भले ही महाराष्ट्र, तमिलनाडु और दिल्ली में कोरोना संक्रमण के मामलों की तुलना में बिहार में संक्रमितों की संख्या बहुत कम दीख रही है, लेकिन स्थिति इन राज्यों से कम विस्फोटक नहीं है। संक्रमण के मामले कम होने का शायद सबसे बड़ा कारण जाँच कम होना है क्योंकि राज्य में पॉजिटिव रेट काफ़ी ज़्यादा है। पॉजिटिव रेट यानी जितने लोगों की टेस्टिंग की गई उनमें से संक्रमित आने वालों की दर।
अब बिहार में कोरोना संक्रमण की स्थिति का अंदाज़ा इससे भी लगाया जा सकता है कि राज्य में फिर से संपूर्ण लॉकडाउन किया गया है। यह 31 जुलाई तक रहेगा।
बिहार में अब तक सिर्फ़ 3.3 लाख टेस्टिंग हुई है। बिहार में पॉजिटिविटी रेट 5.7 फ़ीसदी है। हालाँकि राष्ट्रीय औसत 7.6 फ़ीसदी से यह कम है, लेकिन जब दूसरे राज्यों में 3.3 लाख टेस्टिंग हुई थी तब से इसकी तुलना की जाए तो बिहार की स्थिति बेहद ख़राब नज़र आती है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, दूसरे राज्यों में जब इतनी टेस्टिंग (क़रीब 3 लाख) हुई थी तब बिहार से ज़्यादा पॉजिटिविटी रेट सिर्फ़ दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात में ही थी। बाक़ी राज्यों में पॉजिटिविटी रेट 4 फ़ीसदी से भी काफ़ी कम थी। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, जब 3 लाख टेस्टिंग हुई थी तब मध्य प्रदेश में पॉजिटिविटी रेट 3.9, ओडिशा में 3.7, तमिलनाडु में 3.4, पश्चिम बंगाल में 3.2, उत्तर प्रदेश में 2.7, राजस्थान में 2.2, केरल में 2.16, जम्मू-कश्मीर में 2.0, पंजाब में 1.8, असम में 1.8 और आँध्र प्रदेश में 0.84 फ़ीसदी था।
बिहार में देश की सबसे कम टेस्टिंग रेट है- प्रति लाख जनसंख्या पर 316 ही। अन्य सभी राज्यों में प्रति लाख 550 से ज़्यादा ही टेस्टिंग रेट है। कुल मिलाकर देश का आँकड़ा 979 नमूने प्रति लाख है।
रिपोर्ट के अनुसार, पटना में इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में कोविड-19 परीक्षण की निगरानी करने वाले डॉ. एस के शाही ने कहा, 'पटना के आसपास के 14 ज़िलों में पॉजिटिवटी रेट पिछले दो हफ्तों में 4 प्रतिशत से बढ़कर 15 प्रतिशत हो गई है। यह चिंताजनक है। पटना में पॉजिटिविटी रेट सबसे ख़राब 8 से 10 फ़ीसदी है।'
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