तमिलनाडु के मतदाताओं ने जिस तरह से लोकसभा चुनाव और विधानसभा के उपचुनाव में वोट दिया, उससे बड़े-बड़े राजनेता और बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित हैरान हैं। लोकसभा चुनाव में जहाँ तमिलनाडु के मतदाताओं ने स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके और उसकी सहयोगी पार्टियों को शानदार जीत दिलायी, वहीं 22 विधानसभा सीटों के लिए उप-चुनाव में 9 सीटें मुख्यमंत्री पलानीसामी और उप-मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम के नेतृत्व वाली एआईएडीएमके को जीत दिलाकर सरकार बचा ली।
दिलचस्प बात तो यह भी है कि तमिलनाडु में लोकसभा चुनावों के साथ ही विधानसभा के उप-चुनाव भी करवाए गये थे। लोकसभा चुनाव एक चरण में ही पूरे हो गये जबकि 22 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव दो चरणों में करवाए गये। जिस तरह के नतीजे लोकसभा चुनाव में देखने को मिले अगर उसी तरह के नतीजे विधानसभा के उप-चुनाव में देखने को मिलते तो एआईएडीएमके सरकार अल्प मत में आ जाती और गिर जाती।
18 अप्रैल, 2019 को तमिलनाडु की 38 लोकसभा सीटों के लिए मतदान हुआ था। वेल्लूर लोकसभा सीट के लिए चुनाव स्थगित कर दिया गया था, क्योंकि यहाँ से एक उम्मीदवार के ठिकाने से काफ़ी बड़ी मात्रा में नकदी ज़ब्त की गयी थी। 23 मई को जब 38 लोकसभा सीटों के नतीजे आए तो सभी हैरान रह गये। 38 में से 37 सीटों पर डीएमके और उसकी सहयोगी पार्टियों की जीत हुई। सत्ताधारी एआईएडीएमके सिर्फ़ एक सीट पर ही जीत दर्ज़ कर पायी। बीजेपी ने सत्ताधारी एआईएडीएमके, फ़िल्मस्टार विजयकांत की डीडीएमके, अंबुमणि रामदास की पीमके, जी.के. वासन की तमिल मनीला कांग्रेस और डॉ. कृष्णसामी की पुथिया तमिलगम के साथ गठजोड़ कर तमिलनाडु एनडीए बनाया था। समझौते के तहत एनडीए ने तमिलनाडु की 38 लोकसभा सीटों में 20 सीटों पर एआईएडीएमके के उम्मीदवार उतारे। 7 सीटों पर पीएमके के उम्मीदवार थे तो पाँच पर बीजेपी के। डीडीमके के उम्मीदवार चार सीटों पर थे तो एक-एक सीट पर तमिल मनीला कांग्रेस और पुथिया तमिलगम के उम्मीदवार।
इन नतीजों से साफ़ था कि तमिलनाडु में मोदी लहर का कोई असर नहीं था। उप-मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम के बेटे रवीन्द्रनाथ को छोड़कर एनडीए के सभी उम्मीदवार चुनाव हार गये। यानी बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली। केंद्रीय मंत्री पोन राधाकृष्णन भी चुनाव हार गये।
लोकसभा चुनाव में स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके की शानदार जीत हुई। इस बार तमिलनाडु में यूपीए का नेतृत्व डीएमके ने किया था। यूपीए के समझौते के मुताबिक़ डीएमके ने 23, कांग्रेस ने 9, सीपीएम और सीपीआई ने 2-2 और एमडीएमके, वीसीके, आईजेके, केएमडीके, एमडीएमके और मुस्लिम लीग ने एक-एक सीट पर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस के एक उम्मीदवार को छोड़कर यूपीए के सभी उम्मीदवारों की जीत हुई। यानी डीएमके ने सभी 23 सीटों पर जीत हासिल हासिल की।
डीएमके की जीत फीकी क्यों पड़ी?
लेकिन डीएमके की यह जीत दो कारणों से फीकी पड़ गयी। एक, विधानसभा की 22 सीटों के लिए उप-चुनाव में एआईएडीएमके को 9 और डीएमके को 13 सीटें मिलीं। अगर एआईएडीएमके को तीन सीटें मिलती तो उसकी सरकार अल्पमत में आती और गिर जाती। स्टालिन और यूपीए के दूसरे नेताओं को उम्मीद थी कि लोग एआईएडीएमके की सरकार से नाराज़ है और उसे चार सीटें भी जीतने नहीं देंगे। दूसरा, देशभर में एनडीए का प्रदर्शन शानदार रहा और केंद्र में फिर एक बार मोदी सरकार बन गयी। तमिलनाडु में एनडीए पूरी तरह से फ्लॉप रहा और मोदी लहर का असर तमिलनाडु में पूरी तरह से नदारद था।
राजनीति के बड़े-बड़े जानकार और सभी बड़े नेता इस बात पर हैरान हैं कि आख़िर लोकसभा चुनाव में विपक्षी डीएमके को लगभग सारी सीटें देने वाले मतदाताओं ने विधानसभा के उप-चुनाव में एआईएडीएमके सरकार को बचाने के लिए ज़रूरी सीटों से ज़्यादा सीटें क्यों दीं।
इन विपरीत नतीजों से एआईएडीएमके के नेताओं, ख़ासकर मुख्यमंत्री पलानीसामी और उप-मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम ने राहत की साँस ली है, वहीं उनके विरोधी स्टालिन को लोकसभा चुनाव में शानदार जीत के बाद भी शायद ही चैन की नींद आये। तमिलनाडु विधानसभा का कार्यकाल अभी और पूरे दो साल है। तमिलनाडु में अगले विधानसभा चुनाव 2021 में होंगे। स्टालिन को तब तक इंतज़ार करना पड़ेगा। स्टालिन और उनकी पार्टी के लगभग सभी नेताओं को यह लगता था कि तमिलनाडु में दोहरी सत्ता विरोधी लहर है। एक सत्ता विरोधी लहर केंद्र की मोदी सरकार के ख़िलाफ़ और दूसरी राज्य की मुख्यमंत्री पलानीसामी और उप-मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम ने नेतृत्व वाली एआईएडीएमके सरकार के ख़िलाफ़। लेकिन विधानसभा उप-चुनाव में तमिलनाडु के मतदाताओं ने स्टालिन की आशाओं-उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
2014 में भी नहीं हुआ था मोदी लहर का असर
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि साल 2014 में भी तमिलनाडु मोदी लहर से अछूता रहा था। 2014 में तमिलनाडु की 39 सीटों में से 37 सीटों पर ‘अम्मा’ जयललिता के एआईएडीएमके के उम्मीदवारों की जीत हुई थी। दो सीटें एनडीए के खाते में गई थीं। यूपीए को एक भी सीट नहीं मिली थी। पिछले चार दशकों में यह पहला ऐसा चुनाव था जब राज्य के दो दिग्गज नेता – करुणानिधि और जयललिता की ग़ैर-मौजूदगी में कोई चुनाव हुआ था। 5 सितंबर 2016 में जयललिता का निधन हो गया जबकि 7 अगस्त 2018 को करुणानिधि ने आख़िरी साँस ली। इस चुनाव में भी तमिलनाडु के मतदाताओं ने एक ही पार्टी/गठबंधन को एकतरफ़ा जीत दिलाने के अपनी परंपरा को कायम रखा।
पलानीसामी सरकार का संकट टला
ग़ौर करने वाली बात यह है कि ‘अम्मा’ जयललिता के निधन के बाद पन्नीरसेल्वम मुख्यमंत्री बनाए गये थे। लेकिन इसके कुछ महीनों बाद ही जयललिता की क़रीबी रही शशिकला ने पार्टी की कमान अपने हाथों में ले ली और मुख्यमंत्री बनने की घोषणा कर दी। इसी दौरान भ्रष्टाचार के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दोषी क़रार दिया और उन्हें जेल जाना पड़ा। शशिकला का मुख्यमंत्री बनने का सपना अधूरा ही रह गया। शशिकला के जेल जाने के बाद एआईएडीएमके में संकट पैदा हो गया। पन्नीरसेल्वम ने फिर से मुख्यमंत्री पद की दावेदारी ठोक दी, लेकिन शशिकला और उनके भतीजे दिनाकरन अपने क़रीबी पलानीसामी को मुख्यमंत्री बनाने में कामयाब रहे। इसी दौरान जब विधानसभा में शक्ति परीक्षण होने वाला था तब आधिकारिक एआईएडीएमके का विरोध करने वाले 18 विधायकों की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गयी। पलानीसामी सरकार बच गयी लेकिन उसपर संकट बना रहा। इसी बीच पन्नीरसेल्वम और पलानीसामी में समझौता हो गया और सरकार पर से संकट दूर हो गया। लेकिन खाली पड़ी विधानसभा की 18 सीटों के अलावा 4 विधायकों के निधन से खाली हुई 4 सीटों के उप-चुनाव की वजह से सरकार पर संकट आ गया था। अगर 22 सीटों में से सत्ताधारी पार्टी सिर्फ़ 3 सीटें ही जीत पाती तो वह अल्पमत में आ जाती। लेकिन तमिलनाडु के मतदाताओं ने 22 में से 9 सीटें एआईएडीएमके को देकर सरकार बचा ली।
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