पिछले एक महीने से हिंसा में जल रहे मणिपुर में शांति लाने के लिए अब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह जुटे हैं। वह अलग-अलग समुदायों और समूहों के साथ लगातार बैठकें कर रहे हैं। लेकिन सवाल है कि क्या जल्द शांति स्थापित होगी? आख़िर हिंसा की वजह क्या है और क्या ये वजहें दूर होंगी?
हिंसा की वजह क्या है, यह ढूंढना भी आसान नहीं लगता है। और जब तक हिंसा की वजह नहीं पता चलेगी तब तक शांति लाना बेहद मुश्किल हो सकता है। हिंसा की वजह को लेकर दो अलग-अलग बयान हैं। चीफ़ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ यानी सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने कहा है कि मणिपुर में मौजूदा हिंसा का उग्रवाद से कोई लेना-देना नहीं है और यह मुख्य रूप से दो जातियों के बीच संघर्ष था। जबकि मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने इसके उलट बयान दिया है। बीरेन सिंह ने पहले दावा किया था कि राज्य में समुदायों के बीच कोई प्रतिद्वंद्विता नहीं थी और ये झड़पें कुकी उग्रवादियों और सुरक्षा बलों के बीच लड़ाई का परिणाम थीं।
मुख्यमंत्री का यह बयान कुछ दिनों पहले आया था। इसी बीच मुख्यमंत्री ने पिछले हफ़्ते ही कहा था कि सुरक्षा बलों के साथ झड़प में कम से कम 40 उग्रवादी मारे गए और कई उग्रवादियों को गिरफ़्तार किया गया। उन्होंने यह भी कहा था कि उग्रवादियों को हिरासत में लिया गया।
मणिपुर में इस महीने की शुरुआत में शुरू हुए जातीय संघर्ष में अब तक कम से कम 80 लोग मारे जा चुके हैं। तीन दिन पहले ही पाँच लोग मारे गए थे। क़रीब महीने भर से जारी इस हिंसा को रोकने के लिए सेना तक को बुलाना पड़ा, इंटरनेट को बंद करना पड़ा, कर्फ्यू लगाना पड़ा और राहत शिविर तक स्थापित करने पड़े।
जब तब हिंसा की आ रही ख़बरों के बीच पत्रकारों के सवालों के जवाब में सीडीएस अनिल चौहान ने पुणे में संवाददाताओं से कहा, 'दुर्भाग्य से मणिपुर में इस विशेष स्थिति का उग्रवाद से कोई लेना-देना नहीं है और यह मुख्य रूप से दो जातियों के बीच संघर्ष है।' उन्होंने कहा, 'यह एक कानून-व्यवस्था की स्थिति है और हम राज्य सरकार की मदद कर रहे हैं। हमने बेहतरीन काम किया है और बड़ी संख्या में लोगों की जान बचाई है। मणिपुर में चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं और इसमें कुछ समय लगेगा लेकिन उम्मीद है कि वे व्यवस्थित होंगी।'
रिपोर्टों में इस महीने के पहले हफ्ते में राज्य में जो बड़े पैमाने पर हिंसा भड़की उसके पीछे मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिये जाने को मुख्य कारण बताया जा रहा है।
मणिपुर में बीजेपी की सरकार है। मेइती समुदाय को अदालत के आदेश पर अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है। आदेश के खिलाफ राज्य के जनजातीय समूहों में विरोध हो रहा है। और इस पर जमकर राजनीति भी हो रही है।
मणिपुर मुख्य तौर पर दो क्षेत्रों में बँटा हुआ है। एक तो है इंफाल घाटी और दूसरा हिल एरिया। इंफाल घाटी राज्य के कुल क्षेत्रफल का 10 फ़ीसदी हिस्सा है जबकि हिल एरिया 90 फ़ीसदी हिस्सा है। इंफाल घाटी के इन 10 फ़ीसदी हिस्से में ही राज्य की विधानसभा की 60 सीटों में से 40 सीटें आती हैं। इन क्षेत्रों में मुख्य तौर पर मेइती समुदाय के लोग रहते हैं।
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आदिवासियों की आबादी लगभग 40% है। वे मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं जो मणिपुर के लगभग 90% क्षेत्र में हैं। आदिवासियों में मुख्य रूप से नागा और कुकी शामिल हैं। आदिवासियों में अधिकतर ईसाई हैं जबकि मेइती में अधिकतर हिंदू। आदिवासी क्षेत्र में दूसरे समुदाय के लोगों को जमीन खरीदने की मनाही है। लेकिन इस बीच कुछ बदलावों ने समुदायों के बीच तनाव को बढ़ा दिया।
दरअसल, हुआ यह कि इंफाल घाटी में उपलब्ध भूमि और संसाधनों में कमी और पहाड़ी क्षेत्रों में गैर-आदिवासियों द्वारा भूमि खरीदने पर प्रतिबंध के कारण 12 साल पहले मेइती के लिए एसटी का दर्जा मांगने की मांग उठी थी। मामला मणिपुर हाई कोर्ट पहुँचा। इस साल 19 अप्रैल को मणिपुर उच्च न्यायालय ने भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को एसटी सूची में मेइती को शामिल करने पर विचार करने के लिए केंद्र को सिफारिशें देने और अगले चार सप्ताह के भीतर मामले पर विचार करने का निर्देश जारी किया था।
इस बीच संरक्षित वनों में राज्य सरकार द्वारा किए गए भूमि सर्वेक्षण को लेकर कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में तनाव बढ़ रहा है। हाल ही में राज्य सरकार ने चुराचंदपुर-खौपुम संरक्षित वन क्षेत्र में एक सर्वेक्षण किया। आरोप है कि उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की राय लिए बिना और उन्हें बेदखल करने के इरादे से सर्वेक्षण किया गया। स्थानीय लोगों को डर था कि इस अभियान का उद्देश्य उन्हें जंगलों से बेदखल करना है, जहां वे सैकड़ों वर्षों से रह रहे हैं। यही वजह है कि 27 अप्रैल को मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के व्यायामशाला और खेल परिसर का उद्घाटन करने के लिए उनके दौरे से एक दिन पहले चुराचंदपुर में एक भीड़ ने मुख्यमंत्री के कार्यक्रम स्थल में आग लगा दी थी।
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