मणिपुर में पिछले तीन महीने से जारी हिंसा के बीच अब एनडीए सहयोगी कुकी पीपुल्स अलायंस यानी केपीए ने रविवार को एन बीरेन सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। हालाँकि, इससे सरकार के गिरने की कोई आशंका नहीं है और राज्य में एनडीए के पास पर्याप्त संख्या है। राज्य में पिछले तीन महीनों से जातीय हिंसा में 150 से ज़्यादा लोगों की जान चली गई है।
राज्यपाल अनुसुइया उइके को लिखे पत्र में केपीए अध्यक्ष टोंगमांग हाओकिप ने मणिपुर में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार के साथ संबंध तोड़ने के पार्टी के फैसले के बारे में जानकारी दी।
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार राज्यपाल को लिखे ख़त में केपीए के अध्यक्ष ने कहा है, 'मौजूदा टकराव पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली मणिपुर की मौजूदा सरकार के लिए निरंतर समर्थन अब निरर्थक है। इस तरह मणिपुर सरकार को केपीए का समर्थन वापस लिया जाता है और इसे अमान्य माना जा सकता है।'
3 मई को मणिपुर में जातीय हिंसा भड़की और यह अभी भी जारी है। मणिपुर में हिंसा की वजह दो समुदायों- मैतेई और कुकी समुदायों के बीच चली आ रही तनातनी है। कहा जा रहा है कि यह तनाव तब बढ़ गया जब मैतेई को एसटी का दर्जा दिए जाने की बात कही जाने लगी।इसको लेकर हजारों आदिवासियों ने राज्य के 10 पहाड़ी जिलों में एक मार्च निकाला। इन जिलों में अधिकांश आदिवासी आबादी निवास करती है। यह मार्च इसलिए निकाला गया कि मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के प्रस्ताव का विरोध किया जाए। मैतेई समुदाय की आबादी मणिपुर की कुल आबादी का लगभग 53% है और यह मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहती है।
बहरहाल, मौजूदा 60 सदस्यीय सदन में केपीए के दो विधायक हैं - सैकुल से किम्नेओ हाओकिप हैंगशिंग और सिंघाट से चिनलुनथांग। मणिपुर विधानसभा में बीजेपी के 32 सदस्य हैं, जबकि उसे पांच एनपीएफ विधायकों और तीन निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त है। विपक्षी विधायकों में एनपीपी के सात, कांग्रेस के पांच और जदयू के छह विधायक शामिल हैं।
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