इस हफ्ते यूरो फाइनल में मेज़बान इंग्लैंड की हार के बाद जैसे कुछ फुटबॉलप्रेमी बौखलाए, उससे दुनिया भर में शायद ही कोई चौंकता क्योंकि कई दशकों से इंग्लिश फुटबॉल प्रेमी की छवि उपद्रवी और दंगाई के तौर पर बनी हुई है। लेकिन, दुख की बात यह थी कि टीम की हार के लिए भड़के फैंस ने अपने ही मुल्क के खिलाड़ियों पर निशाना साधा। सबसे ज़्यादा मायूस करने वाली बात ये रही कि तीन अश्वेत खिलाड़ियों मार्कस रशफोर्ड, बुकायोसाका और जेडन सांचो पर नस्लीय और भद्दी टिप्पणियाँ की गईं। ये इतना शर्मनाक था कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को खुद सार्वजिनक तौर पर ऐसे रवैये की निंदा कनी पड़ी जो खुद हमेशा से देश और समाज को बांटने वाले सिद्धांतों की वकालत करते आये हैं।
क्या कोहली और बुमराह जातिवाद के ख़िलाफ़ बोलेंगे?
- खेल
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- 15 Jul, 2021

अहम सवाल उठता है कि भारतीय खिलाड़ी ख़ासकर विराट कोहली और जसप्रीत बुमराह जैसे सुपरस्टार भारतीय समाज की इस बीमारी पर कभी खुलकर अपनी राय रखेंगे? क्या कोहली कभी ऐसी बात कहेंगे जिससे यह लगे कि जातिवाद वाली सोच रखने वालों को एक सबक मिले?
भारत में बैठे खेल प्रेमियों को इंग्लैंड फुटबॉल समर्थकों का ये रवैया बेहद अजीब लग सकता है। इसकी वजह ये है कि क्रिकेट के लेंस से इंग्लैंड के खेल-प्रेमी बिलकुल अलग दिखते हैं। हकीकत में अगर बात की जाए तो इंग्लैंड क्रिकेट ने पिछले कुछ दशक में रंगभेद और नस्लभेद जैसी सामाजिक कुरीतियों को जड़ से मिटाने के लिए कुछ बेहतरीन प्रयास किए हैं।