राजस्थान में 1998 के बाद से हर पांच साल बाद सत्ता बदलती रही है लिहाजा चुनाव में न तो रोमांच होता है और न ही कुछ चौंकाने वाल, लेकिन इस बार चुनाव बेहद रोचक हो गया है। हो सकता है कि अंत में नतीजा रिवाज का साथ निभाता नजर आए लेकिन बीजेपी में वसुंधरा राजे और कांग्रेस में सचिन पायलट ने पूरे चुनाव को चर्चा में ला दिया है। स्थिति यह है कि राजस्थान के बाहर के लोग भी यहां के चुनाव प्रचार पर ध्यान देने लगे हैं।
बीजेपी की नजर से देखा जाये तो ऐसा लगता है कि वसुंधरा राजे को दी जाने वाली संभावित जिम्मेदारी या हाशिए पर डाल देने की संभावित नीति के बीच चुनाव झूल रहा है और वहीं अटक कर रह गया है। राजस्थान में बीजेपी को बहुमत दिलाने वाली दो बार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे खुद को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की मांग पर फिलहाल अड़ी हुई हैं। उधर आलाकमान आकलन करने में लगा है कि क्या वसुंधरा के बिना चुनाव जीता जा सकता है या नहीं।
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के 73 विधायक जीते थे। इसमें से लगभग आधे वसुंधरा समर्थक माने जाते हैं। आलाकमान को डर सता रहा है कि अगर वसुंधरा को हाशिये पर लाया गया तो वे घर बैठ जाएंगे और ऐसे में कहीं बीजेपी सत्ता की दौड़ में बैठ न जाए। बीजेपी आलाकमान का दूसरा डर यह है कि, त्रिशंकु विधानसभा की सूरत में वसुंधरा राजे के भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह वसुंधरा धरा गहलोत के हक में कहीं कोई खेल न कर दें।
सियासी खेल की आशंका से सहमा है बीजेपी आलाकमान
वसुंधरा खेमा चेतावनी दे रहा है कि अगर महारानी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया गया तो वह अपने हिसाब से, आगे का सियासी हिसाब - किताब ध्यान में रखते हुए चुनाव प्रचार करेंगी, यानि अपने समर्थक उम्मीदवारों के लिए ही प्रचार करेंगी। माना जा रहा है कि, ऐसे में वसुंधरा चाहेंगी कि बीजेपी को 200 की विधानसभा में 100 से 105 के बीच ही सीटें मिले ताकि अपने जीते समर्थक विधायकों के दम पर मुख्यमंत्री का दावा उस समय पुख्ता रुप से पेश किया जा सके। चूंकि ऐसा खेल बीजेपी का आलाकमान खेलता रहा है लिहाजा वह इसकी आशंका से सहमा हुआ है। 2018 में कहा जाता है कि अशोक गहलोत ने भी कांग्रेस को ठीक 100 पर अटका दिया था और मुख्यमंत्री बन गये थे। गहलोत जानते थे कि कांग्रेस अगर 110-115 पर आई तो सचिन पायलट मुख्यमंत्री हो जाएंगे।
महारानी का मान रखा जायेगा ऐसा लगता नहीं है
राजस्थान में भाजपा फिलहाल पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है। माना जा रहा है कि पीएम मोदी ने राजस्थान में जीत दिलाने का जिम्मा अपने ऊपर लिया है और चूंकि मोदी को लगता है कि 70 साल की वसुंधरा का सियासी वजूद खत्म करने का यही सबसे अच्छा मौका है लिहाजा महारानी का मान रखा जायेगा ऐसा लगता नहीं है। अगर मान नहीं रखा गया तो वसुंधरा राजे क्या करेंगी इसपर सब की नजरें टिकी हैं । वसुंधरा राजे पर पूर्व उपराष्ट्रपति और राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके भैरोंसिंह शेखावत ने कभी 22 हजार करोड़ के घपले के आरोप लगाए थे । हाल तक सचिन पायलट वसुंधरा पर 46 हजार करोड़ के घोटालों के आरोप लगा चुके हैं। पता चला है कि एक तरफ मोदी भ्रष्टाचार को मुख्य मुद्दा बना कर चुनाव लड़ रहे हैं तो दूसरी तरफ ऐसे आरोप झेल रही वसुंधरा को मुख्यमंत्री का चेहरा कैसे बनाया जा सकता है।
कम से कम एक चुनाव बीजेपी को हरवाने की क्षमता रखती हैं
बीजेपी के नेताओं का कहना है कि वसुंधरा के साथ रहते हुए 135 से 140 सीटें आएंगी और अगर साथ नहीं रहती हैं तो 110 से 120 सीटें आएंगी यानी दोनों ही सूरत में कमल का राज होगा। इस हिसाब से भी देखा जाए तो वसुंधरा बीस सीटें हरवाने की क्षमता रखती है। वसुंधरा समर्थकों का कहना है कि महारानी तय कर ले तो कम से कम एक चुनाव बीजेपी को हरवाने की क्षमता रखती हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि राजस्थान में बीजेपी के पास वसुंधरा के कद का कोई नेता नहीं है जो विधानसभा क्षेत्र या संभाग के बाहर कोई सियासी ताकत रखता हो। वसुंधरा महिलाओं और युवा वोटरों के बीच लोकप्रिय रही हैं। राजस्थान में इस बार पांच करोड़ 16 लाख वोटर वोट डालेंगे। इसमें से दो करोड़ साठ लाख वोटर चालीस साल से कम उम्र के हैं। महिला वोट लगभग पचास प्रतिशत हैं और कुछ सीटों पर तो पुरुषों के मुकाबले महिलाएं बड़ी संख्या में वोट देती रही हैं । जाट, राजपूत, गुर्जर आमतौर पर बीजेपी का वोट बैंक रहे है और वसुंधरा खुद को राजपूतों की बेटी, जाटों की बहु और गुर्जरों की समधिन ( बेटे की शादी गुर्जर परिवार में हुई है ) के रुप में पेश करती रही हैं। यह जादू अब भी सर चढ़कर बोलेगा कहना मुश्किल है।
सचिन की घर वापसी के बाद बीजेपी को गुर्जर वोट की चिंता है
सचिन पायलट की कांग्रेस में एक तरह की घर वापसी के बाद बीजेपी को गुर्जर वोट की चिंता है। पिछले चुनाव में पूर्वी राजस्थान की गुर्जर - मीणा पटटी में जमकर वोट कांग्रेस को मिले थे क्योंकि तब माना जा रहा था कि सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनेंगे। इस पट्टी में मीणा कांग्रेस के परंपरागत वोटर रहे हैं और गुर्जर वोटों का साथ मिला तो पूर्वी राजस्थान की 39 सीटों में कांग्रेस ने 25 सीटें जीती थी । बीजेपी को सिर्फ पांच पर ही संतोष करना पड़ा था। जानकारों की कहना है कि वसुंधरा सचिन के साथ गये गुर्जर वोटर को वापस बीजेपी की झोली में डालने में कामयाब हो सकती है। आखिर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वसुंधरा के शासन में विशेष आरक्षण मांग रहे 72 गुर्जर गोली का शिकार हुए थे लेकिन वोट फिर भी बीजेपी को ही दिया था। अंत में नवीनतम खबर यह है कि बीजेपी आलाकमान ने अंतिम ऑफर वसुंधरा राजे के सामने रखा है। राज्य की चार दिशाओं से चुनाव यात्रा निकाली जाएंगी। इसमें से एक का नेतृत्व वसुंधरा को करने को कहा गया है। इसपर वसुंधरा ने अपनी स्थिति साफ नहीं की है।
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