मणिपुर की राजधानी इंफाल में सोमवार को इंफाल पूर्वी जिले में भीड़ द्वारा घरों में आग लगाने के बाद तनाव बढ़ गया। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सेना और अर्धसैनिक बलों को बुलाया गया। कहा जा रहा है कि हाल में शुरू हुई मणिपुर में हिंसा में मरने वालों की आधिकारिक संख्या अब 74 हो गई है। आगजनी के बाद राज्य सरकार ने फिर से कर्फ्यू को चुस्त कर दिया है। पहले कुछ दिनों तक शांति बनी रहने के बाद कर्फ्यू में ढील दी गई थी।
पहले सुबह छह बजे से शाम चार बजे तक कर्फ्यू में ढील दी गई थी जिसे अब कम करके सुबह 6 बजे से दोपहर 2 बजे तक कर दिया गया है। अधिकारियों ने घरों और परिसरों में आगजनी जैसी घटनाओं के जारी रहने की रिपोर्ट का हवाला देते हुए इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध को पांच और दिनों के लिए बढ़ा दिया।
आदेश में कहा गया है, 'ऐसी आशंका है कि असामाजिक तत्व जनता के जुनून को भड़काने वाली छवियों, अभद्र भाषा और अभद्र वीडियो संदेशों के प्रसारण के लिए बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया का उपयोग कर सकते हैं, जो मणिपुर में कानून-व्यवस्था की स्थिति के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं।'
इस महीने के पहले हफ्ते राज्य में हिंसा बड़े पैमाने पर भड़क गई थी। मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने पर मणिपुर में हिंसा होना बताया गया। मणिपुर में बीजेपी की सरकार है। मेइती समुदाय को अदालत के आदेश पर अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है। आदेश के खिलाफ राज्य के जनजातीय समूहों में विरोध हो रहा है। और इस पर जमकर राजनीति भी हो रही है।
दूसरी ओर, आदिवासियों की आबादी लगभग 40% है। वे मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं जो मणिपुर के लगभग 90% क्षेत्र में हैं। आदिवासियों में मुख्य रूप से नागा और कुकी शामिल हैं। आदिवासियों में अधिकतर ईसाई हैं जबकि मेइती में अधिकतर हिंदू। आदिवासी क्षेत्र में दूसरे समुदाय के लोगों को जमीन खरीदने की मनाही है।
राज्य के वैली व हिल एरिया के प्रशासन के लिए शुरू से ही अलग-अलग नियम-क़ानून रहा है। कानून में प्रावधान था कि मैदानी इलाक़ों में रहने वाले लोग पहाड़ियों में जमीन नहीं खरीद सकते। पहाड़ी क्षेत्र समिति को पहाड़ियों में रहने वाले राज्य के आदिवासी लोगों के हितों की रक्षा करने का काम सौंपा गया।
लंबे समय से प्रशासन सामान्य रूप से और शांतिपूर्ण तरीक़े से चल रहा था, लेकिन इस बीच कुछ बदलावों ने समुदायों के बीच तनाव को बढ़ा दिया।
दरअसल, हुआ यह कि इम्फाल घाटी में उपलब्ध भूमि और संसाधनों में कमी और पहाड़ी क्षेत्रों में गैर-आदिवासियों द्वारा भूमि खरीदने पर प्रतिबंध के कारण 12 साल पहले मेइती के लिए एसटी का दर्जा मांगने की मांग उठी थी। मामला मणिपुर हाई कोर्ट पहुँचा। इस साल 19 अप्रैल को मणिपुर उच्च न्यायालय ने भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को एसटी सूची में मेइती को शामिल करने पर विचार करने के लिए केंद्र को सिफारिशें देने और अगले चार सप्ताह के भीतर मामले पर विचार करने का निर्देश जारी किया था।
उच्च न्यायालय के आदेश ने मेइती और आदिवासी नागा और कुकी समुदायों के बीच पुराना विवाद खोल दिया। नागा व कुकी मुख्य रूप से ईसाई हैं और उन्हें लगा कि बहुसंख्यक समुदाय को एसटी का दर्जा नहीं मिलना चाहिए क्योंकि इससे पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के हितों को नुकसान होगा।
वर्तमान में संविधान के अनुच्छेद 371सी और अन्य अधिसूचनाओं के प्रावधानों के अनुसार मेइती पहाड़ी क्षेत्रों में जमीन नहीं खरीद सकते हैं। मेइती ज्यादातर हिंदू हैं और कुछ मेइती पंगल मुस्लिम भी हैं। मेइती मणिपुर में अन्य पिछड़ी जाति यानी ओबीसी में आते हैं।
संरक्षित वनों में राज्य सरकार द्वारा किए गए भूमि सर्वेक्षण को लेकर कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में तनाव बढ़ रहा है। हाल ही में राज्य सरकार ने चुराचंदपुर-खौपुम संरक्षित वन क्षेत्र में एक सर्वेक्षण किया। आरोप है कि उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की राय लिए बिना और उन्हें बेदखल करने के इरादे से सर्वेक्षण किया गया। स्थानीय लोगों को डर था कि इस अभियान का उद्देश्य उन्हें जंगलों से बेदखल करना है, जहां वे सैकड़ों वर्षों से रह रहे हैं।
यही वजह है कि 27 अप्रैल को मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के व्यायामशाला और खेल परिसर का उद्घाटन करने के लिए उनके दौरे से एक दिन पहले चुराचंदपुर में एक भीड़ ने मुख्यमंत्री के कार्यक्रम स्थल में आग लगा दी थी। इससे भी दोनों समुदायों के बीच तनाव बढ़ रहा था।
अपनी राय बतायें