मणिपुर में इस महीने की शुरुआत में शुरू हुए जातीय संघर्ष में अब तक कम से कम 80 लोग मारे जा चुके हैं। दो दिन पहले ही पाँच लोग मारे गए हैं। क़रीब महीने भर से जारी इस हिंसा को रोकने के लिए सेना तक को बुलाना पड़ा। शांति के प्रयास पर्याप्त नहीं करने के लिए काफ़ी आलोचनाओं का सामना कर रहे देश के गृहमंत्री अमित शाह अब मणिपुर के दौरे पर पहुँचे हैं। शांति लाने के प्रयास के तहत उन्होंने कई समूहों के साथ बैठक की है। तो सवाल है कि अब तक इन बैठकों का क्या नतीजा निकला और आख़िर मणिपुर में समस्या क्या है?
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है, 'आज इंफाल में विभिन्न नागरिक समाज संगठनों के सदस्यों के साथ सार्थक चर्चा हुई। उन्होंने शांति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की और आश्वासन दिया कि हम साथ मिलकर मणिपुर में सामान्य स्थिति बहाल करने का मार्ग प्रशस्त करने में योगदान देंगे।'
Had a fruitful discussion with the members of the different Civil Society Organizations today in Imphal. They expressed their commitment to peace and assured that we would together contribute to paving the way to restore normalcy in Manipur. pic.twitter.com/ao9b7pinGf
— Amit Shah (@AmitShah) May 30, 2023
इससे पहले उन्होंने महिला नेताओं के साथ भी मुलाक़ात की थी। उन्होंने कहा है, 'मणिपुर में महिला नेताओं (मीरा पैबी) के एक समूह के साथ बैठक की। मणिपुर के समाज में महिलाओं की भूमिका के महत्व को दोहराया। हम सब मिलकर राज्य में शांति और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।'
इधर मणिपुर में हालात को लेकर मीडिया से बातचीत के दौरान एक सवाल का जवाब देते हुए सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने कहा, 'मणिपुर में चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं। इसमें थोड़ा वक्त लगेगा। उम्मीद है, यह सुलझेगा और राज्य सरकार सीएपीएफ आदि की मदद से काम करने में सक्षम होगी। और सशस्त्र बलों को उत्तरी सीमा पर उन चुनौतियों पर ध्यान देना चाहिए जो अब तक ख़त्म नहीं हुई हैं।'
तो सवाल है कि आख़िर मणिपुर में इस जातीय संघर्ष की वजह क्या है? आख़िर क्यों इतने बड़े पैमाने पर हिंसा हो रही है कि पूरी की पूरी आबादी को अपने घर तक छोड़ना पड़ रहा है।
राज्य में हिंसा के पीछे की वजह को ऐसे समझा जा सकता है कि मणिपुर मुख्य तौर पर दो क्षेत्रों में बँटा हुआ है। एक तो है इंफाल घाटी और दूसरा हिल एरिया। इंफाल घाटी राज्य के कुल क्षेत्रफल का 10 फ़ीसदी हिस्सा है जबकि हिल एरिया 90 फ़ीसदी हिस्सा है। इंफाल घाटी के इन 10 फ़ीसदी हिस्से में ही राज्य की विधानसभा की 60 सीटों में से 40 सीटें आती हैं। इन क्षेत्रों में मुख्य तौर पर मेइती समुदाय के लोग रहते हैं।
आदिवासियों की आबादी लगभग 40% है। वे मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं जो मणिपुर के लगभग 90% क्षेत्र में हैं। आदिवासियों में मुख्य रूप से नागा और कुकी शामिल हैं। आदिवासियों में अधिकतर ईसाई हैं जबकि मेइती में अधिकतर हिंदू। आदिवासी क्षेत्र में दूसरे समुदाय के लोगों को जमीन खरीदने की मनाही है।
राज्य के वैली व हिल एरिया के प्रशासन के लिए शुरू से ही अलग-अलग नियम-क़ानून रहा है। कानून में प्रावधान था कि मैदानी इलाक़ों में रहने वाले लोग पहाड़ियों में जमीन नहीं खरीद सकते। पहाड़ी क्षेत्र समिति को पहाड़ियों में रहने वाले राज्य के आदिवासी लोगों के हितों की रक्षा करने का काम सौंपा गया।
लंबे समय से प्रशासन सामान्य रूप से और शांतिपूर्ण तरीक़े से चल रहा था, लेकिन इस बीच कुछ बदलावों ने समुदायों के बीच तनाव को बढ़ा दिया।
दरअसल, हुआ यह कि इंफाल घाटी में उपलब्ध भूमि और संसाधनों में कमी और पहाड़ी क्षेत्रों में गैर-आदिवासियों द्वारा भूमि खरीदने पर प्रतिबंध के कारण 12 साल पहले मेइती के लिए एसटी का दर्जा मांगने की मांग उठी थी। मामला मणिपुर हाई कोर्ट पहुँचा। इस साल 19 अप्रैल को मणिपुर उच्च न्यायालय ने भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को एसटी सूची में मेइती को शामिल करने पर विचार करने के लिए केंद्र को सिफारिशें देने और अगले चार सप्ताह के भीतर मामले पर विचार करने का निर्देश जारी किया था।
उच्च न्यायालय के आदेश ने मेइती और आदिवासी नागा और कुकी समुदायों के बीच पुराना विवाद खोल दिया। नागा व कुकी मुख्य रूप से ईसाई हैं और उन्हें लगा कि बहुसंख्यक समुदाय को एसटी का दर्जा नहीं मिलना चाहिए क्योंकि इससे पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के हितों को नुकसान होगा।
वर्तमान में संविधान के अनुच्छेद 371सी और अन्य अधिसूचनाओं के प्रावधानों के अनुसार मेइती पहाड़ी क्षेत्रों में जमीन नहीं खरीद सकते हैं। मेइती ज्यादातर हिंदू हैं और कुछ मेइती पंगल मुस्लिम भी हैं। मेइती मणिपुर में अन्य पिछड़ी जाति यानी ओबीसी में आते हैं।
संरक्षित वनों में राज्य सरकार द्वारा किए गए भूमि सर्वेक्षण को लेकर कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में तनाव बढ़ रहा है। हाल ही में राज्य सरकार ने चुराचंदपुर-खौपुम संरक्षित वन क्षेत्र में एक सर्वेक्षण किया। आरोप है कि उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की राय लिए बिना और उन्हें बेदखल करने के इरादे से सर्वेक्षण किया गया। स्थानीय लोगों को डर था कि इस अभियान का उद्देश्य उन्हें जंगलों से बेदखल करना है, जहां वे सैकड़ों वर्षों से रह रहे हैं।
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