राम मंदिर का मुद्दा एक बार नए सिरे से खड़ा करने की जमकर कोशिश की जा रही है लेकिन कामयाबी अभी कोसों दूर है। दिल्ली के रामलीला मैदान में दावा किया गया था, 5 से 10 लाख की भीड़ इकट्ठा करने का, जमा हुए कुछ हज़ार ही। हालाँकि सड़कों पर काफ़ी भीड़ इकठ्ठा हुई, यह दिखाने का प्रयास कुछ टीवी चैनलों ने ज़रूर किया।

तमाम दावों के बाद भी मोदी के पास दिखाने को कुछ ठोस नहीं है।अगले चुनावों में मोदी कार्ड फ़्लॉप हो सकता है, यह आशंका बढ़ गई है। इसलिए राम की याद हो आई है। रामभक्तों को यह दिख रहा है। वह समझ रहा है कि राम मंदिर के नाम पर निशाना कुर्सी है। लिहाज़ा वह निराश है। अब भीड़ बनने को तैयार नही हैं। भगवान के नाम पर तो जान देगा, इंसान के लिए नहीं। इसलिए फ्लॉप शो।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।