मणिपुर के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पिछली बार से काफी बेहतर प्रदर्शन किया है जबकि कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है। चुनाव नतीजों में बीजेपी को 32 सीटें मिली हैं, जबकि एनपीपी को 7, एनपीएफ को 5, कांग्रेस को 5, जेडीयू को 6, कुकी पीपल्स अलायंस को 2 और निर्दलीय उम्मीदवारों को 3 सीटों पर कामयाबी हासिल हुई है। 60 सीटों वाले मणिपुर में अकेले दम पर सरकार बनाने के लिए 31 विधायक चाहिए, इस तरह बीजेपी
यहां अकेले ही सरकार बना सकती है।
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 60 सीटों वाले मणिपुर में 21 सीटों पर जीत मिली थी और कांग्रेस को 28 सीटों पर। लेकिन बीजेपी ने राज्य के छोटे दलों जैसे एनपीपी और एनपीएफ के साथ मिलकर सरकार बना ली थी।
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एनपीपी और एनपीएफ को चार-चार सीटें मिली थीं जबकि लोक जनशक्ति पार्टी को 1 सीट पर जीत मिली थी।
लेकिन बीजेपी ने इस बार एनपीपी और एनपीएफ के साथ चुनाव मैदान में उतरने के बजाय अकेले ही चुनाव लड़ा।
कांग्रेस ने इस बार 6 राजनीतिक दलों का गठबंधन बनाया और इसे मणिपुर प्रोग्रेसिव सेक्युलर एलायंस का नाम दिया गया है। इस गठबंधन में कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), फॉरवर्ड ब्लॉक, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) और जनता दल (सेक्युलर) शामिल हैं। लेकिन इसके बाद भी वह बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकी।
कांग्रेस के कई विधायकों ने भी पार्टी का साथ छोड़ दिया था और इस वजह से पार्टी राज्य में काफी कमजोर हो गई थी।
कौन होगा सीएम?
मणिपुर में इस बार बीजेपी ने किसी भी नेता को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया। क्योंकि पार्टी को इस बात का डर था कि इससे राज्य इकाई के अंदर बवाल हो सकता है। वर्तमान मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह 2017 के विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए थे और तब पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था।
बीरेन सिंह को चुनौती
बीरेन सिंह को सबसे बड़ी चुनौती कैबिनेट मंत्री विश्वजीत से मिल रही है। विश्वजीत के पास राज्य सरकार के 6 विभाग हैं और उन्हें मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शुमार किया जाता रहा है। इन दोनों के बीच राजनीतिक लड़ाई मणिपुर में साफ दिखती रही है।
विश्वजीत के समर्थक दो बार बीजेपी हाईकमान के पास गुहार भी लगा चुके हैं कि बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री के पद से हटा दिया जाए। लेकिन पार्टी हाईकमान ने तब जैसे-तैसे मामले को शांत करा दिया था।
विश्वजीत के अलावा दूसरा नाम गोविंदास कौनथुजाम का है। गोविंदास मणिपुर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं और पिछले साल उन्होंने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का हाथ थाम लिया था। गोविंदास इस लड़ाई में बीरेन सिंह और विश्वजीत से आगे निकल सकते हैं क्योंकि उन्हें आरएसएस का भी समर्थन हासिल है।
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