हरियाणा के चुनाव नतीजों ने सबकी तबियत को झक कर दिया है। कांग्रेस हाईकमान, उसके दिवास्वप्न देखने वाले समर्थकों और तमाम एक्जिट पोल करने वालों, ग्राउंड रिपोर्ट से सच दिखाने वाले हमारे प्रिय मित्रों तक की। कुछ-कुछ हम दुष्टों की भी, जो सत्ता को सदा ही हारने में एक अलग ही तरह का आनंद महसूस करते हैं।

हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के ख़राब प्रदर्शन की असल वजह क्या है? क्या कांग्रेस की केंद्रीय लीडरिशप का विजन, उसकी केंद्रीय नेतृत्व की रणनीति और उसके केंद्रीय नेतृत्व में राजनीतिक कौशल का अभाव हारा है?
कांग्रेस के नेतृत्व के लिए किसी आती हुई सत्ता को बिना किसी ख़तरे के सहजता से बचा लेना, अपने हाथ में सुरक्षित ले लेना और आई हुई सत्ता को फिसलने नहीं देना उतना ही नामुमकिन है, जितना कि सूई के छेद से ऊँट का गुजरना।
इन चुनाव नतीजों ने साफ़ कर दिया है कि एक लंबे समय से और ख़ासकर लोकसभा चुनाव के बाद अधिक बढ़चढ़कर कांग्रेस नेता राहुल गांधी का स्तुतिगान करने वाले कांग्रेस समर्थक बुद्धिजीवियों के सारे ख़याल आरज़ी हैं।