सुमेर सिंह (बदला हुआ नाम) की बहू को कई दिनों से बुखार है। बुधवार को साँस लेने में दिक्कत होने लगी तो परिवार वाले ऑक्सीजन की व्यवस्था वाले अस्पताल का पता करने लगे। काफ़ी वक़्त जाया हो गया अस्पताल के बारे में पता करने में। बिहार के औरंगाबाद से क़रीब 25 किलोमीटर दूर खैरा गाँव का मामला है यह। 18 किलोमीटर दूर एक छोटे-से शहर में सुविधा नहीं मिली। 50 किलोमीटर दूर झारखंड के छोटे से शहर हरिहरगंज के अस्पताल में उन्हें ले जाया गया। उन्हें रिश्तेदारों से उस अस्पताल के बारे में पता चला था।
बिहार: गाँवों में कोरोना? ‘इतनी संख्या में अंतिम संस्कार होते कभी नहीं देखा’
- बिहार
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- 13 May, 2021

गाँवों-क़स्बों में अस्पताल तो है नहीं, दूर-दराज के छोटे शहरों में कुछ छोटे अस्पताल हैं भी तो यह पता नहीं होता कि किस अस्पताल में क्या सुविधा है, कितने बेड खाली हैं?
गाँवों-क़स्बों में अस्पताल तो है नहीं, दूर-दराज के छोटे शहरों में कुछ छोटे अस्पताल हैं भी तो यह पता नहीं होता कि किस अस्पताल में क्या सुविधा है, कितने बेड खाली हैं? दिल्ली, पटना जैसे शहरों की तरह गाँवों में ट्विटर-फ़ेसबुक से किसी तरह के सहयोग की गुंजाइश भी नहीं है। एक तो यहाँ लोगों को ट्विटर के बारे में पता नहीं है और फ़ेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर भी किसी सहायता मिलने की उन्हें जानकारी नहीं है। यदि कोई सोशल मीडिया पर ऐसी सहायता माँगे भी तो उस मैसेज का शायद उतना प्रसार नहीं हो पाए और यदि मैसेज का प्रसार हो भी तो छोटे क़स्बों और शहरों में उस तरह से कोई सहायता नहीं मिल पाए।