उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में प्रदर्शन करने वालों से सार्वजनिक संपत्ति के नुक़सान के एवज में करोड़ों रुपये वसूलने के सरकार के फ़ैसले पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है।
उत्तर प्रदेश में सीएए विरोधी प्रदर्शनों में हिंसा के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एलान किया था कि इनमें हिस्सा लेने वालों के घर, मकान, ज़मीन, दुकान ज़ब्त कर नुक़सान की भरपाई की जाएगी। मुख्यमंत्री के इस एलान के बाद ज़िलों में अधिकारियों में ज़ुर्माना वसूलने की नोटिसें जारी करने की होड़ लग गयी थी।
लखनऊ, कानपुर, मेरठ, मुरादाबाद, फिरोज़ाबाद, अलीगढ़, बरेली, इलाहाबाद, वाराणसी सहित दर्जनों शहरों में लोगों को करोड़ रुपये वसूलने के नोटिस भेजे जाने लगे। विरोध प्रदर्शनों में भाषण देने वालों को नोटिस जारी कर दिए गए।
नोटिस लगाया, सार्वजनिक कर दिया
मुख्यमंत्री के आदेश का पालन करते हुए ज़िला प्रशासन के अधिकारियों ने न केवल नोटिस लोगों के घरों पर लगा दिया, बल्कि उन्हें सार्वजनिक भी कर दिया। ऐसे प्रदर्शनकारी जिनके ख़िलाफ़ पुलिस हिंसा में लिप्त होने का आरोप पत्र भी न पेश कर पायी थी, उनके ख़िलाफ़ भी लाखों रुपये वसूली का नोटिस जारी कर दिया गया है।इस संबंध में दायर याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट नें अंतरिम राहत देते हुए राज्य सरकार को एक महीने के भीतर काउंटर एफ़ीडेविट जमा करने के निर्देश दिए हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जस्टिस पंकज नक़वी और जस्टिस सौरभ श्याम के खंडपीठ ने कानपुर निवासी मुहम्मद फ़ैजान की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश जारी किया।
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आरोप पत्र नहीं, नोटिस जारी
मुख्यमंत्री के आदेश का पालन करते हुए ज़िला प्रशासन के अधिकारियों ने न केवल नोटिस लोगों के घरों पर लगा दिया, बल्कि उन्हें सार्वजनिक भी कर दिया। ऐसे प्रदर्शनकारी जिनके ख़िलाफ़ पुलिस हिंसा में लिप्त होने का आरोप पत्र भी न पेश कर पायी थी, उनके ख़िलाफ़ भी लाखों रुपये वसूली का नोटिस जारी कर दिया गया है।राज्य सरकार को नोटिस
इस संबंध में दायर याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट नें अंतरिम राहत देते हुए राज्य सरकार को एक महीने के भीतर काउंटर एफ़ीडेविट जमा करने के निर्देश दिए हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जस्टिस पंकज नक़वी और जस्टिस सौरभ श्याम के खंडपीठ ने कानपुर निवासी मुहम्मद फ़ैजान की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश जारी किया।ग़ौरतलब है कि कानपुर में बीते 19 व 20 दिसंबर को सीएए के विरोध में हिंसा हुई थी। हिंसा के दौरान दो पुलिस चौकियों को आग के हवाले कर दिया गया, तमाम सार्वजनिक संपत्तियों को भी नुक़सान पहुँचाया गया था। इसके बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को चिन्हित कर उन्हें नोटिस भेजा। यह नोटिस कानपुर के रहने वाले मुहम्मद फ़ैजान को भी मिली।
फैजान ने नोटिस को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका दायर की। याचिका पर जज पंकज नकवी व जज सौरभ श्याम की बेंच ने सुनवाई की और अपर ज़िलाधिकारी (एडीएम) द्वारा जारी नोटिस पर रोक लगा दी। पीठ ने कहा, सुप्रीम कोर्ट पहले से ही इस तरह के आदेशों की जाँच कर रही है। इस आदेश के बाद याचिकाकर्ता फ़ैजान को अंतरिम राहत मिली है।
वसूली का नोटिस एडीएम द्वारा जारी किया गया है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की ओर से कहा गया है कि आदेश सेवारत या सेवानिवृत्त हाईकोर्ट के जज या दावा आयुक्त के रुप में सेवानिवृत्त ज़िला जज द्वारा दिया जा सकता है।
बेंच ने राज्य सरकार को इस बात के भी निर्देश दिए कि इस मामले में एक महीने के भीतर काउंटर ऐफिडेविट फ़ाइल किया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले को उपयुक्त पीठ के सामने अगली सुनवाई के लिए 20 अप्रैल 2020 से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध किया जाए।
बेंच ने मामले को 20 अप्रैल से शुरू हो रहे सप्ताह में सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है। साथ ही राज्य सरकार को एक माह के भीतर काउंटर ऐफिडेविट दाखिल करना होगा।
भाषण देने पर करोड़ों की नोटिस
दरअसल उत्तर प्रदेश में सीएए विरोधी हिंसा के मामले 22 ज़िलों में सामने आने के बाद मुख्यमंत्री के रिकवरी वाले बयान के चलते प्रदेश भर के अधिकारियों में नोटिस जारी करने की होड़ लग गयी थी।राजधानी लखनऊ में घर में नजरबंद किए गए सामाजिक कार्यकर्त्ता एस.आर. दारापुरी, मुहम्मद शुएब से लेकर हिंसा की वीडियो बना रही कांग्रेस नेता सदफ़ ज़फर को गिरफ़्तार कर उन्हें वसूली की नोटिस जारी कर दी गयी।
शायर इमरान प्रतापगढ़ी को भड़काऊ भाषण देने के आरोप में कई लोगों के साथ 1.34 करोड़ के जुर्माने की नोटिस जारी की गयी। वामपंथी कार्यकर्त्ता, रंगकर्मी दीपक कबीर को हिंसा के अगले दिन गायब साथियों की जानकारी करने थाने जाने पर गिरफ्तार कर लिया गया और नोटिस थमा दी गयी। उत्तर प्रदेश के विभिन्न ज़िलों से पीड़ितों और कांग्रेस पार्टी ने इन नोटिसों को लेकर 150 के लगभग याचिकाएँ दायर की हैं।
नियम विरुद्ध हैं वसूली नोटिसें
वकीलों का कहना है कि ज़िला प्रशासन ने मुख्यमंत्री की शाबासी मिलने की होड़ में जो नोटिसें भेजी हैं, वो क़ानूनी तौर पर वैध नही हैं। उनका कहना है कि संपत्ति के नुक़सान में वसूली की जा सकती है पर उसके लिए भी नियम हैं।संपत्ति के नुक़सान का एसेसमेंट उच्च न्यायालय के किसी वर्तमान अथवा पूर्व जस्टिस या पूर्व ज़िला जज को क्लेम कमिश्नर बना पहले नुक़सान का आकलन किया जाएगा। क्लेम कमिश्नर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक़, काम करते हुए हिंसा की वीडियो रिकार्डिंग व अन्य साक्ष्य देखेगा और यह तय करेगा कि नोटिस जिन्हें जारी किया गया उनके व संपत्ति का नुकसान पहुंचाने वालों में कोई संबंध था भी अथवा नही।
लखनऊ हाईकोर्ट के वकीलों का कहना है कि अनाप-शनाप नोटिसें जारी करने में न केवल सामान्य न्याय के सिद्धांत की अनदेखी की, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की भी अवहेलना की गयी है। इन हालात में राज्य सरकार के लिए किसी से भी ज़ुर्माना वसूल पाना संभव नही होगा।
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