंबेडकर गोमती विहार खंड 1 और 2 और दो प्रशासनिक ब्लॉक शामिल थे। यह सभी 32 हेक्टेयर में फैले हुए थे और इनकी देखरेख के लिए 962 कर्मचारियों को तैनात किया गया था। 

राम, पटेल की मूर्ति पर भी हुआ ख़र्च

यहाँ इस बात का भी जिक़्र किया जाना ज़रूरी है कि अगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मायावती को मूर्तियों के निर्माण पर ख़र्च किया गया पैसा वापस लौटाना पड़ सकता है तो फिर यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार जो अयोध्या में भगवान राम की 221 मीटर ऊँची मूर्ति लगाने जा रही है, क्या उसे भी इस पर खर्च़ की गई रकम लौटानी होगी। इसी तरह गुजरात में बनी सरदार पटेल की मूर्ति को बनाने में क़रीब 2,989 करोड़ रुपये का खर्च आया है, इस मूर्ति पर किए गए ख़र्च की भरपाई किससे की जाएगी?

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क़मर वहीद नक़वी
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