कई राज्यों में कोरोना से मरने वालों को कम गिने जाने के आरोपों के बीच अब बिहार में मौत का एक चौंकाने वाला आँकड़ा सामने आया है। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान क़रीब 75 हज़ार लोगों की मौतें कैसे हुईं, इसका कोई अंदाज़ा नहीं है।
देश भर में सरकारों पर कोरोना से मौत के मामलों को छुपाने के आरोप क्यों लग रहे हैं? यह बिहार से साफ़ हो जाएगा। कोरोना से पहले जहाँ क़रीब 5500 लोगों की मौत हुई थी वह बुधवार को एकाएक 9429 हो गई है। यानी क़रीब 72 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
गाँवों-क़स्बों में अस्पताल तो है नहीं, दूर-दराज के छोटे शहरों में कुछ छोटे अस्पताल हैं भी तो यह पता नहीं होता कि किस अस्पताल में क्या सुविधा है, कितने बेड खाली हैं?
गाँवों में लोग बीमार हैं। लेकिन ग्रामीणों के लिए कोरोना जाँच कराना इतना आसान नहीं है, इसलिए जाँच कराने से बेहतर सर्दी-जुकाम और बुखार की दवाओं से अपना इलाज करा रहे हैं।
अब बिहार में कोरोना का आतंक है। क्या दवा नहीं मिल रही ? क्या इलाज नहीं हो रहा। जवाब दे रहे हैं जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ डॉ. हेम शंकर शर्मा।
महाराष्ट्र, तमिलनाडु और दिल्ली में की तुलना में बिहार में संक्रमितों की संख्या बहुत कम दीख रही है, लेकिन स्थिति इन राज्यों से कम विस्फोटक नहीं है। राज्य में टेस्टिंग कम हुई है लेकिन राज्य में पॉजिटिव रेट काफ़ी ज़्यादा है।
लॉकडाउन और काम-धंधों के बंद होने से अन्य प्रदेशों से लौटकर आने वाले प्रवासी श्रमिकों और छात्रों के क्वॉरंटीन की समुचित व्यवस्था करना और उनका कोरोना जाँच करवाना भी बिहार के लिए एक बड़ी समस्या है।
प्रवासी छात्रों और मज़दूरों को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्ष के निशाने पर हैं। क्या ये जंग नवंबर में बिहार विधान सभा के चुनावों की तैयारी का हिस्सा है। देखिए शैलेश की रिपोर्ट।
बिहार की इतनी बड़ी आबादी के लिए सिर्फ़ तीन जगह कोरोना वायरस के जाँच के इंतज़ाम हैं। आरएएमआरआई, आईजीएमएस और दरभंगा मेडिकल कॉलेज। आँकड़े कहते हैं कि प्रति एक लाख आबादी पर सिर्फ़ तीन लोगों की जाँच की सुविधा है।
कोरोना वायरस का पहला मामला बिहार में आया है। 38 साल के एक व्यक्ति की मौत हो गई है। इसके साथ ही देश में कोरोना से मरने वालों की संख्या बढ़कर छह हो गई है। इससे पहले मौत का पाँचवाँ मामला मुंबई से आया था।