मणिपुर हाईकोर्ट ने अपने उस विवादास्पद आदेश से एक पैराग्राफ हटा दिया है जिसमें राज्य सरकार को मैतेई समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति के दर्जे पर एक सिफारिश भेजने का निर्देश दिया गया था। हाईकोर्ट ने 27 मार्च, 2023 को वह आदेश निकाला था। इसके कुछ दिनों बाद ही आदिवासी कुकी-ज़ोमी समुदाय और मैतेई के बीच तनाव हो गया था और फिर देखते ही देखते हिंसा हो गई थी। कुकी-ज़ोमी समुदाय ने अदालत के निर्देश का विरोध किया था।
पिछले साल शुरू हुई हिंसा अभी भी पूरी तरह ख़त्म नहीं हुई है और जब तब हिंसा की ख़बरें आती रही हैं। अलग-अलग मुद्दों को लेकर दोनों समुदाय में हिंसा भड़क जाती है और लोगों की जानें तक चली जाती हैं। क़रीब हफ़्ते भर पहले ही हिंसा हो गई थी और कम से कम एक शख्स की मौत हो गई थी। हथियारबंद लोगों के साथ एक वीडियो में दिखने पर एक कुकी पुलिसकर्मी को निलंबित किये जाने के बाद बवाल हो गया था। पुलिसकर्मी के समर्थन में भीड़ ने जिला पुलिस अधीक्षक के कार्यालय पर प्रदर्शन किया था और कथित तौर पर पथराव किया था। सुरक्षा बलों ने जिला पुलिस अधीक्षक के कार्यालय पर जमा हुए सैकड़ों लोगों को हटाने के लिए बल प्रयोग किया था।
बता दें कि पिछले साल 3 मई से कुकी और मैतेई समुदायों के बीच जातीय हिंसा में 100 से अधिक लोग मारे गए हैं। लगभग 50,000 लोग विस्थापित हुए हैं और पुलिस शस्त्रागार से 4,000 से अधिक हथियार लूट लिए गए हैं या छीन लिए गए हैं।
बहरहाल, अब हाईकोर्ट ने उस मामले में नया फ़ैसला दिया है। न्यायमूर्ति गोलमेई गाइफुलशिलु की पीठ ने कहा कि यह फैसला कानून की गलत धारणा के तहत पारित किया गया था। अदालत ने मैतेई ट्राइब्स यूनियन द्वारा दायर एक समीक्षा याचिका का निपटारा करते हुए आदेश के एक पैराग्राफ को हटा दिया। वह उस मामले में याचिकाकर्ता थे जिसमें अदालत ने पहले आदेश पारित किया था।
समीक्षा याचिका में 27 मार्च के आदेश के पैराग्राफ 17 (iii) में संशोधन की मांग की गई थी। इसमें कहा गया था, 'पहला प्रतिवादी (मणिपुर सरकार) मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने के लिए याचिकाकर्ताओं के मामले पर विचार करेगा।' अब ताज़ा आदेश से इस पैराग्राफ को फैसले से हटा दिया गया।
इस विशेष पैराग्राफ का विरोध किया गया था क्योंकि इसे महाराष्ट्र राज्य बनाम मिलिंद और अन्य पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन माना गया था। इसमें कहा गया था कि राज्यों के पास राष्ट्रपति के आदेशों में संशोधन करने की कोई शक्ति नहीं है।
राज्य में भड़की हिंसा पर दो याचिकाओं और पिछले जून में 27 मार्च के आदेश पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि मैतेई के लिए एसटी दर्जा की मांग करने वाले मूल याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट को यह क्यों नहीं बताया कि आरक्षण की सिफ़ारिश करने की शक्ति उसके पास नहीं है। सीजेआई ने मूल याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े से कहा था, 'आपने हाई कोर्ट को कभी नहीं बताया कि उसके पास यह शक्ति नहीं है... यह राष्ट्रपति की शक्ति है।' इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने इस पैराग्राफ में संशोधन के लिए मणिपुर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
मैतेई और कुकी के बीच गहरी खाई
मणिपुर मुख्य तौर पर दो क्षेत्रों में बँटा हुआ है। एक तो है इंफाल घाटी और दूसरा हिल एरिया। इंफाल घाटी राज्य के कुल क्षेत्रफल का 10 फ़ीसदी हिस्सा है जबकि हिल एरिया 90 फ़ीसदी हिस्सा है। इन 10 फ़ीसदी हिस्से में ही राज्य की विधानसभा की 60 सीटों में से 40 सीटें आती हैं। इन क्षेत्रों में मुख्य तौर पर मैतेई समुदाय के लोग रहते हैं।
दूसरी ओर, आदिवासियों की आबादी लगभग 40% है। वे मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं जो मणिपुर के लगभग 90% क्षेत्र में हैं। आदिवासियों में मुख्य रूप से नागा और कुकी शामिल हैं। आदिवासियों में अधिकतर ईसाई हैं जबकि मैतेई में अधिकतर हिंदू। आदिवासी क्षेत्र में दूसरे समुदाय के लोगों को जमीन खरीदने की मनाही है।
राज्य के वैली व हिल एरिया के प्रशासन के लिए शुरू से ही अलग-अलग नियम-क़ानून रहा है। कानून में प्रावधान था कि मैदानी इलाक़ों में रहने वाले लोग पहाड़ियों में जमीन नहीं खरीद सकते। पहाड़ी क्षेत्र समिति को पहाड़ियों में रहने वाले राज्य के आदिवासी लोगों के हितों की रक्षा करने का काम सौंपा गया।
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