मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के शुक्रवार को मणिपुर के चुराचांदपुर में दौरे से पहले हिंसा भड़क गई। हिंसा के बाद जिले में बड़ी सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और मोबाइल इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी गई हैं। कहा जा रहा है कि यह हिंसा आरक्षित और संरक्षित वनों और आर्द्रभूमि जैसे क्षेत्रों के भाजपा सरकार के सर्वेक्षण को लेकर हुई है। कथित रूप से मुख्यमंत्री की उपस्थिति में होने वाले एक कार्यक्रम स्थल पर गुरुवार को भीड़ ने तोड़फोड़ की और आग लगा दी।
मुख्यमंत्री आज ही वहाँ पर जिम-सह-खेल सुविधा का उद्घाटन करने वाले हैं। उस कार्यक्रम के लिए जोरदार तैयारियाँ की गईं। लेकिन बीजेपी सरकार की नीतियों से ग़ुस्साए लोगों ने वहाँ हिंसा कर दी।
सोशल मीडिया पर आए वीडियो में ग़ुस्साई भीड़ को सीएम के कार्यक्रम आयोजन स्थल के अंदर कुर्सियों और अन्य संपत्तियों को तोड़ते हुए देखा जा सकता है और नवनिर्मित जिम के खेल उपकरणों में भी आग लगा दी गई।
स्थानीय पुलिस इस पर कार्रवाई की और भीड़ को तितर-बितर कर दिया। लेकिन पुलिस की इस कार्रवाई से पहले सैकड़ों जलती हुई कुर्सियों से कार्यक्रम स्थल को पहले ही नुक़सान हो चुका था। स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए चुराचंदपुर प्रशासन ने जिले में सुरक्षा बढ़ा दी। कहा जा रहा है कि स्थिति अभी भी तनावपूर्ण बनी हुई है।
कथित तौर पर भीड़ की हिंसा का नेतृत्व इंडीजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने किया। फोरम आरक्षित और संरक्षित वन क्षेत्रों के अलावा आर्द्रभूमि पर भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के सर्वेक्षण पर आपत्ति जताता रहा है। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार इस फोरम ने राज्य सरकार पर गिरजाघरों को गिराने का आरोप लगाया है।
मणिपुर सरकार ने इस महीने की शुरुआत में कथित तौर पर राज्य में तीन चर्चों को यह कहते हुए ध्वस्त कर दिया था कि ये अवैध रूप से बनाए गए थे।
रिपोर्ट के अनुसार फोरम ने एक बयान में कहा कि वह सरकार के खिलाफ असहयोग अभियान चलाने के लिए मजबूर हो गया है और इस तरह उसके कार्यक्रमों में बाधा डाल रहा है और शुक्रवार को सुबह 8 बजे से जिले में आठ घंटे की हड़ताल का भी आह्वान किया है। राज्य के आदिवासियों के प्रति सौतेला व्यवहार करने के आरोपों के साथ कुकी छात्र संगठन ने भी उस फोरम का समर्थन किया है।
रिपोर्ट के अनुसार फोरम ने दावा किया है कि किसानों और अन्य आदिवासी निवासियों के आरक्षित वन क्षेत्रों को खाली करने के लिए चल रहे बेदखली अभियान का विरोध करते हुए सरकार को बार-बार ज्ञापन सौंपने के बावजूद सरकार ने लोगों की दुर्दशा को दूर करने की इच्छा या ईमानदारी का कोई संकेत नहीं दिया है।
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