बेंगलुरु की एक महिला कारोबारी ने ब्राह्मण जीन लिखकर अपना फोटो सोशल मीडिया पर डाला है। उन्होंने सोशल मीडिया पर दूसरी पोस्ट में ब्राह्मणों की तारीफ की है और कहा कि वे आज जो कुछ हैं अपने दम पर हैं, उन्हें आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिलता। अनुराधा तिवारी नामक इस महिला की इस बात पर बहस तो हो रही है लेकिन क्या उनकी टिप्पणी नस्लवादी और जातिवादी है। सत्य हिन्दी डॉट कॉम के संपादक डॉ मुकेश कुमार की टिप्पणीः
क्या विश्वविद्यालयों में परशुराम जयंती जैसे कार्यक्रम होने चाहिए? कई लोग तर्क देते हैं कि अगर दलित अस्मिता की अभिव्यक्ति की जा सकती है और वैध है तो ब्राह्मण अस्मिता की क्यों नहीं?
ब्राह्मणवाद को लेकर प्रवचन करने वाले दो लोगों के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हैं। इनमें से एक तो मोटीवेशनल स्पीकर विवेक बिन्द्रा हैं जिन पर पत्नी को पीटने का आरोप है। नोएडा पुलिस ने केस दर्ज किया है। उनका वीडियो वायरल है। दूसरे शख्स नए-नए संत बने बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तश्वेर पांडे हैं जो लोगों को ब्राह्मणवाद के कोप से बचने की सलाह दे रहे हैं। हालांकि तमाम ब्राह्मणों ने उनकी बात को वाहियात बताया है।
नए संसद भवन में राजदंड यानी सेंगोल तो स्थापित कर दिया गया लेकिन क्या इसके साथ वो चोल शासन व्यवस्था भी लौटेगी जिसमें ब्राह्मण सर्वोच्च थे। क्या चोल वंश की तरह मंदिर वर्ष में सिर्फ एक बार अछूतों के लिए खुलेंगे, वो भी खुलेंगे या नहीं...इन्हीं सब सवालों पर वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन की टिप्पणीः
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा पर हाल ही में एक किताब ‘आरएसएस और बहुजन चिंतन’ प्रकाशित हुई है। इस किताब के लेखक हैं कँवल भारती। पढ़िये ईश मिश्र की समीक्षा, क्या है इस किताब में।