वृहत हैदराबाद नगर निगम चुनाव के नतीजों के बाद देश में मुसलिम राजनीति एक बार फिर विमर्श के केंद्र में आ गई है। पिछले साढ़े छह सालों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने को सेक्युलर कहने वाले दलों की मुसलिम राजनीति का शिराजा बिखेर दिया है। इसको इस तरह से भी कह सकते हैं कि भारत में अब हिंदू विरोधी राजनीति की गुंज़ाइश ख़त्म हो गई है।
सेक्युलर दलों से उठ रहा मुसलमानों का भरोसा?
- राजनीति
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- 8 Dec, 2020

असदुद्दीन ओवैसी की सफलता मुसलिम मतदाता की सोच में बड़े बदलाव का संकेत इसलिए है कि पिछले बहत्तर सालों से मुसलमान मुसलिम पार्टियों का साथ देने से बचते रहे हैं। लगता है कि अलग-अलग राज्यों में बीजेपी को हराने वाली पार्टियों की तलाश और उन पर दाँव लगाते-लगाते मुसलमान थक गया है।
इससे हुआ यह कि संसद और विधानसभाओं में मुसलिम प्रतिनिधित्व घट रहा है। मुसलिम समुदाय धर्मनिरपेक्ष दलों से निराश है। साथ ही एक सवाल भी उठ रहा है कि क्या छप्पन साल पहले मुसलिम मजलिस-ए-मुशावरात ने जो सिलसिला शुरू किया था वह ज़मीन पर उतरने जा रहा है। क्या देश में आज़ादी से पहले बनी मुसलिम लीग के बाद एक बार फिर मुसलमानों की अपनी पार्टी बनेगी। असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन को मिल रही चुनावी कामयाबी क्या इसी बदलाव की ओर इशारा कर रही है? ओवैसी की पार्टी को पहले महाराष्ट्र फिर बिहार में मिली कामयाबी और अब हैदराबाद में अपना क़िला सुरक्षित रखने के क्या मायने हैं? इसे बड़े बदलाव के रूप में देखना भले ही अभी जल्दबाज़ी हो लेकिन बदलाव की शुरुआत मानना ग़लत नहीं होगा।
प्रदीप सिंह देश के जाने माने पत्रकार हैं। राजनीतिक रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है। आरएसएस और बीजेपी पर काफी बारीक समझ रखते हैं।