लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में एनडीए के प्रदर्शन को लेकर पहले से ही बीजेपी और उसकी सहयोगी एनसीपी में कड़वाहट की ख़बरें आ रही थीं, अब आरएसएस नेता के एक लेख के बाद उनके बीच वाकयुद्ध शुरू हो गया है। संघ के मुखपत्र आर्गनाइजर में छपे लेख में भाजपा की अजित पवार की एनसीपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की आलोचना की गई थी।
हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन ने 30 सीटें जीतीं। भाजपा और उसके सहयोगियों ने 17 सीटें जीतीं। इनमें से एनसीपी को केवल एक सीट मिली। यूपी के बाद महाराष्ट्र से लोकसभा में सबसे अधिक 48 प्रतिनिधि भेजे जाते हैं। कुछ मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि भाजपा ने इस बात का आकलन करने के लिए एक आंतरिक सर्वेक्षण शुरू किया है कि क्या उन्हें इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में अकेले चुनाव लड़ना चाहिए।
इसी हफ्ते ऑर्गनाइजर ने एक लेख छापा है जिसमें कहा गया है कि अति आत्मविश्वासी भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं की वजह से पार्टी का निराशाजनक प्रदर्शन रहा है। इसमें यह भी कहा गया है कि भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने लोकसभा चुनाव में मदद के लिए आरएसएस से संपर्क नहीं किया और इस वजह से पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। पत्रिका में छपे लेख में संपर्क नहीं करने की जो बात कही गई है उसकी पुष्टि एक इंटरव्यू में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी लोकसभा चुनाव के दौरान ही की थी।
लोकसभा चुनाव के दौरान ही बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय और मौजूदा समय में काफी कुछ बदल चुका है। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से इंटरव्यू में कहा था कि 'पहले हम इतनी बड़ी पार्टी नहीं थे और अक्षम थे, हमें आरएसएस की जरूरत पड़ती थी, लेकिन आज हम काफी आगे बढ़ चुके हैं और अकेले दम पर आगे बढ़ने में सक्षम हैं।'
ऑर्गनाइजर में इस लेख को आरएसएस नेता रतन शारदा ने लिखा है। शारदा ने कहा, 'अगर भाजपा के स्वयंसेवक आरएसएस से संपर्क नहीं करते हैं, तो उन्हें जवाब देना होगा कि उन्हें ऐसा क्यों लगा कि इसकी ज़रूरत नहीं है।'
लेख में उन्होंने अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के साथ गठबंधन करने के भाजपा के कदम पर सवाल उठाया और इस कदम को गलत सलाह करार दिया।
लेख में उन्होंने लिखा है, 'यह गलत सलाह वाला कदम क्यों उठाया गया? भाजपा समर्थकों को चोट पहुंची क्योंकि उन्होंने वर्षों तक कांग्रेस की विचारधारा के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उन्हें सताया गया। एक ही झटके में भाजपा ने अपनी ब्रांड वैल्यू कम कर दी।'
इसमें आगे कहा गया, 'महाराष्ट्र ग़ैर ज़रूरी राजनीति और टाले जा सकने वाले हेरफेर का एक प्रमुख उदाहरण है। ऐसे देर से आने वालों को समायोजित करने के लिए अच्छा प्रदर्शन करने वाले सांसदों की अनदेखी की गई।'
राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि लेख को इस संकेत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए कि दोनों सहयोगियों के बीच सब कुछ ठीक नहीं है। लेकिन एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार एनसीपी की युवा शाखा के नेता सूरज चव्हाण ने कहा कि जब भाजपा अच्छा प्रदर्शन करती है तो इसका श्रेय आरएसएस की मेहनत को दिया जाता है, लेकिन हार का ठीकरा अजित पवार के सिर फोड़ा जाता है।
दोनों दलों के बीच मतभेद के पहले संकेत तब सामने आए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली नई सरकार में एनसीपी ने राज्य मंत्री का पद लेने से इनकार कर दिया। अजित पवार और प्रफुल्ल पटेल दोनों ने प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए कैबिनेट में जगह पाने की इच्छा जताई।
एनसीपी की ओर से तर्क यह है कि पूर्व कैबिनेट मंत्री के तौर पर पटेल जूनियर मंत्री का पद संभालने के लिए बहुत वरिष्ठ व्यक्ति हैं। अजित पवार ने संवाददाताओं से कहा कि उनकी पार्टी उस कैबिनेट पद के लिए इंतजार करने को तैयार है। पटेल ने भी कहा था, 'मैं पहले कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में कैबिनेट मंत्री था और राज्य मंत्री बनाया जाना एक तरह से पदावनत करने जैसा है।'
इंडो-एशियन न्यूज़ सर्विस ने अज्ञात स्रोतों का हवाला देते हुए बताया कि नतीजों के बाद, भाजपा इस बात पर विचार कर रही है कि अजित पवार के साथ गठबंधन जारी रखा जाए या नहीं।
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