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प्रतीकात्मक तसवीर।

नगालैंड: तनावपूर्ण माहौल के बीच 6 महीने के लिए बढ़ाया गया अफ़स्पा

नगालैंड में 4 दिसंबर को हुई फायरिंग के बाद विवादित कानून अफ़स्पा को हटाने की मांग जोर-शोर से उठी है। लेकिन अब इसे राज्य में 6 महीने के लिए बढ़ा दिया गया है। फायरिंग की घटना में 14 नागरिकों और सेना के एक जवान की मौत हो गई थी। इसके बाद बड़ी संख्या में लोग नगालैंड में सड़कों पर उतरे थे और अफ़स्पा को हटाने की मांग की थी। 

20 दिसंबर को नगालैंड की विधानसभा ने सर्वसम्मति से अफ़स्पा को पूर्वोत्तर से विशेषकर नगालैंड से हटाने के संबंध में प्रस्ताव पास किया था। इस बीच फायरिंग के मामले में नगालैंड सरकार की ओर से बनाई गई स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम यानी एसआईटी को सेना के अफसरों व जवानों के बयान रिकॉर्ड करने की इजाजत भी दे दी गई है। 

फायरिंग की घटना मोन जिले के ओतिंग गांव में हुई थी। यह जिला भारत और म्यांमार की सीमा से सटा हुआ है। 

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फायरिंग की घटना के बाद जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो, मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा, एआईएमआईएम के सांसद असदउद्दीन ओवैसी सहित कई नेताओं ने मांग की थी कि अफ़स्पा क़ानून को हटा दिया जाना चाहिए।
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क्या है अफ़स्पा क़ानून

पूर्वोत्तर के राज्यों में सुरक्षा बलों को विशेष अधिकार देने वाले सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून (अफ़स्पा) को लेकर लंबे समय से विवाद रहा है। यह क़ानून तब लगाया जाता है जब किसी इलाक़े को सरकार ‘अशांत इलाक़ा’ यानी ‘डिस्टर्बड एरिया’ घोषित कर देती है। इस क़ानून के लागू होने के बाद वहां सेना या सशस्त्र बलों को भेजा जाता है। अगर सरकार यह घोषणा कर दे कि अब राज्य के उस इलाक़े में शांति है तो इसे हटा लिया जाता है और जवानों को वापस बुला लिया जाता है। 

1958 में इसे असम, मिज़ोरम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड सहित पूरे पूर्वोत्तर भारत में लागू किया गया था, जिससे उस दौरान इन राज्यों में फैली हिंंसा पर क़ाबू पाया जा सके। मेघालय से इसे पूरी तरह ख़त्म कर दिया गया है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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