बाबूलाल मरांडी
बीजेपी - धनवार
आगे
बाबूलाल मरांडी
बीजेपी - धनवार
आगे
गीता कोड़ा
बीजेपी - जगन्नाथपुर
पीछे
रक्षा मंत्रालय के इन तीनों अधिकारियों ने 1 जून 2016 को 8 पेज के एक नोट में अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी। ग़ौरतलब है कि भारत की तरफ़ से रफ़ाल मामले में मोलभाव करने वाली टीम में 7 सदस्य हैं। जिनमें से इन तीनों ने कड़े शब्दों में सौदे के ख़िलाफ़ अपनी राय रखी है। अख़बार के संपादक एन. राम ने 8 पेज के इस नोट को बुधवार को अख़बार में छापा है और उसके आधार पर ख़बर लिखी है।
इन तीनों अधिकारियों ने आठ पेज के अपने विरोध पत्र में लिखा है कि मनमोहन सिंह सरकार के समय किए क़रार के मुताबिक़ पहले 18 रफ़ाल विमान टीओ +36 से टीओ +48 महीनों के अंदर डिलीवर होने थे। जबकि मोदी सरकार के दौरान किए गए क़रार के बाद पहले 18 नए विमान टीओ +36 से टीओ + 53 महीनों में मिलेंगे। यानी, यह साफ़ है कि नए क़रार के मुताबिक़, विमानों की डिलिवरी में कम से कम 5 महीने और ज़्यादा लगेंगे।
तीनों अधिकारियों के विरोध पत्र में विमानों की क़ीमत पर भी गहरे सवाल खड़े किए गए हैं और पूरी प्रक्रिया को कटघरे में ला खड़ा किया। इन अधिकारियों के मुताबिक़, रक्षा ख़रीद परिषद द्वारा विमानों की ख़रीद के लिए बातचीत शुरू करने से पहले कांट्रेक्ट नेगोशिएटिंग कमेटी एक बेंचमार्क क़ीमत तय करती है। बेंचमार्क क़ीमत का मतलब होता है कि किसी भी हालत में इस क़ीमत से ज़्यादा रक़म नहीं दी जाएगी।
रफ़ाल मामले में 36 रफ़ाल विमानों की ख़रीद के लिए बेंचमार्क क़ीमत 5.06 बिलियन यूरो तय की गई थी। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि रफ़ाल सौदा 7.87 बिलियन यूरो में हुआ।
अख़बार का दावा है कि फ़्रांसीसी पक्ष ने शुरुआत में रफ़ाल विमानों की एक निश्चित क़ीमत तय की थी। जिसे बाद में बदलकर “एस्केलेशन फ़ॉर्मूले” के तहत कर दिया गया। एस्केलेशन फ़ॉर्मूले का मतलब होता है कि समय लगने के साथ-साथ विमान की क़ीमत भी उसी अनुपात में बढ़ती जाती है। तीनों अधिकारियों के विरोध पत्र में यह साफ़ लिखा है कि फ़्रांसीसी सरकार की तरफ़ से जो अंतिम क़ीमत तय की गई वह बेंचमार्क क़ीमत से 55.6 प्रतिशत ज़्यादा थी।
अख़बार तीनों अधिकारियों के विरोध पत्र के हवाले से लिखता है कि रफ़ाल का सौदा भारत सरकार के लिए घाटे का सौदा था। क्योंकि “यूरोफ़ाइटर टाइफ़ून” रफ़ाल की तरह का ही लड़ाकू विमान था। टाइफ़ून बनाने वाली कंपनी मैसर्स ईएडीएस ने रफ़ाल की तुलना में 20 प्रतिशत कम में अपने विमान देने की पेशकश की थी।
इन अधिकारियों ने अपने विरोध पत्र में लिखा है कि विमानों की बेंचमार्क क़ीमत तय करते समय मोलभाव करने वाली भारतीय टीम ने यह पाया था कि मैसर्स ईएडीएस 20 प्रतिशत कम क़ीमत पर ही विमान देने को तैयार है और उसमें भी कोई एस्कलेशन कॉस्ट नहीं होगी। भुगतान की शर्तों में सिर्फ़ मामूली फ़ेरबदल ही पाया गया था। अख़बार यह दावा करता है कि भारत सरकार रफ़ाल की तुलना में 25 प्रतिशत कम में क़ीमत पर ही रफ़ाल जैसा ही विमान ख़रीद सकती थी।
‘द हिंदू’ अख़बार ने पिछले दिनों दो और बड़े ख़ुलासे किए थे। हिंदू अख़बार ने पहले यह दावा किया था कि रक्षा मंत्रालय की टीम से अलग प्रधानमंत्री कार्यालय फ़्रांस के रक्षा मंत्रालय की टीम से रफ़ाल के सौदे के संदर्भ में ‘समानांतर बातचीत’ कर रहा था। उस वक़्त के रक्षा सचिव जी मोहन कुमार ने इस ‘समानांतर बातचीत’ पर तगड़ी नाराज़गी जताई थी और कहा था कि फ्रांसीसी टीम इसका फ़ायदा उठा सकती है और समानांतर बातचीत से भारतीय हितों को नुक़सान हो सकता है। रक्षा सचिव ने यहाँ तक कहा था कि अगर प्रधानमंत्री कार्यालय को रक्षा मंत्रालय की टीम पर भरोसा नहीं है तो वह अपनी टीम बनाकर सीधे बातचीत कर सकता है।
एन. राम ने इसके बाद ‘द हिंदू’ अख़बार में एक और बड़ा ख़ुलासा किया था। उन्होंने लिखा था कि मोदी सरकार ने रफ़ाल सौदे के समय न तो संप्रभु गारंटी ली और न ही बैंक गारंटी। मोदी सरकार फ़्रांसीसी सरकार से सिर्फ़ लेटर ऑफ़ कम्फ़र्ट यानी उनसे आश्वासन मिलने भर से संतुष्ट हो गई कि अगर दसॉ कंपनी कोई गड़बड़ करती है तो फ़्रांसीसी सरकार उसे सुधारने का काम करेगी।
मोदी सरकार ने रफ़ाल सौदे के क़रार में भ्रष्टाचार विरोधी प्रावधानों को भी कमजोर कर दिया था जिससे दसॉ कंपनी के गड़बड़ी करने क़े बाद उसे सज़ा दिला पाना मुश्किल होता।
अख़बार ने यह भी लिखा था कि रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों की राय के ख़िलाफ़ मोदी सरकार ने रफ़ाल के भुगतान के लिए “एस्क्रॉ अकाउंट” भी खोलने से मना कर दिया था। एस्क्रॉ अकाउंट का मतलब कि एक ऐसा अकाउंट खुलवाना जिसमें रफ़ाल विमान के भुगतान के लिए भारत सरकार पैसा जमा तो करती लेकिन वह पैसा दसॉ कंपनी को तब मिलता जब भारत के कहने पर फ़्रांसीसी सरकार उसको रिलीज़ करने के लिये हरी झंडी दिखाती। यानी भारतीय पैसा फ़्रांसीसी सरकार के पास अमानत के तौर पर रहता और अगर दसॉ कंपनी कुछ गड़बड़ करती तो फ़्रांसीसी सरकार भारत के कहने पर भुगतान पर रोक लगा सकती थी।
‘द हिंदू’ के बाद इंडियन एक्सप्रेस ने यह ख़बर भी छापी कि प्रधानमंत्री मोदी के 36 रफ़ाल विमानों की ख़रीद के एलान के दो हफ़्ते पहले उद्योगपति अनिल अंबानी फ़्रांसीसी सरकार के रक्षा मंत्रालय के तीन अधिकारियों से मिले थे। इस ख़बर के छपने के बाद कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गाँधी के एक ई-मेल जारी कर यह आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी ने रफ़ाल सौदे की गोपनीय जानकारी उद्योगपति अनिल अंबानी को लीक की और वह अंबानी के लिए मिडिलमैन का काम कर रहे थे। राहुल गाँधी ने इस ख़ुलासे के बाद प्रधानमंत्री मोदी पर देशद्रोह का आरोप भी लगाया था।
अब एन. राम द्वारा बुधवार को किए गए बड़े ख़ुलासे के बाद मोदी सरकार की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले ये ख़ुलासे प्रधानमंत्री मोदी की साख पर बट्टा लगा रहे हैं। साथ ही साथ मोदी सरकार का यह दावा भी खोखला साबित हो रहा है कि रफ़ाल मामले में सुप्रीम कोर्ट से उन्हें ‘क्लीन चिट’ मिली है, लिहाजा किसी को इस पर सवाल उठाने का हक़ नहीं है।
अब प्रश्न यह उठता है कि इन नए ख़ुलासों की रोशनी में क्या सुप्रीम कोर्ट रफ़ाल पर अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करेगा और क्या कि कैग (कॉम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जरनल) अपनी रिपोर्ट में इन अनियमितताओं का जिक़्र करेगा। अगर ऐसा हुआ तो मोदी सरकार के सारे दावों का पोल खुल जाएगी और उसे चुनाव के ऐन पहले लेने के देने पड़ जाएँगे।
About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
Grievance Redressal । Terms of use । Privacy Policy
अपनी राय बतायें