दक्षिण के मशहूर अभिनेता रजनीकांत ने सोमवार को एक बार फिर कहा है कि राजनीति में आने का उनका कोई इरादा नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने अपनी पार्टी रजनी मक्कल मंदरम को भी भंग कर दिया है। रजनीकांत पर तमिलनाडु का विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए जबरदस्त दबाव था लेकिन उन्होंने अपने ख़राब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था।
70 साल के रजनीकांत ने 2018 में रजनी मक्कल मंदरम की बुनियाद रखी थी। तमिलनाडु में इस साल अप्रैल-मई में विधानसभा के चुनाव हुए थे। इसमें डीएमके को जीत मिली थी। काफी लोगों का मानना था कि अगर रजनीकांत चुनाव मैदान में आते तो नतीजे दूसरे हो सकते थे।
रजनीकांत के प्रशंसकों का मानना था कि मुख्यमंत्री बनने के लिए रजनीकांत के पास 2021 में सबसे अच्छा मौका है। अगर रजनीकांत ने इस मौके का सही फायदा उठाया तो वे एमजीआर, करुणानिधि और जयललिता की तरह तमिलनाडु की राजनीति में छा सकते हैं। लेकिन रजनी ने ऐसा नहीं किया।
2016 में जयललिता और 2018 में करुणानिधि के निधन के बाद लोगों को तमिलनाडु में सशक्त नेतृत्व की कमी लगी। राज्य में कोई नेता ऐसा नहीं लगा जोकि सर्वमान्य हो और देश और दुनियाभर में तमिलनाडु की पहचान बन सके। प्रशंसकों ने रजनीकांत से राजनीति में आने का अनुरोध किया। उन पर दबाव डाला गया।
दक्षिण में और ख़ासकर तमिलनाडु में फ़िल्मी हस्तियों और राजनेताओं का चोली-दामन का जैसा संबंध रहा है, इसी कारण से पिछले दो दशकों से यह अटकलें थीं कि सुपरस्टार रजनीकांत राजनीति में आएंगे लेकिन वह खुलकर आगे नहीं आए। लेकिन, जयललिता की मृत्यु के बाद ऐसे कयास लगाए गए थे कि वह तमिलनाडु में अपनी राजनीतिक ज़मीन तलाश सकते हैं।
रजनीकांत ने 1975 में अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की। लोकप्रियता के मामले में रजनी ने बड़े-बड़े कलाकारों को पछाड़ दिया। रजनी की अदाकारी का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगा था। बड़ी बात यह रही कि विधानसभा चुनाव में रजनी ने जिस पार्टी का समर्थन किया वह पार्टी सत्ता में आई। लेकिन रजनी परोक्ष राजनीति से हमेशा दूर रहे।
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