"पूरी इंग्लैंड सीरीज़ 2021 के दौरान अब हमारी रणनीति कमोबेश ऐसी ही रहेगी। वैसे हाल के सालों में विदेशी पिचों पर हालात को देखते हुए हमने अपनी सोच में बदलाव किए हैं, जो इस टीम की सबसे बड़ी ताक़त रही है और ऐसी ज़रूरत महसूस हुई तो आगे भी करेंगे।"
लॉर्ड्स टेस्ट के शुरू होने से पहले विराट कोहली ने रविचंद्रण अश्विन के प्लेइंग इलवेन में नहीं चुने जाने के सवाल पर अपना जवाब कुछ इस अंदाज़ में दिया था।
शार्दुल ठाकुर के अनफ़िट होने के बावजूद कोहली ने ईशांत शर्मा को टीम में शामिल किया, लेकिन अश्विन को फिर से नज़रअंदाज़ कर गये।
एक बार फिर क्रिकेट जगत में बहस छिड़ी हुई है कि आखिर भारत के चैंपियन गेंदबाज़ रविचंद्रण अश्विन के साथ कप्तान विराट कोहली ऐसी बदसलूकी क्यों करते हैं?
क्या कहना है मनिंदर सिंह का?
टीम इंडिया के पूर्व गेंदबाज़ मनिंदर सिंह का कहना है कि अगर आपको कहीं भी सिर्फ एक स्पिनर का चयन करना है तो आपको अश्विन के अलावा किसी और देखने की ज़रूरत नहीं है।
यही बात मुझे इस साल के शुरुआत तक में चयन समिति के अध्यक्ष रहने वाले एम. एस. के. प्रसाद ने कही।
दुनिया के किसी भी पूर्व खिलाड़ी या कप्तान के गले से यह बात उतर ही नहीं पा रही है कि जडेजा को आप ऑलरांउडर के तौर पर टीम में शामिल कर लेतें है, लेकिन अश्विन जिनका टेस्ट रिकॉर्ड बल्लेबाज़ी के मामले में जडेजा से बहुत उन्नीस नहीं है, उसे छांट देते हैं। गेंदबाज़ी के मोर्चे पर जडेजा की तुलना तो अश्विन से हो ही नहीं सकती है।
कोहली से भी विराट हैं अश्विन!
हमें अश्विन की महानता को सही तरीके समझने के लिए अपने नज़रिए को बदलने की ज़रूरत आ पड़ी है क्योंकि भारतीय क्रिकेट में अश्विन की महानता को वह सम्मान नहीं मिलता है, जिसके वे असली हक़दार है।
टेस्ट क्रिकेट में जब कोई गेंदबाज़ पारी में 5 विकेट लेने का कमाल दिखाता है तो उसे बल्लेबाज़ी में शतक के बराबर की उपलब्धि मानी जाती है और पूरे मैच में 10 विकेट को एक दोहरे शतक का दर्जा मिलता है।
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क्रिकेट जगत में इस तरह की एक मान्यता है क्योंकि जब किसी गेंदबाज़ और बल्लेबाज़ के आँकड़ों की सीधे-सीधे किसी और कसौटी पर तौला नहीं जा सकता है।
विराट कोहली के टेस्ट क्रिकेट में 27 शतक हैं 93 मैचों में। वहीं अश्विन ने सिर्फ 79 मैचों में 30 मौके पर पारी में 5 विकेट लेने का कमाल दिखा दिया है। यानी, एक तरह से 30 शतक और वह भी कोहली से करीब 14 मैच कम खेलकर!
सबसे आगे अश्विन!
आप एक और शानदार बात पर ग़ौर करें। अपने टेस्ट करियर की शुरुआत के बाद से अश्विन ने किसी और गेंदबाज़ को पारी में खुद से ज़्यादा 5 विकेट लेने का मौका नहीं दिया है।
यह वैसी ही बात है अगर आपको यह कहा जाए कि कोहली ने जब से अपने टेस्ट करियर का आगाज़ किया है, उन्होंने खुद से ज़्यादा शतक किसी को बनाने नहीं दिया है।
ऐसा कोहली ने तो नहीं किया है, लेकिन अश्विन कर चुके हैं और अब भी कर रहें हैं।
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दक्षिण भारत से पक्षपात
जब क्रिकेट के तर्क इस बात को समझने के लिए काफी नहीं हों कि आखिर अश्विन को क्यों हमेशा बेवजह बैठा दिया जाता है, तो न चाहते हुए भी आपका ध्यान राजनीति पर चला जाता है।
भारतीय क्रिकेट में हमेशा से ही दक्षिण भारत से आने वाले खिलाड़ियों को वैसी अहमियत नहीं दी जाती है जैसा कि पश्चिम या फिर उत्तर भारत के खिलाड़ियों को तवज्जो दी जाती है।
कुंबले से तुलना
कई मायनों में देखा जाए तो इस मामले में अश्विन की तुलना कुंबले से ही हो सकती है । दोनों का सफर करीब करीब एक जैसा ही रहा है।
दक्षिण भारत से आने वाले इन दोनों खिलाड़ियों का मिज़ाज और स्वभाव काफी हद तक मिलता जुलता है और अपनी अपनी टीमों के लिए ये बड़े मैच विनर साबित हुए हैं।
ये दोनों खिलाड़ी अक्सर अपनी ज़ुबान की बजाए अपने खेल से आलोचकों को जवाब देते हैं। कुंबले को भले ही देर से ही सही, भारतीय क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर जैसा बड़ा मैच-विनर मानना ही पड़ा और उन्हें कप्तानी भी देनी पड़ी, लेकिन अश्विन के साथ अब तक ऐसा नहीं हो पाया है।
कुंबले की ही तरह अश्विन को भी बेहद सुलझा, क्रिकेट की बेहतरीन समझ रखने वाला खिलाड़ी माना जाता है। लेकिन, उन्हें भारतीय चयनकर्ता कभी भी कप्तानी के लिए किसी भी फॉर्मेट में विकल्प के तौर पर नहीं देखते हैं।
अश्निन का संयम
छह सौ से ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय विकेट लेने के बाद अगर आपको कोई गंभीरता से नहीं ले तो समझ लेना चाहिए कि उस खिलाड़ी के पास कितना संयम है। जो अपने मौके के इतंज़ार में सब्र खोना नहीं चाहता है।
आलम यह है कि रोहित और अंजिक्या रहाणे जैसे खिलाड़ी अगल-अलग फॉर्मेट में अंदर-बाहर होने के बावजूद सफेद गेंद और लाल गेंद की क्रिकेट में भारत के लिए कप्तान कर चुके हैं। कुंबले को भी तेंदुलकर, सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ के साये में रहने के चलते कप्तानी के योग्य नहीं समझा गया।
कमी विराट की सोच में है?
आपको याद है ना किस तरीके से पिछले साल ऑस्ट्रेलिया दौरे पर कप्तान कोहली के वापस लौटने पर अंजिक्या रहाणे ने अश्विन पर भरोसा दिखाया था।
अश्विन ने भले ही उस दौरे में पारी में 5 विकेट का कमाल नहीं दिखाया, लेकिन मेज़बान टीम के दो सबसे ख़तरनाक बल्लेबाज़ों को (स्टीवन स्मिथ और मार्कस लाबुसेन) को रनों के लिए तरसाया और उनके विकेट सस्ते में निकाले।
इसके चलते भारत को सीरीज़ जीतने में बड़ी मदद मिली।
उस समय भी कई जानकारों ने दबी ज़ुबान से यह कहा था कि नियमित कप्तान कोहली ने शायद अश्विन जैसे सीनियर की प्रतिभा के साथ सही रवैया नहीं अपनाया।
नई प्रतिभा से मायूसी
वैसे साल 2014 में कोहली ने अपनी कप्तानी के पहले टेस्ट, एडिलेड में अश्विन को नज़रअदाज़ कर युवा करन शर्मा को मौका दिया था, जिससे उन्हें काफी मायूसी हुई थी।
हो सकता है कि कोहली अब भी पिछले इंग्लैंड दौरे की यादों के ध्यान में रखते हुए अश्विन के साथ ऐसा रवैया अपना रहे हैं। 2018 के दौरे पर अश्विन ने बेहतरीन शुरुआत की थी, लेकिन उसके बाद फिटनेस के चलते जूझे और पूरी सीरीज़ नहीं खेल पाये।
इतना ही नहीं, उस सीरीज़ में इंग्लैंड के मोईन अली ने सिर्फ 2 मैच खेलकर 12 विकेट झटक लिए जो अश्विन के 11 से ज्यादा थे।
उस सीरीज़ में कोहली और रवि शास्त्री की जोड़ी को इस बात के लिए काफी आलोचना सहनी पड़ी थी कि वे हर मैच में पिच को भाँपने में चूकते थे और ग़लत टीम लेकर मैदान में उतरते थे।
भले ही भारत ने अच्छा खेल दिखाया था, लेकिन आखिर में सीरीज़ 4-1 से हारे। आलम यह रहा था कि लॉर्ड्स के इसी मैदान पर कोहली ने कुलदीप यादव को भी अश्विन के साथ खिला दिया गया जबकि पिच गेंदबाज़ों के लिए पूरी तरह से मददगार थी।
क्या कोहली ने एक बार फिर से चार तेज़ गेंदबाज़ों को लेकर वही ग़लती दोहरा दी है? या फिर सीरीज़ के बचे हुए तीन मैचों में अश्विन को शामिल करके वो अपनी ग़लती सुधारेंगे?
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