मणिपुर में शांति आख़िर क्यों नहीं बहाल होती दिख रही है? राज्य में सोमवार को ताजा हिंसा में कम से कम एक और व्यक्ति की मौत हो गई। और मेइती और कुकी-ज़ोमी दोनों समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले समूहों ने कहा है कि वे गृह मंत्रालय द्वारा गठित शांति समिति में भाग नहीं लेंगे। तो सवाल है कि आख़िर एक तरफ़ ताज़ा हिंसा होने और दूसरी तरफ़ शांति समिति से मेइती व कुकी समूहों के पीछे हटने का क्या मतलब है?
केंद्र द्वारा मणिपुर में शांति समिति गठित करने के एक दिन बाद ही इस पर संकट के बादल छाए हुए दिख रहे थे। अधिकांश कुकी प्रतिनिधियों ने पहले ही कह दिया है कि वे पैनल का बहिष्कार करेंगे। ऐसा करने के पीछे कई कारण बताए गए हैं। एक कारण बताया गया है कि उन्हें पैनल में शामिल करने के लिए उनकी सहमति नहीं ली गई थी। उन्होंने इस बात पर आपत्ति जताई कि शांति समिति में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह और उनके समर्थक शामिल हैं। उन्होंने यह भी मांग की कि पहले केंद्र बातचीत के लिए अनुकूल स्थिति बनाए। अब मेइती समुदाय के प्रतिनिधियों ने भी राज्य में हिंसा का हवाला देते हुए अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं।
राज्य में चिंता की बात यह है कि शांति के प्रयास के बीच ही हिंसा भी हो रही है और लोगों की जानें भी जा रही हैं। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार पुलिस का कहना है कि चुराचांदपुर जिले के लैलोईफाई इलाके में सोमवार को हुई गोलीबारी की घटना में एक व्यक्ति की मौत हो गई। यह क्षेत्र घाटी में बिष्णुपुर जिले के साथ पहाड़ी जिले की सीमा पर स्थित है। पिछले महीने हिंसा शुरू होने के बाद से राज्य में अब तक कम से कम 100 लोगों की मौत हो गई है।
सोमवार को गोलीबारी की यह घटना उसी दिन हुई जब केंद्र द्वारा शनिवार को घोषित 51 सदस्यीय शांति समिति की प्रमुख राज्यपाल अनुसुइया उइके ने चुराचांदपुर का दौरा किया और तीन राहत शिविरों में जाकर स्थिति का जायजा लिया। 3 मई को राज्य में हिंसा शुरू होने के बाद से यह जिले का उनका पहला दौरा था। रिपोर्ट के अनुसार, चुराचांदपुर में गोलीबारी के अलावा, इंफाल पूर्व और कांगपोकपी जिलों के बीच सीमावर्ती क्षेत्र में भी गोलीबारी हुई। इसमें आठ लोग कथित तौर पर घायल हो गए।
मुख्यमंत्री तो शांति की अपील कर रहे हैं, लेकिन कुकी-ज़ोमी और मेइती दोनों समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले समूहों ने नेतृत्व में विश्वास की कमी व्यक्त की और कहा कि वे शांति समिति के विचार-विमर्श में भाग नहीं लेंगे।
हाल ही में गठित 'पृथक प्रशासन पर कोर कमेटी' ने सोमवार को एक निर्देश में कहा कि कोई सीएसओ (नागरिक समाज संगठन), जनजाति निकाय और व्यक्ति शांति समिति में भाग नहीं लेंगे। कोर कमेटी में कुकी-ज़ोमी समुदायों और कुकी इंपी मणिपुर, ज़ोमी काउंसिल और स्वदेशी जनजातीय नेताओं के मंच जैसे जनजातीय निकायों का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायक शामिल हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने एक बयान में कहा है कि 'भले ही शांति हमारी सच्ची इच्छा रही है, लेकिन निरंतर हिंसा, शोषण और उत्पीड़न की छाया में शांति के बारे में बात करना व्यर्थ साबित होगा। और इस हिंसा के मुख्य अपराधी एन बीरेन सिंह को शांति समिति के सदस्य के रूप में शामिल करना अपने आप में ज़ोमी, कुकी, हमार और मिज़ो समुदायों का अपमान है।'
यहां तक कि मेइती सीएसओ की संस्था कोकोमी ने समिति की संरचना पर नाराजगी व्यक्त की। इसने कहा कि यह इस आधार पर भाग नहीं लेगा कि समिति में शामिल होने का यह सही समय नहीं है। इसने कहा है कि 'नार्को-आतंकवादियों द्वारा परिष्कृत हथियारों से हमला अभी भी जारी है'। बता दें कि कोकोमी के मुख्य समन्वयक भी शांति समिति के सदस्य हैं।
कुकी समूहों के कई प्रतिनिधियों ने रविवार को कहा था कि वे इस बात से खुश नहीं हैं कि उन्हें उनकी सहमति के बिना समिति में नियुक्त किया गया है। उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार और मुख्यमंत्री पर सब कुछ छोड़ने के बजाय केंद्र को समिति का हिस्सा होना चाहिए। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार पैनल के सदस्य बनाए गए कई लोगों ने खुलासा किया है कि उन्हें उनकी सहमति के बिना जोड़ा गया। रिपोर्ट के अनुसार ऐसे ही एक सदस्य कुकी इंपी मणिपुर यानी केआईएम के अध्यक्ष अजांग खोंगसाई ने कहा कि वह शांति वार्ता के लिए मणिपुर सरकार के साथ नहीं बैठ पाएंगे।
खोंगसाई ने द हिंदू को बताया, 'पैनल में COCOMI (मणिपुर अखंडता पर समन्वय समिति, इंफाल में एक नागरिक समाज समूह) शामिल है जिसने कुकी के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है। हम शांति चाहते हैं लेकिन इस महत्वपूर्ण मोड़ पर, जब हिंसा जारी है, हम मणिपुर सरकार के साथ बातचीत नहीं कर सकते हैं।' एक सेवानिवृत्त भारतीय रक्षा लेखा सेवा अधिकारी जे. लुंगदिम ने भी कहा कि उनका नाम उनकी सहमति के बिना पैनल में शामिल किया गया।
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