रजनीकांत के चाहने वाले उन पर राजनीति में सक्रिय होने का दबाव बना रहे हैं। तमिलनाडु के कई शहरों और गाँवों में उनके चाहने वालों ने 'अभी नहीं तो कभी नहीं' वाले पोस्टर लगाकर यह जताने की कोशिश की है कि तमिल फिल्मों के सुपरस्टार के लिए समय हाथ से निकलता जा रहा है।
मई, 2021 में तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव के लिए नौ महीने से भी कम समय बचा है। कई सालों बाद यह पहला चुनाव है जब तमिलनाडु की राजनीति के तीन बड़े धुरंधर- एम. जी. रामचंद्रन (एमजीआर), एम.करुणानिधि और जे. जयललिता नहीं हैं।
रजनीकांत के प्रशंसक मानते हैं कि मुख्यमंत्री बनने के लिए उनके पास इस समय सबसे अच्छा मौका है। अगर रजनीकांत ने इस मौके का सही फायदा उठाया तो वे एमजीआर, करुणानिधि और जयललिता की तरह तमिलनाडु की राजनीति में छा सकते हैं।
एआईएडीएमके-डीएमके की रही टक्कर
महत्वपूर्ण बात यह है कि तमिलनाडु में करीब चार दशकों से विधानसभा चुनावों में एआईएडीएमके और डीएमके के बीच सीधा मुकाबला रहा है और इन्हीं दोनों पार्टियों के नेता मुख्यमंत्री रहे हैं। सत्ता इन दोनों पार्टियों के अलावा किसी अन्य पार्टी के हाथ में नहीं गयी।
तीन नेताओं के पास रही सत्ता
करुणानिधि सबसे ज़्यादा (6863 दिन तक) मुख्यमंत्री रहे। जयललिता (5238 दिन तक) मुख्यमंत्री रहीं। जबकि एमजीआर (3629 दिन तक) मुख्यमंत्री रहे। करुणानिधि और जयललिता पाँच बार मुख्यमंत्री रहे। करुणानिधि पहली बार 1969 में मुख्यमंत्री बने थे। एमजीआर 1977 में पहली बार मुख्यमंत्री बने।
1987 में एमजीआर की मौत के बाद जयललिता ने एआईएडीएमके की कमान अपने हाथों ले ली और 1991 में पहली बार मुख्यमंत्री बनीं। यानी 1969, जब करुणानिधि पहली बार मुख्यमंत्री बने, तब से लेकर 2018 तक, यानी उनकी मृत्यु तक, तमिलनाडु की राजनीति तीन नेताओं – करुणानिधि, जयललिता और एमजीआर के इर्द-गिर्द ही घूमती रही।
बड़ी बात यह रही कि ये तीनों हस्तियाँ फिल्मों से जुड़ी रहीं। एमजीआर सुपरस्टार रहे। जयललिता एक अभिनेत्री के रूप में सबसे लोकप्रिय रहीं। करुणानिधि ने पटकथा लेखक और कथाकार के रूप में खूब शोहरत हासिल की।
रजनीकांत पर राजनीति में आने का दबाव लगातार बना रहा लेकिन वे ‘सही समय पर फैसला लेने’ की बात कहकर मामला टालते रहे।
राजनीति में आने का दबाव
2016 में जयललिता और 2018 में करुणानिधि के निधन के बाद लोगों को तमिलनाडु में सशक्त नेतृत्व की कमी लगी। राज्य में कोई नेता ऐसा नहीं लगा जोकि सर्वमान्य हो और देश और दुनियाभर में तमिलनाडु की पहचान बन सके। प्रशंसकों ने रजनीकांत से राजनीति में आने का अनुरोध किया। उन पर दबाव डाला गया। रजनी ने चाहने वालों की बात मानते हुए राजनीतिक पार्टी बनाने का एलान कर दिया। लेकिन राजनीतिक मोर्चे पर ज़्यादा सक्रिय नहीं रहे। कुछ मुद्दों पर उनके बयान आए लेकिन राजनीतिक गतिविधियाँ न के बराबर रहीं।
प्रशंसकों को हैं उम्मीदें
चूंकि अब चुनाव सिर्फ नौ महीने दूर हैं, प्रशंसकों को लगता है कि अगर रजनी अब सक्रिय नहीं हुए तो वे कभी राजनीति में सक्रिय नहीं हो पाएंगे। 70 साल के रजनी से उनके प्रशंसकों को काफी उम्मीदें हैं। लेकिन रजनी ने अपनी राजनीतिक चुप्पी से हमेशा चाहने वालों को निराश किया है। उनके बयानों ने भी लोगों को निराश किया है। एक बार रजनी ने कहा था कि उनका इरादा मुख्यमंत्री बनने का नहीं है।
रजनी ने यहाँ तक कहा कि उन्हें विधानसभा जाने का शौक भी नहीं है। रजनी ने कहा कि वे चाहते हैं युवा शक्ति विधानसभा जाये और बदलाव लाये। जबकि प्रशंसक यह मानते हैं कि रजनी ही मुख्यमंत्री पद के सबसे बेहतरीन उम्मीदवार हैं।
अगले कदम का इंतज़ार
राजनीतिक विश्लेषकों का भी कहना है कि एक नेता को इस तरह का बयान नहीं देना चाहिए। उधर, अलग-अलग राजनीतिक पार्टियां और नेता भी रजनीकांत के अगले कदम का इंतज़ार कर रहे हैं। बीजेपी को उम्मीद है कि रजनीकांत उसके साथ आएंगे और तमिलनाडु में एआईएडीएमके के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा बनेंगे।
स्टालिन को भरोसा है कि रजनीकांत सत्ताधारी एआईएडीएमके के वोट काटेंगे, जिससे उन्हें फायदा होगा। कमल हासन हो उम्मीद है रजनी उनके साथ आएंगे और दोनों फिल्म स्टारों की जोड़ी चुनाव में कमाल करेगी।
नवंबर में होंगे सक्रिय?
इन सब के बीच रजनीकांत अपने राजनीतिक पत्ते खोलने के लिये तैयार नहीं हैं। लेकिन जानकार इतना ज़रूर कह रहे हैं कि धार्मिक और आध्यामिक प्रवृत्ति के रजनीकांत द्रविड़ पार्टियों की राजनीति से हटकर राजनीति करेंगे। रजनी के करीबों सूत्रों ने बताया है कि नवंबर माह में रजनी पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय हो जाएँगे।
अलग-अलग क्षेत्रों में तमिलनाडु और देश का नाम रोशन करने वाले कई बड़ी हस्तियाँ रजनी की पार्टी में शामिल होंगी, जिनमें डॉक्टर, वकील, पत्रकार, फिल्म कलाकार, लेखक, उद्योगपति शामिल होंगे। सूत्रों का कहना है कि रजनी राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने की तैयारी कर चुके हैं और एक सोची-समझी रणनीति के तहत वे फिलहाल चुप हैं और नवंबर में नया राजनीतिक अवतार लेंगे।
लेकिन मौजूदा समय में रजनी की राजनीतिक उदासीनता की वजह से उनके प्रशंसक निराश हैं। कई प्रशंसकों के मन में यह शंका भी है कि शायद इस बार भी रजनी राजनीति और चुनाव से दूर ही रहें।
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