- कैग ने विवादास्पद रफ़ाल सौदे पर अपनी रिपोर्ट बुधवार को संसद में रखी। इस रिपोर्ट पर सदन में जमकर हंगामा हुआ और विपक्ष ने रिपोर्ट की तीख़ी आलोचना की। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रफ़ाल पर मौजूदा सौदा पहले सौदे की तुलना में 2.86 फ़ीसदी सस्ता है।
मोदी सरकार ने नए रफ़ाल सौदे के संदर्भ में लगे आरोपों पर कहा था कि रफ़ाल सौदा न केवल मनमोहन सरकार के समय किए गए रफ़ाल सौदे से सस्ता है बल्कि उसकी डिलीवरी भी जल्दी होगी। कैग के मुताबिक़ मोदी सरकार के क़रार की वजह से रफ़ाल विमान मनमोहन सरकार के करार की तुलना में एक महीना पहले ही आ जाएगा।
मोदी सरकार गदगद, विपक्ष नाराज़
कैग की इस रिपोर्ट से मोदी सरकार गदगद है और विपक्ष नाराज़। मोदी सरकार पर यह आरोप लग रहा था कि मनमोहन सरकार की तुलना में मोदी सरकार ने तिगुने दाम पर रफ़ाल विमान ख़रीदे और रफ़ाल सौदे का मक़सद उद्योगपति अनिल अंबानी को फ़ायदा पहुँचाने का था।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी लगातार यह आरोप लगाते रहे हैं कि मोदी सरकार ने 30 हज़ार करोड़ रुपये अनिल अंबानी की जेब में डाल दिए और एचएएल जैसी पुरानी सार्वजनिक कंपनी के नाम पर बट्टा लगाया।
- इस संदर्भ में यह बताना उचित होगा कि रफ़ाल रक्षा सौदे पर तीख़े सवाल और आपत्तियाँ ख़ुद रक्षा मंत्रालय से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों ने उठाई हैं। तब के रक्षा सचिव मोहन कुमार ने इस बात पर आपत्ति जताई थी कि प्रधानमंत्री कार्यालय रक्षा मंत्रालय के साथ-साथ फ़्रांसीसी पक्ष से ‘समानांतर बातचीत’ कर रहा था। रक्षा सचिव ने इसे अनुचित माना और कहा कि यह देश हित में नहीं है।
क्यों हटाए भ्रष्टाचार विरोधी प्रावधान?
फ़्रांसीसी रक्षा मंत्रालय से मोलभाव करने वाली भारतीय टीम के 7 में से 3 सदस्यों ने इस बात पर आपत्ति जताई थी कि रफ़ाल क़रार से क्यों भ्रष्टाचार विरोधी प्रावधान हटा लिए गए? संप्रभु गारंटी और बैंक गारंटी नहीं ली गई। इन 3 अधिकारियों ने 8 पेज के अपने विरोध पत्र में यह कहा था कि मोदी सरकार के रफ़ाल सौदे की सेवा शर्तें मनमोहन सरकार के समय की सेवा शर्तों की तुलना में बेहतर नहीं है।
- विरोध पत्र में यह भी कहा गया था कि मोदी सरकार ने मंहगा रफ़ाल ख़रीदा और विमानों की डिलीवरी भी देर होगी। रक्षा सचिव के सलाहकार सुधांशु मोहंती ने यह सुझाव दिया था कि एस्क्रॉ अकाउंट खोलकर दसॉ को भुगतान किया जाना चाहिए।
कैग को नहीं दिखती गड़बड़
कैग ने अपनी रिपोर्ट में इन आपत्तियों को कोई तवज्जो नहीं दी। कैग ने साफ़ लिखा है कि न केवल यह डील पहले की तुलना में सस्ती है बल्कि विमानों की डिलीवरी भी पहले से जल्दी होगी। रफ़ाल सौदे में कैग की पूरी रिपोर्ट पढ़ने से ऐसा लगता है कि कैग सरकार के तर्कों से पूरी तरह संतुष्ट है और उसमें उसे कुछ भी गड़बड़ नज़र नहीं आता।
मोलभाव कर रही टीम को ही बताया दोषी
‘द हिंदू’ अख़बार ने बुधवार को ही यह ख़बर छापी है कि रफ़ाल विमानों की क़ीमत बेंचमार्क क़ीमत से तक़रीबन 57 फ़ीसदी ज़्यादा है। बजाय इस मसले पर आपत्ति दर्ज कराने के कैग ने भारत की मोलभाव टीम को ही आड़े हाथों लिया और अपनी रिपोर्ट में लिखा कि इस टीम को बेंचमार्क क़ीमत तय करते समय व्यावहारिक रुख अख़्तियार करना चाहिए। सरकार में किसी भी सामान को ख़रीदने के पहले यह तय कर लिया जाता है कि ज़्यादा से ज़्यादा कितनी क़ीमत इस सामान की दी जा सकती है, इसे ही बेंचमार्क क़ीमत कहते हैं। मोलभाव टीम इस सीमा के अंदर कम से कम दाम पर सौदा करने की कोशिश करती है।
- अब सवाल यह उठता है कि क्या भारतीय मोलभाव टीम इतनी ग़ैर पेशेवर है कि वह बाज़ार भाव के हिसाब से सही बेंचमार्क क़ीमत ही तय नहीं कर पाती और सौदा उसके डेढ़ गुने दाम पर तय होता है? इसके दो अर्थ निकलते हैं या तो भारतीय मोलभाव टीम को अपना काम नहीं आता और उसे यह भी नहीं पता है किस दाम में रफ़ाल विमान मार्केट में बिक रहा है। जिस टीम को इतनी बुनियादी जानकारी नहीं है, उस टीम पर कैसे विश्वास किया जा सकता है कि वह सही मोलभाव कर पाएगी।
- दूसरा अर्थ यह कि कैग ने सरकार की तरफ़ आँख मूँद ली और बजाय सरकार को दोष देने के मोलभाव टीम को ही ज़िम्मेदार ठहरा डाला।
कैग ने दोहराए मोदी सरकार के तर्क
इस पूरे मामले में सबसे दिलचस्प बात यह है कि कैग ने मोदी सरकार के रफ़ाल सौदे की तुलना मनमोहन सरकार के समय हुए रफ़ाल सौदे से की है और उस आधार पर मोदी सरकार के क़रार को बेहतर ठहराने की कोशिश की। यानी वही तर्क दिए हैं जो मोदी सरकार विपक्ष के आरोपों के जवाब में देती है।
यहाँ एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि कैग का काम है, जो सौदा हुआ उसकी पड़ताल करना, उसमें मीनमेख निकालना, उसके बारे में यह बताना कि सामान ख़रीद के लिए सरकारी पैसे ख़र्च करने में प्रक्रिया का पालन किया गया या नहीं।
बिना सौदा हुए कैसे कर ली पड़ताल?
ऐसा लगता है कि रफ़ाल पर कैग रिपोर्ट इसलिए बनाई गई ताकि यह कहा जा सके कि 36 रफ़ाल विमानों को ख़रीदने का मोदी सरकार का फ़ैसला सही था और मनमोहन सरकार के समय 126 विमानों के क़रार से बेहतर था।
सरकार बार-बार यह कहती है कि रफ़ाल का सौदा दो सरकारों के बीच का सौदा था इसलिए किसी भी तरीक़े की बैंक गारंटी या संप्रभु गारंटी की आवश्यकता नहीं है। कैग अपनी रिपोर्ट में फिर वही ग़लती दोहराता है जो उसने मौजूदा क़रार की तुलना मनमोहन सरकार के क़रार से तुलना कर की।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि इस तरीक़े का अंतर्देशीय क़रार पहले भी इंग्लैंड, अमेरिका और रुस के साथ हो चुका है। फ़्रांस के साथ इस तरीक़े का यह पहला क़रार है। चूँकि अंतर्देशीय क़रार में बैंक गारंटी और संप्रभु गारंटी की ज़रूरत नहीं होती, इसलिए यहाँ भी उसकी ज़रूरत नहीं थी।
कैग ने नहीं सुनी रक्षा मंत्रालय की बात
कैग ने यह बताना उचित नहीं समझा कि दूसरे देशों के साथ हुए अंतर्देशीय क़रार में हथियारों की सप्लाई करने का काम एक सरकारी संस्था को ही करना था जबकि रफ़ाल में विमान डिलीवरी का काम एक निजी कंपनी दसॉ का है। यही कारण है कि रक्षा मंत्रालय के अधिकारी बार-बार यह जोर दे रहे थे कि किसी तरीक़े से फ़्रांसीसी सरकार को पैसे के भुगतान के मामले में हिस्सेदार बनाया जाए। इसके लिए या तो संप्रभु गारंटी मिले या फिर एस्क्रॉ अकाउंट खोला जाए।
विमानों की क़ीमत का कोई जिक़्र नहीं
कैग अधिकारियों की आपत्तियों को दरकिनार कर देता है। कैग की इस रिपोर्ट में जो सबसे बड़ा सवाल है कि कैग ने अपनी पूरी रिपोर्ट में विमानों की क़ीमत का जिक़्र नहीं किया है और जो सारिणी बनाई गई है, वह अपने आप में एक मजाक है। सारिणी के सारे खानों को खाली छोड़ दिया गया है। सवाल यह है कि इस बात की पड़ताल कैसे होगी कि कैग ने क़ीमतों को लेकर जो आकलन किया है, वह सही है या ग़लत है।
- क्या संसद को भी यह जानने का अधिकार नहीं है कि रफ़ाल किन क़ीमतों पर ख़रीदा गया था? लोकतंत्र में संसद जनता की इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करती है और लोकतंत्र में जनता की इच्छाओं से ऊपर कुछ भी नहीं है। यानी कैग ने यह मान लिया है कि सरकार में बैठे हुए चंद लोग सरकार की इच्छा और संसद से भी ऊपर हैं और उन्हें ही रफ़ाल की क़ीमतों के बारे में जानने का अधिकार है।
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