उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में महज 8 महीने का वक़्त बचा है। छह महीने पहले तक ख़ुद को बाक़ी राजनीतिक दलों से आगे मान रही बीजेपी को हालिया पंचायत चुनावों में पार्टी के ख़राब प्रदर्शन और कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कुव्यवस्था के चलते सरकार की जो फ़जीहत हुई है, उससे हार का डर सताने लगा है।
बीजेपी को बंगाल चुनाव के परिणाम से भी डर लगा है क्योंकि मोदी-शाह, योगी से लेकर संघ और बीजेपी के कार्यकर्ताओं की फ़ौज़ उतारने के बाद भी वह ममता बनर्जी की टीएमसी के सामने खेत रह गई। संदेश यह गया कि ममता दीदी ने अकेले ही मोदी-शाह और संघ को चारों खाने चित कर दिया और दीदी वहां अकेली ही लड़ी भी।
इस सब से चिंतित संघ ने बीजेपी पदाधिकारियों के साथ रविवार शाम को बैठक की और इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी शामिल रहे। सूत्रों के मुताबिक़, इस बैठक में कोरोना संकट के चलते पार्टी की छवि को हुए नुक़सान और 8 महीने बाद होने वाले उत्तर प्रदेश के चुनाव में इसका क्या असर हो सकता है, इस पर मंथन हुआ।
संघ जानता है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी की हार का मतलब होगा- 2024 में मोदी की सत्ता को सीधी चुनौती। इसलिए वह काफ़ी पहले से ही चुनाव की तैयारियों में जुट गया है।
यह बैठक दिल्ली में हुई और माना जा रहा है कि इसमें कुछ अहम फ़ैसले लिए गए। इन फ़ैसलों को चुनाव से पहले ज़मीन पर उतरते हुए देखा जा सकता है। अगले साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के साथ ही, उत्तराखंड, गोवा और पंजाब में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं।
इस बैठक में बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा, संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले और उत्तर प्रदेश में संगठन के मामलों के प्रभारी सुनील बंसल भी मौजूद रहे। माना जा रहा है कि बीजेपी और संघ के बड़े पदाधिकारियों की इस बैठक में कोरोना महामारी में बनी जनता की धारणा पर गहन चिंतन किया गया।
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पंचायत चुनाव के नतीजे
उत्तर प्रदेश में हाल ही में हुए पंचायत चुनाव के नतीजों ने भी बीजेपी और संघ को परेशान किया है। पंचायत चुनाव में एसपी को बीजेपी से ज़्यादा सीटें मिलीं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो एसपी और आरएलडी के गठजोड़ ने बीजेपी को ख़ासा नुक़सान पहुंचाया। बीजेपी का अपने गढ़ माने जाने वाले अयोध्या, मथुरा और वाराणसी में भी प्रदर्शन ख़राब रहा।
किसान आंदोलन चिंता का कारण
उत्तर प्रदेश में ख़ासकर पश्चिमी इलाक़े में सक्रिय किसान आंदोलन भी बीजेपी की चिंता का विषय बना हुआ है। सहारनपुर, कैराना, मुज़फ़्फ़रनगर, बिजनौर, मेरठ से लेकर बागपत और बिजनौर से लेकर अमरोहा, बुलंदशहर, मथुरा और कुछ इलाक़ों में कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ हुई महापंचायतों में जाट बिरादरी के और किसान वर्ग की जिस तरह भीड़ उमड़ी है, उससे भी बीजेपी सहमी हुई है।
इन इलाक़ों में जाट मतदाता और किसान वर्ग चुनावी नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है और बीते महीनों में केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान से लेकर पार्टी के तमाम नेताओं का उन्हीं के इलाक़ों में जोरदार विरोध हो चुका है।
बीजेपी नेता सरकार के ख़िलाफ़ मुखर
निश्चित रूप से जिस तरह उत्तर प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी से तड़पते-मरते लोगों, गंगा घाटों पर शवों के अंबार से जितनी बदनामी सरकार की हुई, उससे ज़्यादा बदनामी बीजेपी के नेताओं-मंत्रियों की शिकायतों की वजह से हुई।
बीजेपी के कई सांसदों, विधायकों, केंद्रीय मंत्रियों तक ने शिकायत की कि प्रदेश में उनकी सुनने वाला कोई नहीं है और वे पूरी तरह बेबसी के शिकार रहे हैं। इसे पार्टी के अंदर मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ असंतोष के रूप में भी देखा जा रहा है।
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