कर्नाटक के मौजूदा सियासी नाटक में बहुत जल्द दृश्य-परिवर्तन होना लाजिमी है और संभवतः अगले सप्ताह के शुरू में ही नया परिदृश्य उभरता दिखाई दे! लेकिन बीते पाँच-सात दिनों के दरम्यान बैंगलुरू, मुंबई, गोवा और दिल्ली में जो कुछ घटित हुआ, वह हमारे शासन-तंत्र, संवैधानिक व्यवस्था और विधायिका की दृष्टि से बहुत चिंताजनक है।
बैंगलुरू के इस्तीफ़ा-कांड का ‘रंगमंच’ अचानक मुंबई स्थानांतरित हुआ। वहाँ तरह-तरह के नजारे देखने को मिले। बैंगलुरू से मुंबई आकर अपने नाराज साथी-विधायकों से मिलने की कोशिश कर रहे कर्नाटक के वरिष्ठ कांग्रेस नेता डी. शिवकुमार को मुबंई कांग्रेस अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा के साथ कुछ समय के लिए मुंबई पुलिस ने ‘हिरासत’ में ले लिया। उसी होटल में कमरा ‘बुक’ कराने के बावजूद डी. शिवकुमार को होटल में घुसने नहीं दिया गया। मुंबई पुलिस को इसमें क़ानून-व्यवस्था का संकट नजर आया। फिर पुलिस ने कुछ समय बाद शिवकुमार को एयरपोर्ट लाकर बैंगलुरू के लिए रवाना होने को बाध्य किया। उधर, होटल के बाहर बीजेपी के युवा कार्यकर्ता नारे लगाते देखे गए - ‘कर्नाटक में लोकतंत्र की हत्या नहीं चलेगी!’

बीते कुछ दिनों में बैंगलुरू, मुंबई, गोवा और दिल्ली में जो कुछ घटित हुआ, वह हमारे शासन-तंत्र, संवैधानिक व्यवस्था और विधायिका की दृष्टि से बहुत चिंताजनक है।