ताजमहल के शहर आगरा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में 7 मई को लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में मतदान होगा। भाजपा ने इस सीट से मौजूदा सांसद सत्यपाल सिंह बघेल को मैदान में उतारा है। बघेल का मुकाबला बहुजन समाज पार्टी की पूजा अमरोही और समाजवादी पार्टी (सपा) के सुरेश चंद्र कर्दम से है। जहां बीजेपी को चौथी बार अपनी जीत दोहराने की उम्मीद है, वहीं एसपी और बीएसपी को भी हॉटस्पॉट सीट जीतने का भरोसा है।
आजादी के बाद से यह हाई-प्रोफाइल निर्वाचन क्षेत्र वर्षों तक कांग्रेस पार्टी का गढ़ बना रहा। हालाँकि, 1990 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के दौरान ब्रज क्षेत्र के इस निर्वाचन क्षेत्र में राजनीतिक हवाएँ बदल गईं और भाजपा ने अपनी पैठ बना ली।
समाजवादी पार्टी ने 1999 में राज बब्बर पर दांव लगाया। जब इस बॉलीवुड स्टार ने 1999 और 2004 में एसपी के टिकट पर आगरा से जीत हासिल की। बीजेपी आगरा में नंबर 2 पर आती रही। 2009 के बाद से, आगरा के मतदाताओं ने यह तय किया है कि भाजपा न केवल विजयी हो बल्कि उसकी जीत का अंतर भी बढ़े। ताज महल के लिए मशहूर और उत्तर प्रदेश की दलित राजधानी कहे जाने वाले शहर में भाजपा का उदय उल्लेखनीय है।
भाजपा प्रत्याशी एसपीएस बघेल केंद्र में स्वास्थ्य राज्य मंत्री हैं। लोग आगरा में स्वास्थ्य सेवाओं पर बात करने की बजाय दिल्ली के स्वास्थ्य सेवाओं और दिल्ली-अगरा की दूरी पर बात करना ज्यादा मुनासिब समझते हैं। इस बात से आशय यह निकल रहा है कि लोगों को बघेल से स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर जो उम्मीदें थी, उस पर बघेल खरे नहीं उतरे। फिर भी बघेल आत्मविश्वास से लबरेज हैं। बघेल का दावा है कि उनके लिए, आगरा की लड़ाई उनकी जीत का अंतर बढ़ाने के बारे में है। जब बघेल से मुद्दों के बारे में पत्रकार पूछते हैं तो उनके पास गिनाने के लिए राष्ट्रीय मुद्दे होते हैं। लेकिन आगरा में अपने योगदान या स्थानीय मुद्दे के बारे में कोई जवाब नहीं होता है।
बसपा की पूजा अमरोही, जो "बाहरी" होने की कहानी का सामना कर रही हैं, अब यह तय करने की पूरी कोशिश कर रही हैं कि आगरा में दलित वोट बैंक में कोई विभाजन न हो। हालांकि बसपा प्रत्याशी सिर्फ दलित वोटों के लिए मेहनत कर रही है। इसी से पता चलता है कि बसपा का मकसद क्या है। क्योंकि यहां से बसपा प्रत्याशी जीत की उम्मीद तभी कर सकता है जो उसकी झोली में मुस्लिम वोट है। लेकिन मुस्लिम वोट कांग्रेस और सपा की तरफ दिखाई दे रहा है। चूंकि यहां इंडिया गठबंधन लड़ रहा है तो मुस्लिम वोट उधर ही जाने की पूरी उम्मीद है।
पेशे से फुटवियर कारोबारी समाजवादी पार्टी के सुरेश चंद्र कर्दम का जोर इस बात पर है कि यह सिर्फ चुनाव नहीं है बल्कि संविधान को बचाने की लड़ाई है। कर्दम, जो समाज के सभी वर्गों से समर्थन प्राप्त करने का दावा करते हैं, की नज़र मूल जाटव वोट बैंक पर भी है और उन्हें विश्वास है कि मुसलमान भी उनके पीछे लामबंद होंगे। सपा प्रत्याशी का पलड़ा जातीय समीकरण के हिसाब से भारी लगता है। अगर जाटव और मुस्लिम उनके समर्थन में आते हैं तो सपा प्रत्याशी मजबूत स्थिति में रहेगा।
चुनावी समीकरण क्या है
2019 के आंकड़ों के अनुसार, आगरा लोकसभा सीट पर लगभग 19 लाख मतदाता थे। आगरा में दलित और मुस्लिम दो महत्वपूर्ण वोट ब्लॉक हैं, जिनमें से प्रत्येक की अनुमानित संख्या 2.5 लाख से 3 लाख के बीच है। वैश्य समुदाय, पंजाबियों के साथ, आगरा में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण वोट बैंक है, उसके बाद ब्राह्मण समुदाय के मतदाता हैं। वोटों का पैटर्न बताता है कि दलित और मुस्लिम वोट बंटता रहा है। इसलिए भाजपा धड़ल्ले से जीतती रही है। लेकिन अगर दलित और मुस्लिम मतदाता एकजुट होकर किसी पार्टी या प्रत्याशी के लिए मतदान करते हैं तो भाजपा मुश्किल में आ सकती है। चूंकि सपा ने दलित प्रत्याशी उतारा है तो भाजपा के लिए परेशानी बढ़ गई है।
हालाँकि आगरा में सबकुछ बीजेपी के पक्ष में नहीं है। यूपी के आलू बेल्ट के रूप में जाने जाने वाले किसानों ने भाजपा पर आगरा में आलू प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित करने के अपने वादे को पूरा नहीं करने का आरोप लगाया। हालांकि इनमें से कई बीजेपी समर्थक होने थे, पर अब वो इस मुद्दे पर अपना गुस्सा छिपा नहीं रहे हैं।
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