सेंगोल चोलवंश का राजदंड था। राजदंड अपने समय की शासकीय संस्कृति का भी प्रतीक होता है। अब सेंगोल आया है तो क्या उस समय की संस्कृति भी आएगी?

नए संसद भवन में राजदंड यानी सेंगोल तो स्थापित कर दिया गया लेकिन क्या इसके साथ वो चोल शासन व्यवस्था भी लौटेगी जिसमें ब्राह्मण सर्वोच्च थे। क्या चोल वंश की तरह मंदिर वर्ष में सिर्फ एक बार अछूतों के लिए खुलेंगे, वो भी खुलेंगे या नहीं...इन्हीं सब सवालों पर वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन की टिप्पणीः