इस वक़्त देश का लगभग आधा हिस्सा विभाजन, नफ़रत और दमन की राजनीति में पिचका जा रहा है। अगर अपराध के सरकारी आँकड़ों और देश के नक्शे को देखें तो मॉब लिंचिंग, सांप्रदायिक विद्वेष और जातीय-टकराव के नब्बे फ़ीसदी से ज़्यादा मामले उत्तर या मध्य भारत में दर्ज हो रहे हैं। हिन्दी-भाषी प्रांतों, ख़ासकर उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार और झारखंड में ये घटनाएँ सबसे ज़्यादा हो रही हैं। हाल के वर्षों में मॉब लिंचिंग के 190 से ज़्यादा मामलों में भुक्तभोगियों में 60 फ़ीसदी मुसलमान हैं। शेष दलित, अत्यंत पिछड़े या अन्य उत्पीड़ित वर्ग के लोग हैं। कुछेक अपवादों को छोड़ दें तो आमतौर पर दक्षिण के राज्य इस तरह की नृशंसता से मुक्त हैं।

हाल ही में बिहार के छपरा में दलित और मुसलिम समुदाय के तीन व्यक्तियों की सिर्फ़ संदेह के आधार पर मॉब लिंचिंग हुई। इस वक़्त देश का लगभग आधा हिस्सा विभाजन, नफ़रत और दमन की राजनीति में पिचका जा रहा है। ऐसे में क्या आज देश एक ख़तरनाक मोड़ पर नहीं है और संवैधानिक लोकतंत्र की संरचना भी ख़तरे में नहीं है?