सरकार ने बुधवार को रफ़ाल सौदे पर तैयार सीएजी की रिपोर्ट भारी हंगामे और शोर-शराबे के बीच राज्यसभा में पेश कर दी। कांग्रेस सदस्यों ने संसद भवन परिसर के अंदर विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने नारेबाज़ी की और सरकार की जम कर आलोचना की।
वित्त राज्यमंत्री पोन राधाकृष्णन ने सरकार की ओर से सीएजी रिपोर्ट राज्यसभा में पेश की। लेकिन विपक्ष और ख़ास कर कांग्रेस के सदस्यों ने इतना ज़ोरदार हंगामा किया और शोर मचाया कि सदन की कार्यवाही दोपहर तक के लिए स्थगित कर दी गई। विरोध प्रदर्शन में सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी भी शामिल थे।
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सस्ते विमान?
सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि रफ़ाल पर मौजूदा क़रार साल 2016 में हुए क़रार से सस्ता है। दोनों क़रारों में विमान की जो क़ीमतें तय की गई थीं, उनमें लगभग 2.86 प्रतिशत का अंतर है, यानी मौजूदा कीमत पहले की कीमत से कम है। इसमें यह भी कहा गया है कि हथियार और विमान समेत पूरा पैकेज भी सस्ता है।ज़रूरी कॉलम खाली
सीएजी की रिपोर्ट में क़ीमत की बात तो की गई है, पर उसका विस्तार से ब्योरा नहीं दिया गया है। ज़रूरी कॉलम खाली छोड़ दिए गए हैं। यह कहा गया है कि दोनों सरकारों के बीच क़रार में गोपनीयता की शर्त थी और उसका पालन किया जाना ज़रूरी है। मजेदार बात यह है कि क़ीमतों की तुलना करने में सिर्फ प्रतिशत का उल्लेख किया गया है, वास्तविक कीमत नहीं बताई गई है। वास्तविक कीमत नहीं बताने से विपक्ष समेत किसी को यह नहीं पता चल पाएगा कि दरअसल किस कीमत पर विमान, उपकरण, हथियार और उससे जुड़ी सेवाएँ मिलीं।इसके अलावा अलग-अलग उपकरणों और सेवाओं से जुड़े हेडिंग और सब हेडिंग खाली छोड़ दिए गए हैं, उनसे जुड़े कॉलम में कुछ नहीं भरा गया है। इससे यह पता नहीं चल पाएगा कि किस मद में कितनी कीमत पहले तय हुई थी और अंतिम क़रार में कितनी कीमत तय हुई। इससे होगा यह कि विपक्ष तुलना नहीं कर पाएगा और यह पता ही नहीं चल पाएगा कि पहले से कितना सस्ता या महँगा सौदा हुआ है।
'हथियार सस्ते, सेवा सस्ती'
भारत की रक्षा ज़रूरतों के हिसाब से विमान में बदलाव किए गए थे। सीएजी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इन बदलावों की कीमत पहले के बदलावों की कीमत से 17 प्रतिशत कम है। विमान के साथ जो सेवा शर्तें जुड़ी है, उनका शुल्क भी पहले से 4.7 प्रतिशत कम है।रफ़ाल सौदे पर सीएजी रिपोर्ट का विरोध करते हुए कांग्रेस पार्टी ने इसे सिरे से खारिज कर दिया है। कांग्रेस का कहना है कि मौजूदा सीएजी उस समय वित्त सचिव थे, जिस समय रफ़ाल सौदे पर बात चल रही थी और अंतिम क़रार हुआ था। उसका तर्क है कि जिसने क़रार किए, वही उसकी समीक्षा भी करे, यह नहीं हो सकता है।
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