नगालैंड में 4 दिसंबर को हुई फ़ायरिंग को लेकर ग़ुस्सा भड़क गया है। नगालैंड में खासा असर रखने वाले छात्र संगठन नगा स्टूडेंट्स फ़ेडरेशन (एनएसएफ़) के आह्वान पर शुक्रवार को सैकड़ों लोग इस घटना के ख़िलाफ़ कोहिमा में सड़क पर उतरे। फ़ायरिंग में 14 नागरिकों और सेना के एक जवान की मौत हो गई थी।
एनएसएफ़ ने इस दौरान मांग की कि जो आम लोग फ़ायरिंग में मारे गए हैं, उनके परिवारों को इंसाफ़ दिया जाए और विवादित क़ानून अफ़स्पा को हटाया जाए।
लोगों ने हाथों में पोस्टर भी लिए हुए थे। इनमें लिखा हुआ था- अफ़स्पा को ख़त्म करने से पहले कितनी बार गोली चलाई जाएगी और अफ़स्पा को बैन करो, हमारी आवाज़ को नहीं।
ये लगातार तीसरा दिन है जब नगालैंड में इस फ़ायरिंग के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं। इससे साफ दिखाई देता है कि इस घटना के बाद से वहां के लोग बेहद ग़ुस्से में हैं।
स्थानीय जनजातीय संगठनों ईस्टर्न नगालैंड पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन और कोन्याक यूनियन ने भी फ़ायरिंग के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया है। गुरूवार को प्रदर्शन के दौरान मोन जिले में सुबह से शाम तक बंद रहा और सरकारी व निजी दफ़्तर भी बंद रहे। कोन्याक यूनियन ने सैन्य बलों को किसी तरह का सहयोग नहीं देने का एलान किया है।
मोन जिले के अलावा राज्य के पूर्वी हिस्सों- किफिर, त्युएनसांग, नोकलाक और लोंगलेंग जिलों में भी विरोध प्रदर्शन हुए। इन जगहों पर दुकानें बंद कर दी गईं और गुस्साए लोग सड़कों पर निकल आए।
फ़ायरिंग की यह घटना मोन ज़िले के ओतिंग गांव में हुई थी। इस मामले में पुलिस ने सेना की 21 पैरा पुलिस बल के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया था। मोन जिला भारत-म्यांमार की सीमा से सटा हुआ है।
इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में बयान दिया था कि घटना ग़लत पहचान की वजह से हुई। घटना के बाद जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती, नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफिउ रियो, मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा, एआईएमआईएम के सांसद असदउद्दीन ओवैसी सहित कई नेताओं ने मांग की थी कि अफ़स्पा को हटाया जाना चाहिए।
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